'सा' से सांसद .. 'सा' से साधु .. : डेली न्‍यूज एक्टिविस्‍ट में 7 मई 2012 के चकल्‍लस स्‍तंभ में प्रकाशित


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सभी सांसद चोर उचक्के नहीं हैं और मैंने सबको चोर उचक्का कहा भी नहीं है। मीडिया ने हंगामा मचा दिया जिससे सारे सांसद नाराज हो गए। वैसे भी यह तो साफ जाहिर है कि जब सारे बलात्कारी नहीं हो सकते तो सारे चोर उचक्के कैसे हो सकते हैं। वैसे ही जैसे सारे बाबा किरपा नहीं बरसाते, कुछ की किरपा तो सदा खुद पर ही बरसती रहती है और देखने वाला सोचता रहता है कि किरपा उस पर बरस रही है, जबकि बरस वह लौटकर बरसाने वाले पर ही रही होती है। इसी प्रकार सारे साधु, स्वादु नहीं कहे जा सकते, मगर एक प्रकार से कहे भी जा सकते हैं, क्योंकि सभी साधुओं को चरस, गांजे, भांग में स्वाद नहीं आता है, जबकि कुछ को तो इनके बिना स्वाद ही नहीं आता है। जिनको इनमें स्वाद नहीं आता है, वे गुटखा, पान, तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट का सेवन करते देखे जा सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि साधु हैं तो दारू का स्वाद नहीं लेंगे। आखिर आनंद की प्राप्ति के लिए साधु चोला धारण किया है और उस चोले में भी मजा नहीं पाया तो किस बात के साधु मतलब स्वादु। कितने ही साधुओं को तो भीख मांगने में असीम आनंद आता है। अब अगर उनकी पोल खोली जा रही है तो किसी सांसद को एतराज नहीं है। सांसदों की सच्चाई के बारे में जब भी जनता को बतलाने की कोशिश की जाती है तो वह ऐसे हाय तौबा मचाने लगते हैं, मानो दूध पीते बच्चे हों और उनके दूध के दांत अभी टूटे नहीं हों। जबकि उनके दूध के दांत तो छोड़िए, चाय के दांत भी नहीं बचे हैं और अब उनके सभी दांत दारू के दांत बनकर आवाम के सामने बहुत ही दरुगधयुक्त बेशर्मी से खिलखिला रहे हैं। इस पर किसी को तनिक भी एतराज नहीं है। साधुओं को तो सांसद न जाने कब से स्वादु, ढोंगी, कपटी, चरसी और न जाने क्या-क्या कहते रहते हैं। कभी-कभार एकाध साधु नारी शक्ति का स्वाद लेते हुए पकड़ा जाता है तो उसे पकड़कर जेल में ठूंस दिया जाता है। जब भगवान के सीधे सच्चे प्रतिनिधि साधु के लिए ऐसे नियम सर्वमान्य हो सकते हैं तो सांसदों के लिए क्यों नहीं, क्या वे सृष्टि की परम सत्ता से भी ऊपर हैं। संसद को कोई भगवान या देवता तो चला नहीं रहे हैं। फिर सभी सांसदों की गारंटी क्यों ली जा रही है, एक को कुछ कहा जाता है, तो मोहल्ले के कुत्तों के माफिक सब समवेत स्वर में गीत गाना शुरू कर देते हैं, बिना यह जाने कि इस प्रकार के गीतों की असलियत से अब जनता पूरी तरह वाकिफ हो चुकी है। मैं मानता हूं कि मेरे से भूल हो गई है, लेकिन अगली दफा मैं इस प्रकार की गलती नहीं करूंगा। मैं भी कोई भगवान तो हूं नहीं, हूं तो आपकी तरह इंसान ही, इंसान से गुरु ही तो बन रहा हूं, गुरु घंटाल तो नहीं बनना चाह रहा हूं। भविष्य में सांसदों को चोर-उचक्का नहीं कहूंगा बल्कि यह बयान दूंगा कि सभी सांसद चोर उचक्के नहीं हैं, तब तो आपमें से किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी न। आपकी खुशी का मैं अपने आगामी बयानों में पूरी तरह ध्यान रखूंगा। आखिर आप भी ‘सा’ से सांसद हैं और हम भी ‘सा’ से साधु हैं। यह अलग बात है कि कुछ किरपा बरसाने वाले खुद को खुदा घोषित करके अपनी अलग कैटेगिरी ‘बाबा’ हथिया चुके हैं। वैसे भी ‘बाबा’ शब्द के उच्चारण से मन निर्मल हो जाता है, एक पारिवारिक अटूट भावना नजर आती है। अब तो ऐसा महसूस होने लगा है कि हम साधुओं को भी नेताई गुणों का विकास करना होगा। वरना शातिर नेता हमें कहां सामान्य वस्त्रों में जीने देंगे और हमें बार बार इनसे बचकर लेडीज सूट, साड़ी, सलवार, जींस, टॉप इत्यादि पहनकर ही अपनी जान बचानी होगी। वैसे भी मीडिया तो चाहता है कि हम वस्त्रविहीन हो जाएं और वह सारी दुनिया को दिखलाकर कमाई करता रहे। सारी दुनिया आपस में उलझती फिरे और वह फिर कभी इस बहाने तो कभी उस बहाने कमाई करता रहे। अपनी टीआरपी बढ़ाकर अपने दर्शकों पर कहर ढाता रहे। कभी वे नक्सलियों का मुद्दा उछाल देते हैं, कभी नुपूर तलवार पर वार करते दिखाई देते हैं, कभी निर्मल बाबा को तलाश लेते हैं और जब हर तरफ से निराश हो जाते हैं तब मेरे जैसे सीधे-साधे सच्चे योगगुरु को अपना चेला बनाने के लिए जाल बिछाने लग जाते हैं। फिर यह तो पुराने घाघ हैं, मैं यह सांसदों को नहीं कह रहा हूं बल्कि मीडिया और चैनल वालों को कह रहा हूं। अब अगर इसको भी चैनल वाले तोड़-मरोड़कर सांसदों के खिलाफ साबित कर देंगे तो मैं साधु क्या कर लूंगा, सांसद मेरे बयान पर चिल्लाते रहेंगे और मीडिया वाले अपनी टीआरपी बढ़ाने के साथ उन्हें बार-बार चैनल पर अड़तालीस घंटे दिखलाते रहेंगे। क्या अब भी सांसदों को मेरे से कोई शिकायत है, मैं अपनी गलती मानते हुए फिर से कह रहा हूं कि सभी सांसद चोर-उचक्के नहीं हैं..।

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