नींद में विचार की पुकार : दैनिक राष्‍ट्रीय सहारा 26 मार्च 2013 स्‍तंभ चलते-चलते में प्रकाशित



नींद खूब आ रही हो और आंखों से ढरक जाए अथवा कम आ रही हो जिससे आंखें नींद के लिए तरस जाएं तो दोनों ही स्थितियां भयावह होती हैं। इससे स्वभाव में चिडचिड़ापन हावी हो जाता है। नींद और विचारों का चोली दामन का न सही, पर मियां बीवी वाला साथ जरूर होता है। विचार अमूमन दिमाग में उस समय ही कुलांचे भरते हैं, जिस समय सोने का समय हो। यह सोना स्वर्ण भले न हो पर शरीर के लिए नींद सोने के धातुई तिलिस्म से अधिक उपयोगी है। विचाररहित मन उजाड़ मरु स्थल से अधिक नहीं है। मन की महत्ता तभी है, जब उसमें उत्तम विचारों का वास हो। नींद जब भरपूर तेजी में होती है, तब बिना ब्रेक के आंखों के रास्ते शरीर पर से बेध्यानी में गुजर जाती है, शरीर के लिए घनघोर संकट की स्थिति होती है। वह व्यवहार को र्दुव्‍यवहार में बदल देती है। जब नींद की तेजी इतनी कम होती है कि पलकें भी भारी नहीं होतीं, तब पलकें नींद की आभारी नहींहो सकतीं। संपूर्ण नींद के लिए दोनों स्थितियां किसी त्रासदी से कम नहीं होतीं। लोग थकते हैं, सो जाते हैं, खर्राटे लेने लगते हैं, जिससे वे तो बिना चादर ताने बेफिक्र सोते हैं जबकि उनका साथी हो जाता है फिक्रमंद। नींद का मुकाम थकान दूर होते दूर होना उत्तम स्थिति है। कितने ही सुअक्कड़ बिना शोर के सो नहीं पाते हैं। शोर उनकी नींद के लिए संगीत का काम करता है। वे जोरदार आवाजों, चीखों, चिल्लाहटों और तेज खर्राटों की मौजूदगी में ही नींदयोग हासिल कर पाते हैं। उनकी नींद शोर में सोती है। शोर न हो तो जगती है। मन की कल्पना में बाधक नहीं बनती जबकि मेरी नींद विचारों की वाहक-संवाहक सभी कुछ है, परमतत्व है। सोने से भी नहीं सोते हैं कुछ विचार। वे विचार ही क्या जो सो जाएं। यहां तो विचार बेचारे अनिद्रा के मारे हैं, मारे मतलब सताए। लेखकों को अरसे से जगाए हैं। इससे त्रस्त है लेखकों का संपूर्ण विहान। विचार न हों तब होता है लेखक सबसे अधिक परेशान। मन को मथता रहता है कि विचार नहीं आ रहे क्या लिखूं? नींद नहीं आ रही, रचना की रचना कैसे करूं? जबर्दस्ती नहीं है रचना। रचना के साथ बलात्कार चलता भी नहीं है और कई बार तो गैंगरेप भी हो जाता है, जब सबके विचार एकआयामी पाए जाते हैं। न हों मन में सद्विचार तो कभी मत सोचो कि लिखना है। जबर्दस्ती के लेखन में वह शुद्धता कहां? उसमें वह खनखनाहट कहां? जो मन को भली लगे, खुद को भी पाठकों को भी। ऐसा लेखन तो खोटा सिक्का है, जिनके नाम कॉलम है, उनके लिए खनकाने की मजबूरी है। खोटा सिक्का हो या बुरा विचार, गले पड़ जाता है, तब छुटाए नहीं छूटता। आप ही इसका रहस्य बतला दो, मुझे यह जादू समझा दो।

2 टिप्‍पणियां:

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