गरीबी की पहचान : डीएलए दैनिक में 11 फरवरी 2013 में प्रकाशित



गरीब की नई परिभाषा योजना आयोग की एक विशेषज्ञ समिति के बतलाने के बाद से देशभर में गरीब होने के लिए होड़ मच गई है। नतीजा, अब लोग करोड़पति नहीं, गरीब होने के लिए बेताब हैं। आज गरीब वह है जिसका नाम ‘गरीब’ है, किंतु गरीबदास, गरीब नहीं है। अमीर होने के खूब सारे दुख हैं, गरीब होने के इस भारत देश में तमाम सुख हैं। गरीब का दास, गरीब नहीं, गारंटिड अमीर है। अमीरदास गरीब हो सकता है। पर गरीब का दास गरीब ही रहेगा।

गरीबी में पहले शून्‍य की भरमार हुआ करती थी, जिससे उसे चीन्‍हने में बहुत आसानी होती थी।  गरीब कौन है, यह बहस इतनी जोरों पर है, जिसके मुकाबले पीएम की कुर्सी पर कब्‍जाने की होड़ धीमी पड़ गई है। आज हालात ऐसे हो गए हैं कि जो इंकम टैक्‍स नहीं चुका पा रहा है या चुकाने से बचने की जुगत में लगा रहता है, वह गरीब मान लिया गया है। जो दाल रोटी नहीं जुगाड़ पा रहा, गरीब वह नहीं, बल्कि वह है जो पिज्‍जा, बर्गर, हॉट डॉग नहीं खा रहा है। सब गरीब होना चाहते हैं, गरीब को ही बिना रुपये खर्च किए चूल्‍हा और गैस सिलैंडर सरकार बांट रही है। बांटने वालों ने लाइन लगा रखी है जबकि लेने वाले नदारद हैं।

मोबाइल होना अमीरी की पहचान है किंतु मिस काल करना गरीबी की नई पहचान है। गरीबी नियोजित और सुनियोजित होने लगी है। जिसकी गरीबी प्रायोजित हो जाती है, वह समझ लेता है कि अब वह असली गरीब हो गया है। गरीबी एक महिला है, वह महिला होते हुए भी सुरक्षित नहीं है। बस में बैठकर भी वह असुरक्षित इसलिए है क्‍योंकि बस में पुरुष है।

आपके पड़ोसी के पास एसी, कार, वाशिंग मशीन, फ्रिज है तो आप अमीर हैं। अमीर के पड़ोस में अमीर ही रह सकता है, गरीब कैसे रहेगा। जबकि देश में डेमोक्रेसी है, इस क्रेसी के जितने डेमो हैं, सब क्रेजी हो गए हैं, यह संगत का ताजा असर है।  देश के सभी हाईवे रोड खूब अमीर हैं, उन पर कार, ट्रक, बस दौड़ते हैं और सारे टैक्‍स चुकाते  हैं।  सारा टैक्‍स सड़क के बैंक एकाउंट में जमा होता है जिसका थोड़ा अंश वसूलने वाले अपनी जेबों में भी डाल लेते हैं। इससे खास फर्क सरकारी महकमों को नहीं पड़ता।

योजना आयोग की इस विशेषज्ञ समिति ने भिखारियों, कबाडि़यों, माली, स्‍वीपर और मजदूरों को भी गरीब माना है। इससे सड़कों पर भिखारियों, कालोनियों में कबाडि़यों, पार्कों में मालियों और सड़कों पर सफाईकर्मियों की संख्‍या में रिकार्ड तेजी आई है, इस तेजी को गिन्‍नीज बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकार्ड में शामिल करवाने की कवायद चल रही है। हाथ से कपड़े धोने वाला, मोबाइल फोन में बेलेंस नहीं है, इसलिए चिल्‍लाकर बात करने वाला गरीब है। जो देश की संसद के दर्शन नहीं कर पा रहा है, वह भी गरीब है। यह जानकर संसद के पास इकट्ठी भीड़ एकदम से छंट गई है, आंसू गैस भी नहीं छोड़नी पड़ी है, पुलिस भी डंडे चलाकर बदनाम होने से बच गई है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. सब कुछ हो गया है, पर असली गरीबी ज्‍यूं की त्‍यूं है और नकली गरीबी राजनीति कर रही है। भयंकर राजनीति, यहां तक कि सत्‍ताधारी इनसे डर खाए बैठे हैं।

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  2. ये गरीब (खुर-पशु) प्रजातंत्र ( पंजातंत्र ) से बचकर कही नहीं भाग सकते ! उम्दा आलेख !

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