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आज से पांचवें दिन अधिकृत तौर पर होलीमय होंगे पर होली तो पहले से ही खेली जा रही है। जाट रेल पटरियों को खाट मानकर ठाठ से उन पर लेट लेट कर रेलें लेट कर रहे हैं और होली खेल रहे हैं। उनका मानना है कि आरक्षण के लिए लोहे की काली काली रेलों की पटरी पर लोट लगाकर क्षरण संभव है। वैसे वे खेतों के मालिक हैं, वहीं पर खूब लोट लगाते हैं। वहां पर उनके सब्जबाग हरे हरे हैं, जिन्हें वे फलबाग समझ कर बाग बाग हो रहे हैं। इधर राजधानी में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर लाल रंग की होली खेली गई है, जो अगले दिन भी जारी रही और वैसे तो सड़कों पर वाहन तो रोजाना ही लाल रंग से होली खेल रहे हैं। उनके चालकों के लिए रक्त लाल रंग से अधिक महत्व नहीं रखता है। लेकिन सजा का नाम सुनकर सबके चेहरे पीले पड़ जाते हैं। इस प्रकार काला, हरा, लाल, पीला और सर के ऊपर का आसमान नीला मिलकर होली का अद्भुत समां बांध रहे हैं।
होली के साथ हल्ला न हो तो होली का असली आनंद नहीं मिलता है। इसलिए जाट ठाठ से रेल पटरियों पर हल्ला मचा रहे हैं। वैसे हल्ला वे भी मचा रहे हैं जिनकी रेलें या तो रद्द की जा रही हैं या देरी से आ रही हैं। वैसे जाटों ने सुन लिया तो वे सक्रिय हो जायेंगे कि जब हम शान से पटरियों पर लेटे हुए हैं तो फिर रेलें देरी से भी कैसे पहुंच रही हैं। टिकट काऊंटरों पर अफरा-तफरी का माहौल है। टिकट कैंसिल करवा लें या न करवायें। जाटों को गुमान तक नहीं है कि जाट जब रेल पटरियों पर लेटे लेटे थक कर दिशा मैदान को चले जाते हैं तो चौक रेलें उन पटरियों पर से होकर गुजर जाती हैं और जो गुजर जाती हैं, वे लेट हो जाती हैं पर पहुंच जाती हैं।
कोई इंसान निबुर्द्धि हो तो हो पर रेलें नहीं हैं कि इंसान के उपर से निर्मम होकर गुजर जायें। जाटों का रेल पटरियों पर लेटना, रेलों के लेट होने से अलग है, पर कौन समझाये। पीएम तो मजबूर हैं। वे कुछ करेंगे नहीं। वे लेट भी नहीं सकते क्योंकि वे जाट नहीं हैं। पीएम लेटे हुए हर स्थिति पर निगाह रख नहीं सकते, इसलिए कुर्सी पर मजबूर हैं। आप देख रहे हैं कि हमारे देश में एकाएक लेटना और मजबूर होना गति पकड़ चुका है। समझा जा रहा है कि इस पर ब्रेक भी नहीं लगाया जा सकता परंतु चैनल सक्रिय हैं, वे ब्रेक नहीं लगा पाते परंतु मजबूर नहीं हैं इसलिए ब्रेकिंग न्यूज जरूर जारी कर देते हैं, इस कार्य में वे लेट नहीं होते हैं।
इस प्रकार होली का मौसम है। दीवाली पर पर्यावरण का धुंआ उड़ाया जाता है। होली पर गुब्बारे मारे जाते हैं, पर जिन्हें मारे जाते हैं, वे जीवित रहते हैं, थोड़ा सा उनका रंग बदल जाता है, कुछ मस्ती का रंग चढ़ जाता है और गुब्बारे मर जाते हैं।
बहुत सटीक कहा आपने.
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