वोट दो और मर जाओ : जनवाणी 25 दिसम्‍बर 2012 स्‍तंभ 'तीखी नजर' में प्रकाशित


आज का दिन बेहद बड़ा दिन। दिसम्‍बर माह की 25 तारीख। बड़े दिन में खुशियां होनी चाहिएं अनगिन। जबकि नहीं होतीं गिनने लायक भी। उंगलियों पर गिनने लायक भी हों तो तसल्‍ली हो जाए। दुख की वाट लग जाए। पर ऐसा होता नहीं है जबकि हर एक वोटर जरूरी होता है।  दिनों में भी भेद ही भेद, कोई भाव नहीं। दिन के आकार में भी हम नहीं ला पाए आज तक समाजवाद। दिन बड़ा है तो इस मुगालते में मत रहना कि पगार बड़ी होगी। पहले तीन शून्‍य जुड़ते थे तो अब चार शून्‍य जुड़ जाएंगे। एक दिन बड़ा बाकी दिन छोटे मोटे। चंद  दिन बढि़या और बाकी सब खोटे। दिनन दिनन का फेरदिन में भी हेर फेर। जिस दिन उपहार बांटे संताउस दिन बड़ा दिन बनता। जिसको हो डायबिटीज, उसका काहे का बड़ा दिन। मतलब दिन बड़ा बनता है मीठा खाने से। खुशियों का ग्राफ चढ़ता है मीठा खाने और खिलाने से। बाकी सब दिन छोटे और चोट्टे। चोट्टे में चोर नहीं,चोट हैचोट लगाने वाले छोटे से चींटे बड़े मुंहजोर हैं। सिर्फ इनका ही दिन बड़ा बाकी हिन्‍दू मुस्लिम सिख सब के सब चोर हैं। इसलिए इनके दिन छोटे। छोटे मतलब सिर्फ छोटेमोटे भी नहीं। दिन मोटा हो तो सेहत को राहत मिलती है। बिना ब्‍यायाम के यह राहत शारीरिक आफत बनती है। ठंड में नहीं कर पाते व्‍यायाम। इसलिए धूप हो चाहे कुहासा, सिर्फ आराम ही आराम। आराम हराम नहीं है। आराम सबका राम है। राम सबको भाता है परन्‍तु बड़े दिन के मौके पर संता बनता है। भगवान कोई भेद भाव नहीं करता है।

रजाई में सर्दी से बाहर निकलें तो करें कुछ काम तनिक व्‍यायाम लेकिन सर्दियां हैं। रजाईयों में ही मरने के दिन आ गए हैं। रजाई से बाहर निकल कर ठंड में मरने का रिस्क कौन ले। कंबल बांटने के दिन आए। रेवडि़यां बांटने नहींमूंगफली के साथ मिलाकर रेवडि़यां चाटने के दिन आए। चाटने पर रे‍वडि़यां काफी दिन चलती हैं क्‍योंकि कम घिसती हैं जबकि मूंगफली चाटने में नहींदांतों में भींच कर चटकाने में स्‍वाद आता है। दिल करो मजबूत बांटो रजाई। गरीबों को भी चाटने का मौका दो मलाई, न दे सको मलाई तो रजाई ही दे दो वह रजाई ओढ़कर ही मलाई का स्‍वाद ले लेगा। करेगा अब वह आपकी ही बड़ाई। बढ़ई होते तो सर्दी को लगाते ऐसा रंदा जिससे गर्माता आम आदमी और नेता वसूलता चंदा।  बलात्‍कारियों की गरदनों पर कसना चाहिए फांसी का फंदा। रस्‍सी वालों का भी चल निकलेगा धंधा। इंडिया गेट पर हुक लगाओउस हुक में रस्‍सी फंसाओ और रस्‍सी में फंसाओ गरदनअपनी किसने कहाबलात्‍कारियों की गरदन रस्‍सी के फंदे में धर दबोचो। नेता नहीं मान रहे हैं। उनका विश्‍वास पुख्‍ता है। आज बलात्‍कारियों को लटकाओगे और कल नेताओं को लटकाने के लिए बुलाओगे। जब वोटर नेता को फांसी देने के लिए पुकारेंगे तो आप उनकी बात मानोगे। इसलिए उस राह मत चलो। वह देश हुआ बेगाना। इस जहां में प्रत्‍येक कुकर्मी के लिए फांसी वाया फांसीगाना। गाने को गीत बनाओ। वोट को मीत बनाओ। वोट लो और ढकेल दो वोटर को। इसे वोटर की अस्‍मत लुटना कहते हैं। वोटर हैं इसलिए सब सहते हैं। वोट देने से पहले नेता कहते हैं। वोटर मेरे दिल में रहते हैं। बाद में कहते हैं ‘वोट दो और मर जाओ’।

खुद नहीं मरोगे तो मार दिए जाओगे। इंडिया गेट पर पानी की फौहार से, पुलिस के डंडों की धार से। पुलिस सुनार नहीं लौहार है। एक ही हथौड़ी से सबको भांजती है। आप चाहे आम आदमी हो, चाहे मीडियामैन हो, कैमरामैन हो, सबके हथौडि़यां पड़ेंगी और कचौडि़यां समझ कर सबको ही खानी पड़ेंगी। आप महिला हो, बुजुर्ग हो, बाल हो, बच्‍चे हो, हथौडि़यां खाने में कच्‍चे हो। खूब खाओ पेट भर भर कर हथौडि़यां समझ कर रेवडि़यां। हाजमा खराब होता है तो होने दो। खिलाने वालों ने हेलमेट पहने हैं और पहन रखी हैं वर्दियां। इसलिए उनकी सर्दियां बनी हैं गर्मियां। उस गर्मी के ताप से अपना प्रताप दिखाएंगे।

4 टिप्‍पणियां:


  1. वोट दो और मर जाओ!
    वाह ! नेकी कर दरिया में डाल से आगे का दर्शन लगता है यह ...
    वोट देने से पहले नेता कहते हैं- वोटर मेरे दिल में रहते हैं। बाद में कहते हैं- ‘वोट दो और मर जाओ’
    खुद नहीं मरोगे तो मार दिए जाओगे।
    इंडिया गेट पर पानी की फौहार से,
    पुलिस के डंडों की धार से।

    बेड़ा गर्क हो इन बांगड़ुओं का
    :(

    आदरणीय अविनाश वाचस्‍पति जी
    आपके व्यंग्य कमाल के होते हैं
    :)
    बधाई लगातार छपते रहने के लिए भी !

    नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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    1. मैंने तो किसी कमाल का कोई व्‍यंग्‍य चोरी नहीं किया है और आप सीधे मुझ पर आरोप लगा रहे हैं। आप पहले कमालश्री से पुष्टि तो कर लीजिए।

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ऐसी कोई मंशा नहीं है कि आपकी क्रियाए-प्रतिक्रियाएं न मिलें परंतु न मालूम कैसे शब्‍द पुष्टिकरण word verification सक्रिय रह गया। दोष मेरा है लेकिन अब शब्‍द पुष्टिकरण को निष्क्रिय कर दिया है। टिप्‍पणी में सच और बेबाक कहने के लिए सबका सदैव स्‍वागत है।