मच्‍छर बड़ा दिलदार निकला : दैनिक जनवाणी 13 नवम्‍बर 2012 स्‍तंभ 'तीखी नजर' में प्रकाशित

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 ‘मैं डेंगू मच्‍छर हू’ जल्‍दी ही आप ओपनमैन की सभाओं में, टीवी चैनलों की फिजाओं में, अखबारों की कालिमा में मतलब चहुं ओर ऐसे टोपीधारक पाएंगे। जो मच्‍छर मच्‍छर चिल्‍लाएंगे, किंतु काट किसी को नहीं पाएंगे। मैं भी मच्‍छर, तू भी मच्‍छर, ये भी मच्‍छर, वे भी मच्‍छर हैं। नेता कहते पाए जा रहे हैं कि मच्‍छरों तंग मत करो। आजकल ऐसे बयान थोक दरों पर उपलब्‍ध हैं। इन बयानों से आपको हैरानी हो सकती है किंतु टोपियों से परेशानी नहीं। टोपी पहनने और पहनाने का चलन फिर से जोरों पर हैं। जिस प्रकार वाहनों के पीछे शेर लिखे जाते हैं, उसी प्रकार आजकल टोपियों पर पंच लाईन मढ़ी जा रही है। आम आदमी चलता फिरता वाहन नजर आ रहा है। टोपी पहनकर अपनी स्‍पीड बढ़ा रहा है। बीते जमाने में रिक्‍शे पर फिल्‍मी पोस्‍टर लगाकर आने वाली और चल रही फिल्‍म की मुनादी रिक्‍शे के आगे ढोल पीट रहे ढोलचियों के जरिए कराई जाती थी और उससे फिल्‍म के व्‍यवसाय में इजाफा होता था। 

आजकल उन ढोलकों को आप गले के फंदे के तौर पर कसा हुआ देख रहे हैं। इससे ढोलकों की पौ बारह और तबलचियों की पौ सत्‍तर हो गई है।  आज वह शुभ कार्य तबलचियों के जिम्‍मे आ पड़ा है और वह उसे पूरी शिद्दत से निबाह रहा है। इनमें वे लोग हैं एक तो वे जो ओपनमैन के मुरीद हैं और दूसरे खुद ओपनमैन डेंगू मच्‍छरों के फैन है। किंग खान वाला किस्‍सा फिजा को संगीन यादों से रंगीन कर रहा है।

लोग सीधी ऊंगली से घी नहीं निकालते हैं क्‍योंकि कम निकलता है।  ऊंगली टेढ़ी करने या घुमाने फिराने से भी मनमाफिक नतीजा नहीं मिलता है। सो आज सीधी ऊंगली से बरतन को टेढ़ा किया जाता है। टेढ़ा बरतन तुरंत उलटता है और घी की मनचाही मात्रा हासिल हो जाती है।  सीधी ऊंगली से घी के बरतन को टेढ़ा करना कामयाबी की नई मिसाल है। मच्‍छर को सबसे पहली सुर्खी नाना पाटेकर के संवाद की देन है और दूसरी अब ओपनमैन की। एक अभिनेता है और दूसरा अभी-अभी नेता बना है। मच्‍छर की किस्‍मत बुलंदी के शिखर पर है, वह आम आदमी के सिर पर टोपी बनकर छाने वाला है। मच्‍छर अगर फेसबुक खाता खोल ले या ट्विटर एकाउंट बना ले तो शर्तिया सोशल मीडिया के शहंशाहों को बुरी तरह पछाड़ देगा। आखिर पिछले हफ्ते ही उसने कसाब को काटा है। कसाब डेंगू मच्‍छर के जहर से भी जहरीला निकला इसलिए बच गया और जिस मच्‍छर ने काटा, वह मर गया।

मच्‍छर निरक्षर लिखे हुए को पढ़ना नहीं जानता किंतु कसाब को पहचानता है। जरूर किसी खुफिया विभाग में रहा होगा या किसी खुफिया अधिकारी को खुफिया तरीके से काटा होगा। कसाब को काटना उसने ओपनीय रखा है गोपनीय नहीं। पंखा चलाओ तो मच्‍छर भाग जाते हैं। मच्‍छर का मंडराना जब मन को दिखाई नहीं देगा। मच्‍छर गूंज गूंज कर, मंडरा मंडरा कर आम आदमी के मन को डराने में मशगूल है ओपनमैन के माफिक। यह मच्‍छर का प्रिय शगल है।

मच्‍छर जब खून का स्‍वाद ले चुका होता है और अपनी सुई आम आदमी की त्‍वचा से बाहर निकालता है, तब टीस जरूर होती है किंतु तब तलक बहुत देर हो जाती है, मच्‍छर खून पी चुका होता है। आप टीस वाली जगह पर ताली बजाते हैं और मच्‍छर चुपके से खिसक जाता है। आप थोड़ी देर से प्रतिक्रिया करते तो आपके खून के नशे में अलमस्‍त वह अवश्‍य शिकार बनता। ‘मच्‍छर का पट्ठा’ बड़ा दिलदार निकला। उड़ कर बचने वालों का सरदार निकला। वे कह रहे हैं कि मच्‍छर का काम भुनभुनाना है और ओपनमैन यही कर रहा है। ओपनमैन मच्‍छर की तरह गजब नहीं ढा पाएगा। कसरत जो मच्‍छर करते हैं, वह उसके बस की नहीं है, फिर कैसे साबित करेगा कि ‘मैं डेंगू मच्‍छर हूं।‘ जिस जिसको उसने काटा है, चूमा है अथवा चाटा है, वे सब सुरक्षित हैं।  
तुम मच्‍छर हो, विषधर होते तो तनिक चिंतित हम होते, सोचते, किंतु सत्‍ता रूपी धरा के विषधर हम हैं। विषधरों की मंडली से नाहक ले रहो हो पंगे, पानी से पलते हो किंतु पानी ही तुम्‍हारी मौत का सबब बन सकता है, नहीं जानते इसलिए बचा नहीं पाओगे खुद को, कर देंगे पानी से ही इतने घाव।

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