फेरबदल या हेराफेरी नहीं है .. चोरी : दैनिक हिंदी मिलाप स्‍तंभ 'बैठे ठाले' में 19 नवम्‍बर 2012 को प्रकाशित

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मौन रहके कोई कितना मुखर हो सकता है,मौनी बाबा से बेहतर मिसाल नहीं मिलेगी। उनके कुनबे में फेरबदल होती है तो शतरंज की तरह मोहरे बदले जाते हैं और मुखिया खुद मोहरा बन जाता है। ऐसी हेराफेरी निःशब्द होती है और मीडिया प्रायोजित रूप से स्तब्ध रह जाता है। यह सब पूरी ईमानदारी के साथ होता है और जनता को काटने के लिए हथियार बदल दिए जाते हैं। जनता को नए सपने देखने का संकेत किया जाता है और इस बहाने कई फूटे-अधूरे सपने पूरे कर लिए जाते हैं। मलाई खाने वाले अघाकर एक ओर हो जाते हैं तो नई पारी के लिए दूसरे अपनी जीभ तैयार करने लगते हैं। मलाई खाकर देशसेवा का बोनस मिलता है, सो अलग मन को मोह लेता है।
ईमानदार को यह अधिकार है कि वह ईमानदारी पर डटा रहेसो जमा हुआ है अंगद के पांव के माफिक। फिर उसे हिलाने वाले कैसे कामयाब हो रहे हैंइसे जानने के लिए हालातों पर गहराई से गौर करना निहायत अनिवार्य है। बजाय इसके देश और इसके नागरिक फीलपांव का सुंदर अहसास कर रहे हैं क्‍योंकि उनके सामने परिस्थितियां ही ऐसी पेश की जा रही हैं। पब्लिक वही देखने के लिए मजबूर है जो उसे सत्‍ता पक्ष दिखलाना चाहता है। इससे अलग अहसास पब्लिक कैसे करेइसके लिए नया मीडिया आज अपने पूरे रुतबे के साथ मौजूद है। इसी से आत्‍मबल डगमग है। जिसकी डगमगाहट मुखिया के निर्णय में देखी जा रही है। पूरा मोहल्‍ला तो नहीं बदलाहल्‍का सा फेरबदल ही किया है। कौन कह रहा है कि हेराफेरी का बाजार जमा लिया है। अंत भला सो सब भला। सब भले रहेंचंगे रहेंचाहे पब्लिक के सामने नंगे रहें। किंतु वस्‍त्रों का अहसास होना ही काफी समझा जा रहा हैउन्‍हें पहनें अथवा नहीं पहनें। इसकी वजह में जाना सामाजिक दृष्टि से उचित नहीं है।
पंगे सिर्फ पब्लिक से ही लिए जाते हैं। टीम के मुखिया ने भूल कर दी तो कौन सा पहाड़ टूट कर आ गिराचुनाव आने पर उसकी पीठ पर हाथ फिरा देंगे। वह तसल्‍ली पाएगा,उनके चुनने का जुगाड़ सध जाएगा। एकाध नुक्‍कड़ वाले से ही तो बदला लिया है। कैप्‍टेन वही है जो चुप रहता हैचुप सहता है। जब विचारों की बाढ़ आती हैटीम सारी जुट जाती है। जिसका नाम टीम में नहीं हैजो सिर्फ दर्शक की हैसियत से शुमार हुआ था। फेरबदल को हेराफेरी की तर्ज पर बिठाकर इंतहा तक पहुंचायाअहसास यह किया कि इसको पीठ पर लादे चल रहे हैं। इसे ही कहते हैं कि आजकल गधों के ही नहींघोड़ों के भी सींग निखर रहे हैं। एक को सींग मारादूसरे से सींग पर पालिश करवाकर चमकवाया। सींग पर भरपूर चमक आई जिससे पब्लिक समेत विपक्ष चौंधिया गया। इसको टीम से निकालाउसको टीम में घुसेड़ा। दो चार को रुसवा किया। पब्लिक को हंसने के तोहफे दिए। एक दो ने भड़ास निकाली। डेढ़ ढाई की आस पूरी हुई। टीम में परिवर्तन से कामयाबी में तेजी की उम्‍मीद बंधी है किंतु इसके सिवाय कोई और निष्‍कपट रास्‍ता ही नहीं था। आपका सोचना भी सही है कि रास्‍ता नहीं था तो हवाई मार्ग से जाना चाहिए था। रेल की पटरियों को आजमाना चाहिए था किंतु क्‍या करें इतना सब्र होता तो अगले चुनाव होने तक इंतजार नहीं करते।
मंत्रियों को आप सिर्फ लोकल मंतर मारने वाला ही मत मान लीजिएगा। वे अपने खेल और मैदान के माहिर खिलाड़ी हैं। यह अकेले खेलने वाला खेल हैइसमें विजय पक्‍की होती है। उनकी जीत पर सिर्फ टिप्‍पणियां ही कर सकते हैं यहजबकि इनकी टिप्‍पणियों को कोई गंभीरता से लेता नहीं है। न सत्‍ता पक्ष और न आम जनता यानी पब्लिक। क्रिकेट टीम में फेरबदल और मंत्रिमंडल में यह फेरबदल हेराफेरी के पर्याय के तौर पर जाने जाते हैं। यह फेरबदल तो ऐसा है कि जो अभी तक साईकिल चलाता रहा हैउसको कार थमा दी गई है कि इस पर खूब सारी एवरेज निकालिएचाहे हादसे होते रहें। रेल और कार से दुर्घटनाएं करने के बाद भी हवाई जहाज उड़ाने को थमा दिया जाता है। देश के मौजूदा कानूनों से खिलवाड़ करने की योग्‍यता हासिल करने के बाद इन्‍हें विदेश तक जाने का लाईसेंस थमा दिया गया है। देश में मधुर संबंधों की जरूरत नहीं है किंतु विदेशों से नाते रिश्‍तों को मधुर बनाने के ठेके इन्‍हें सौंप दिए गए हैं।

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