संसद की बत्‍ती गुल : दैनिक जागरण 18 मई 2012 के संपादकीय पेज पर प्रकाशित

संसद की बत्ती गुल संसद में दिनदहाड़े शोर मचाने वालों की बत्ती एक बाबा ने गुल कर दी है। एक बाबा की बत्ती मीडिया वाले गुल करने पर जुटे हैं जबकि लाखों-करोड़ों उन्होंने भी लूटे हैं। नेता घपलों की बत्ती जलाने में जुटे हैं। वह बत्ती जलते ही महक आती है, काले धन के जलने की बात बताती है और रास्ता तिहाड़ तक बनाती है। जबकि जनता की बत्ती होते हुए भी सदा से गुल है। यही हालात रहेंगे तो जनता की बत्ती सदा गुल रहेगी। बत्ती गुल करना एक राष्ट्रीय शगल बन गया है। पहले इतना आसान नहीं हुआ करता था किसी की बत्ती गुल करना। आजकल सबसे आसान बत्ती गुल करना हो गया है। इसमें सोशल मीडिया के असर की अनदेखी नहीं की जा सकती है। अब तो सीएफएल की खोज कर ली गई है, जिससे बिजली की कम खपत हो और बत्ती गुल होने की संभावना ही न रहे। -अविनाश वाचस्पति पूरा ब्लॉग पढ़ने के लिए यथावत टाइप करें: ँ33श्च://X्र3.8/डAॅ16

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ऐसी कोई मंशा नहीं है कि आपकी क्रियाए-प्रतिक्रियाएं न मिलें परंतु न मालूम कैसे शब्‍द पुष्टिकरण word verification सक्रिय रह गया। दोष मेरा है लेकिन अब शब्‍द पुष्टिकरण को निष्क्रिय कर दिया है। टिप्‍पणी में सच और बेबाक कहने के लिए सबका सदैव स्‍वागत है।