पीएम मिल गया : दैनिक जनसंदेश टाइम्‍स 11 सितम्‍बर 2012 'उलटबांसी' स्‍तंभ में प्रकाशित

विद्वान बतला रहे हैं कि देश पीएम की तलाश में भटक रहा है। मुझसे इन सबकी पीड़ा नहीं देखी जाती। मैं कविहृदय और व्‍यंग्‍य विधा का कॉम्‍बो लेखक हूं। मुझे यह भी बतलाया गया है कि वेहर बार कंट्रोल प्‍लस एफ’ दबाते हैं किंतु कंप्‍यूटरदेव फाइंड (Find) के बदले फेल (Fail) दिखला रहे हैं। देश का महाबुद्धिजीवी वर्ग को परेशान जानकर मुझे महसूस होने लगा है कि मेरे शानदार दिन आने ही वाले हैंइस समस्‍या से निजात दिलाने वाला मैं एकमात्र शख्‍स हूं। इस हकीकत को ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ समझने की भूल मत कीजिएगा। मुझे संपूर्ण आदर के साथ पीएम सर’ जैसे शब्‍दों से संबोधित किया जाया करेगा और मैं शान से अपना सिर उठाकर और सीना पूरी चौड़ाकर पीएम की कुर्सी पर बैठ तथा सो सकूंगा।

मेरे अपने प्रतिमान होंगे। इस संबंध में मैं किसी से समझौता या ढीली-ढाली डील नहीं करूंगा। पीएम की कुर्सी की साख में किसी को बट्टा तो बट्टाएक कंकरी तक नहीं मारने दूंगा और जब-जब चुप रहने का मन करेगा, पहले से ही सोशल मीडिया की सभी साइटों पर खरी-खरी लिख दूंगा। जिसके जरिए इंटरनेट की लती पब्लिक को मालूम चल जाएगा कि मैं ध्‍यान-साधना मोड’ में एक्टिव हूं। जबकि असलियत में, मैं उस समय यह विचार कर रहा होऊंगा कि कौन से हथकंडे अपनाने पर किसी को मेरे इस नजरिए की भनक भी न लग सके। मैं अपने इर्द-गिर्द कई किलोमीटर तक की रेंज में अपने तईं सलाहकारों की फौज नहीं पालूंगा और अपनी ही मानूंगा। चाहे इसे कोई हिटलरी टाईप मनमानी’ का ही नाम देकर मुझे पोक (फेसबुक की एक क्रिया) करता रहे। दूसरों की मानने से सब पालतू-फालतू का शोर मचाने लगते हैं। जिसमें देशवासी और विदेशवासी सिर्फ इंसान ही नहीं, पत्रिकाएं भी शुमार हो जाती हैं।
राजनीति के इस मुश्किल दौर में गारंटी-वारंटी के मामले की घंटी न जाने कब की बजाई जा चुकी है। मिलावटी दूध के स्‍नानित सलाहकारों पर विश्‍वास करना अपने ही ताबूत में लोहे की कील ठोकना है और मैं मरने से पहले अपने ताबूत में न कील ठोकूंगा और न किसी को ठोकने दूंगा।
कील से मुझे याद आया कि कील ठुंकने की फीलिंग कितनी तीखी होती है। एक बार मैं बेध्‍यानी में एक कील निकली कुर्सी पर बैठ गया था। मुक्‍तभोगी हूं इसलिए जानता हूं कि कील की चुभन कार्टून से भी तीखी होती है। व्‍यंग्‍यकारों के कंटीले बाणों को भी बर्दाश्‍त किया जा सकता है किंतु कील की चुभन होने पर तिलमिलाना लाजमी हो जाता है। मैं जब कील चुभने पर भिनभिनाया थातब मुझे अहसास हुआ कि कील के चुभने से राहत दिलाने के लिए कोई शातिर वकील भी किसी काम नहीं आता है।
माहौल इतना कीलनुमा हो चुका है कि चुभोने वाले तो कोयले में कीलें चुभोने की चतुरता दिखला रहे हैं कभी आपने किसी चील को कील चुभोने का प्रयास किया हो तो जानो कि वह आंखों के डैने नोच लेती है। क्‍या आप चाहेंगे कि आपकी ऐसी दुखद स्थिति हो, नहीं न, तो फिर समझ लो कि आपकी पीएम की तलाश पूरी हो चुकी है और अब आपको कहीं पर भी अटकना-भटकना नहीं है।

1 टिप्पणी:

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