फेसबुक पर फांसी से संवाद : दैनिक जनसंदेश टाइम्‍स 12 फरवरी 2013 के स्‍तंभ उलटबांसी में प्रकाशित



मुन्‍नाभाई : फांसी महारानी आज तो खूब खुश हो।
फांसी : खुशी की ही बात है कि आतंकवादियों को निपटाने में मेरी भूमिका निरंतर काम आ रही है।
मुन्‍नाभाई : लेकिन किसी का जीवन लेना,  ईश्‍वर के काम में इंसान का सीधा दखल है।
फांसी : दखल है पर इस दखल की शुरूआत आतंकवादियों ने ही की है।
मुन्‍नाभाई : जरूरी नहीं है कि बुराई मिटाने के नाम पर बुरे इंसान को ही मिटा दिया जाए, उसे सुधारने की कोशिश की जा सकती है।
फांसी : अनेक बार बुरे इंसान को मिटाना बहुत जरूरी इसलिए हो जाता है क्‍योंकि इससे कम पर समझौता करने से अवाम में गलत और सरकार के ढीला होने का संदेश जाता है।
मुन्‍नाभाई : फिर भी प्राणिमात्र का जीवन छीनना सर्वसम्‍मति से स्‍वीकार्य क्‍यों नहीं है ?
फांसी : इसका कारण प्रत्‍येक प्राणि के जीवन के प्रति भारतीय संस्‍कृति का अनुराग भाव है।
मुन्‍नाभाई : लेकिन रस्‍सी की सक्रिय भूमिका का अलग से जिक्र न किया जाना ?  
फांसी : सबको मिलकर ही मेरा रूप निखरता है, यह टीमभावना है।
मुन्‍नाभाई : पर फांसी देकर मारने में तड़पाने के निहितार्थ छिपे हैं ?
फांसी : गोली से मरने में ऐसा मजा कहां ?
मुन्‍नाभाई : मरने में भी भला किसी को मजा आया है ?
फांसी : यह किसी मरने वाले से पूछो तो जानो।
मुन्‍नाभाई : मतलब मरने में भी मजा, यह तो ...
फांसी : तड़पने वाला तो मरने में मजा पाता है इसलिए सरकार इस पर रोक लगाती
है।
मुन्‍नाभाई : सरकार क्‍यों नहीं चाहती कि पब्लिक किसी भी तरह का मजा लूटे ?
फांसी : अगर सरकार ऐसा चाहती होती तो सबसे पहले महंगाई और भ्रष्‍टाचार की गरदन रस्‍सी से जकड़ती। पर मजे पर सरकार का एकाधिकार बना रहेगा।
मुन्‍नाभाई : सरकार चाहती तो बहुत है पर उसकी कोशिशें चुनाव के आसपास ही दिखाई देती हैं।
फांसी : वह सरकार के हाथी वाले वे दांत हैं जो दिखलाने के लिए होते हैं।
मुन्‍नाभाई: मतलब तुम यह कहना चाह रही हो कि यह सब वोट लूटने के हथकंडे हैं।
फांसी : तुम सही समझे मुन्‍ना, वरना तुम्‍हें समझाने को मुझे सर पड़ता धुन्‍ना,  पर फिर भी न समझा पाती।।
मुन्‍नाभाई: अन्‍ना को तो तुमने नहीं समझाया फिर उन्‍हें कैसे समझ आया कि लोक के साथ साथ उन्‍हें भी पागल ...   ?
फांसी : अपनी हद में रहो मुन्‍ना।
मुन्‍नाभाई: कैसी हद ?
फांसी : सुनो मुन्‍ना, अन्‍ना की नीयत तो बिल्‍कुल साफ थी।
मुन्‍नाभाई : फिर ?
फांसी : फिर क्‍या, उसे तो बहकाया गया, बरगलाया गया।
मुन्‍नाभाई : फिर वह अपनों के खिलाफ ही बोलने लगा।
फांसी :  और गन्‍ने की मिठास जाती रही।
मुन्‍नाभाई : सारा जमाना कड़वाहट से भर गया।
फांसी : और अब भी कड़वाहट मन में बसी हुई है। सरकार अपने षडयंत्र में सफल हो गई।  इसलिए आज मेरी स्‍वीकार्यता बढ़ती जा रही है। जबकि मुझ महारानी से गले मिलने के लिए कोई तैयार नहीं है। क्‍योंकि उन्‍हें उम्‍मीद है कि किसी राष्‍ट्रीय अवकाश के लिए दिन उन्‍हें भी छुट्टी मिल जाएगी और वे उम्र की कैद से बाहर आ सकेंगे।

तभी यकायक लाइट गई और फेसबुक पर फांसी से हो रही बात टूट गई।

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