प्‍यार की पुंगी बजाते चलो : दैनिक हरिभूमि में 25 अप्रैल 2012 अंक में प्रकाशित

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घास चिल्‍ला चिल्‍लाकर कह रही है लेकिन कोई गधा नहीं सुन रहा है। सब घास खाने में तल्‍लीन हैं। गधे का स्‍वभाव है कि जो मिल जाए, खाए जाओ और घास हरी हो या लाल। लाल चाहे बापू का खून हो लेकिन गधा भी तो धोबी का लाल है। लाल वही जो कमाई करके दे, गधा खूब लाद कर ले जाता है और कमाई होती है। कमाई को लादने की जरूरत नहीं होती क्‍योंकि वह तो धोबी की जेब में समा जाती है। धोबी गधे पर लादे कपड़ों की भरपूर धुलाई करता है, उन्‍हें चमकदार बनाता है लेकिन गधे को एक दिन भी नहीं नहलाता। कहता है कि वह तो कपड़ों को भी कूट पीट कर चमकाता है। अगर गधे को चमकदार बनाने की कोशिश की और वो कुछ ज्‍यादा ही चमक गया तो जरूर किसी चिकनी चमेली गधी के पीछे हो लेगा, और उसकी कमाई को दुलत्‍ती लग जाएगी। यह प्‍यार की पुंगी बजना है, बजाते चलो। बाबा बजा रहे हैं, नीलामी करने वाले बजा रहे हैं तो व्‍यंग्‍यकार और अखबार वाले भी इस दौड़ में पीछे क्‍यों रह जाएं।
गधे की इस दुलत्‍ती से बचने के लिए धोबी का तर्क मौजूं लगता है लेकिन चिकना बनाने के चक्‍कर में ज्‍यादा कूट पीट दिया या निचोड़ पटक दिया तो उसके खून से भी घास लाल हो जाएगी। इससे भी बचने के लिए वह गधे को नहलाने से बचता रहा है। वैसे भी गधा नहाए या बिना नहाया रहे, कमाई तो उतनी ही करेगा। दुलत्‍ती भी उतनी ही मारेगा और ढेंचू ढेंचू में भी उसकी कोई फर्क नहीं आएगा। जितना समय गधे को नहलाने में बरबाद होगा उतने में तो और पचास जोड़ी कपड़े धो पटक लेगा और अपनी कमाई में इजाफा करेगा।
मामला बापू के खून से सनी घास की नीलामी का है और मैं भटक या अटक गया हूं धोबी और गधे पर। धोबी की कमाई पर क्‍योंकि कमाई की जो महत्‍ता है, वह सर्वोपरि है। कमाई का मामला हो तो भटकना स्‍वाभाविक है। आजकल बाबा किरपा कर रहे हैं लेकिन असल मामला नोटों का है। नोट में लोटने के लिए बाबा बनना सबसे अच्‍छा बिजनेस है। चाहे कोई बाबा कहे या गधा कहे, गधा मिट्टी में लोटेगा और बाबा नोटों में, धोबी घाट पर लेकिन घाट के पत्‍थर पर लोटना उसकी नियति है, गधा इसलिए धूल में लोट कर खुश हो लेता है। पत्‍थर की प्रकृति सख्‍त होना है। वह मुलायम नहीं हो सकता, उससे भगवान बना दो या इंसान की मूर्ति लेकिन सख्‍ती उसमें से गायब नहीं हो सकती है। वही सख्‍ती माया या उसके हाथियों की मूर्तियों में से गायब होने की भनक पाकर, माया हनक में लौट आई है। यह किसने कहा है कि जो हार जाता है, वह हनक नहीं रखता। हारने के बाद क्‍योंकि अब उसकी निगाहें केन्‍द्र पर हैं जो जरूर तो सत्‍तरवें आसमान पर ही होगा, क्‍या आपको इसमें कोई शक है ?

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