मौसम है बिग बॉसियाना : दैनिक हरिभूमि 12 अक्‍टूबर 2012 में प्रकाशित



मौसम पार्टी पार्टी हो रहा है, सुनकर यह मुगालता मत पाल लीजिएगा कि किसी फाइव या सेवन स्‍टार होटल में विदेशी शराब और मांसाहारी व्‍यंजनों की बाबत चर्चा हो रही है और इसमें शामिल होने का निमंत्रण बस मिलने ही वाला है। यह वो वाली पार्टी नहीं है। इस पार्टी का कनैक्‍शन सरकार से है, बिजली से चाहे न हो किंतु करेंट से जरूर है। यह जरूरी भी है बिना करेंट के मौसम कैसा भी हो, गर्मियों के आसपास उमस हो ही जाती है। इस बार यह उमस सत्‍ता पक्ष के लिए है। इस उमस में 2 जी से लेकर दमदार दामाद जी तक दमदमा रहे हैं। कह सकते हैं कि राजनीति में दमादम मस्‍त कलंदर के जमाने बीतते महसूस हो रहे हैं जबकि ऐसा बिल्‍कुल नहीं है। ताकतों की कटाई यूं ही नहीं हो जाती है, काफी अरसे तक कताई बुनाई का सिलसिला चलता रहता है,सो चल रहा है।
पक्ष और विपक्ष के जानवर और पक्षी सक्रिय हैं। विपक्ष भी भिन्‍न भिन्‍न प्रकार के पक्षियों से भरा है और पक्ष में पक्षियों के अतिरिक्‍त जानवर भी सक्रिय हैं। जानवर सिर्फ पशुबल से ही ओत प्रोत नहीं हैं अपितु धनबल पाकर धन्‍य धन्‍य हो रहे हैं। मंदिर और टॉयलेट खूब विवादों में हैं। प्राकृतिक आपदाओं से डटकर मुकाबला किया जा रहा है। पहले मंदिरों की मायावी दुनिया पर खूब विमर्श होता रहा है। कभी मस्जिद के साथ, कभी इंसानों के साथ। पिछले दिनों एक बदलाव आया है। जबसे योजना आयोग ने लाखों के टॉयलेट्स बनवाए हैं, तभी से टॉयलेट्स उपेक्षा नहीं, अपेक्षा से भर उठे हैं। उनके प्रति उपेक्षा अब अपेक्षा में बदल चुकी है। खर्च हो रहे हैं और करोड़ों मिल रहे हैं। इसका जिक्र तक नहीं किया जाता था किंतु अब इनके जिक्र के बिना मंदिरों में घंटियां तक नहीं बज रही हैं।
मौसम बिग बॉस का भी नगाड़े बजा रहा है। एंटरटेनमेंट मिंट के सुखद अहसास से भर गया लगता है। सिद्धू को उनके अपने बाहर से ही डांट-फटकारने में मशगूल हैं। जानते हैं कि वे जहां पर हैं, वहां पर इनकी धुन नहीं पहुंच रही है किंतु ये भुनभुना रहे हैं। कसमसा रहे हैं। मसमसा रहे हैं। इनको जप ही भाता है, सो जप रहे हैं, जपा रहे हैं। सलमान इतने पसंद किए जा रहे हैं, सक्रिय नजर आ रहे हैं।  इनकी बजाय अगर खूबसूरत सलमा भी मैदान में उतर आएं तब भी इतनी ख्‍याति हासिल न कर सकें। आजकल बलमा शक्तिपुंज हैं, सलमा प्रेमपुंज शुरू से ही रही हैं। सलमा और बलमा या बलमा और सलमा गुड़ खा रहे हैं, गुलगुलों का स्‍वाद भी ले रहे हैं। जो प्राण पहले सलमा पर निछावर किए जाते रहे हैं अब यह जान की बाजी, दामादजी के लिए लगा दी गई है। कितने ही आतुर हैं लगता है जग से भय का नामोनिशान मिट चुका है। 50 लाख से 300 करोड़ बनाने का गोपनीय धंधा ओपनीय हो चुका है। इसके फार्मूले की तलाश में सब जुट गए हैं। यह जुटान ही दरअसल लुटान है। सब लूटने को ठाने बैठे हैं। आम पब्लिक के भाग्‍य में तो लुटना ही लिख दिया गया है, भाग्‍य से भागने में ही भलाई है।
बात पार्टी की हो रही थी। पार्टी पर होने वाले खर्चे की हो रही थी। परंतु तकनीक इतनी तेज हो गई है कि पार्टी टिकटें बेचकर कमाई कर रही हैं। सोच रहा हूं कि एक पार्टी मैं भी बना लूं, चुनाव न लडूं, चुनाव के लिए टिकट बेचकर ही नोट कमा लूं। टिकटें खरीदने वाले खूब सारे नोट लेकर तैयार रहते हैं, वो नोट मैं समेट लूं वैसे भी मुझे सत्‍ता में आने पर ताकत नहीं नोट बटोरने का ही शौक है। नोट आने के बाद खुदबखुद मैं ताकतवर हो ही जाऊंगा। धनोबल अब मनोबल में खूब इजाफा करता है। इसे सब पहचानने लग गए हैं। आप तो इससे अपरिचित नहीं हैं न ?


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