गाँधी कब का भूलते, दो अक्तूबर दोस्त | दायें बीयर बार पब, बाएं बिकता गोश्त | बाएं बिकता गोश्त, पार्क में अनाचार है | उधम मचे बाजार, तडपती दिखे नार है | इत मोदी का जोर, बड़ी जोरों की आँधी | उत उठता तूफ़ान, दिखा गुस्से में गाँधी ||
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गाँधी कब का भूलते, दो अक्तूबर दोस्त |
जवाब देंहटाएंदायें बीयर बार पब, बाएं बिकता गोश्त |
बाएं बिकता गोश्त, पार्क में अनाचार है |
उधम मचे बाजार, तडपती दिखे नार है |
इत मोदी का जोर, बड़ी जोरों की आँधी |
उत उठता तूफ़ान, दिखा गुस्से में गाँधी ||