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हाई टेक होली का जमाना

इस बार होली हाई टेक होकर आई है. आप कौन से रंग की होली खेलना चाहते हैं. बस एक बार जाहिर करें, आपका मोबाइल वही रंग उगलने लगेगा. आप घबरा रहे हैं कि सामने वाले के ऊपर रंग डाला तो उसका मोबाइल भीग जाएगा, लेकिन वही मोबाइल आपको रंगों से सराबोर कर डालता है. जिसका बटन दबाते ही सामने वाले के चेहरे की रंगीन फेसबुक बन जाएगी. आप उस मोबाइल से संदेश भेजते हैं, तो उसमें से बतौर संदेश रंग भरे गुब्बारे निकलते हैं और पूछते हैं, बोल मुझे भेजने वाले, मेरे स्वामी, मेरे बिल को भुगतने वाले, जल्दी बतला मुझे, किसके फेस को रंगीन करना है, या रंगहीन करना है. मैं दोनों काम करने में भली-भांति सक्षम हूं. आजकल जिन्न दीये को रगड़ने से नहीं, मोबाइल के बटन को क्लिकाने से, निकलता है. होली का यह हाईटेकीय स्वरूप मोबाइल और कंप्यूटर के मेल से ही संभव हो पाया है. होली पर रंग इतने नहीं होते हैं, जितनी उनकी उमंगें हसीन होती हैं. उमंगों में बसी तरंगें उन्हें सदा युवा रखती हैं. उमंगों पर कभी बुढ़ापा असर नहीं करता है. जिस तरह काले रंग पर कोई दूसरा रंग असर नहीं करता है, बिलकुल उसी प्रकार उमंगों में सदा जवानी उफनती रहती है. होली हो या न हो, उमंग शरीर के प्रत्येक अंग से फूट पड़ती है किसी गीले रंग भरे गुब्बारे की तरह और आपको मस्ती से सराबोर कर देती है. इन उमंगों को लूटने के लिए सभी तैयार रहते हैं. आप भी तैयार हैं न? सभी के अपने अपने रंग हैं. अलग-अलग स्टाइल हैं. आप कितनी ही होली खेल खिला लें, अगर आपने साली को रंग नहीं लगाया तो काहे की होली. वैसे महंगाई और भ्रष्टाचार मिलकर खूब होली खेल खिला रहे हैं. महंगाई इतरा रही है. उसका चौखटा काला है पर उससे बच न सका कोई साली या साला है. महंगाई अब पूरे वर्ष होली खेलती है, कभी प्याज से, कभी आलू से, कभी टमाटर से, आजकल नींबू से खेल रही है. महंगाई जिससे भी होली खेले पर निचोड़ी जनता जाती है. वो होली खेलने में मगन रहती है. पर अपने ऊपर रंगों की फुहार से वो इतना ओत-प्रोत हो जाता है कि चारों तरफ से लिप-पुत जाता है. कहीं से कुछ नजर नहीं आता है. अंधाता नहीं है पर खुली आंखें भी मुंदी रहती हैं. चैन पल भर नहीं लेने देती है महंगाई, न होली पर, न दिवाली पर दिवाली की होली और होली की दिवाली ऐसे ही मनती है और जनता मतवाली रहती है और उसका दिवाला निकल जाता है. पर सभी को ऐसे उत्सव ही भाते हैं. सभी रंगाते हैं और साथ में होली के फिल्मी गीत गुनगुनाते हैं. कहीं भांग सॉन्ग बनकर ओठों से फूटती है. होली अभी दरवाजे पर है. माहौल बन रहा है. मैं भी सोच ही रहा हूं कैसे इस बार हाईटेक होली का बेनिफिट उठाऊं. फेसबुकिया फ्रेंड्स को रंगों से कैसे नहलाऊं. कोई आइडिया हो तो बताना, मैसेज टाइप कर सेंड का बटन दबाना. n अविनाश वाचस्पति

1 टिप्पणी:

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