काले काले रसीले कार्टून : हिंदी मिलाप 26 मई 2012 में प्रकाशित



कार्टूनकारों अगर अपनी जान की सलामती चाहते हो बल्कि ढंग से टेंशनविहीन जिंदगी जीना चाहते हो तो जिस जीने पर चढ़कर सफलता की चोटी पर ऊधम मचाने का ख्‍वाब संजोए हो, वह अब पूरा नहीं होगा। अपनी हसरतों को परवान चढ़ाने के लिए अब आम, केला, अंगूर, अन्‍नानास, गन्‍ना, तरबूज, खरबूजा, पपीता, लीची, आडू, फालसे, जामुन जैसे बेजुबान लेकिन उपयोगी फलों पर कार्टून बनाकर अपनी कला और समझदारी को ऊंचाई पर ले जाओ। फिर चाहे तीर छोड़ो या तुक्‍का भिड़ाओ अथवा खाने के लिए इन फलों से ही भिड़ जाओ क्‍योंकि यह बेजुबान इंसान को जीवन देते हैं, ताकत देते हैं, स्‍वाद देते हैं, इन पर बनाए गए कार्टून भी स्‍वादिष्‍ट और पौष्टिक बनेंगे। आपके बनाए कार्टून तो मन और मानस दोनों को तीखेपन के व्‍यंग्‍यबाण चला चलाकर छलनी कर देते हैं।
इन पर भी कार्टून बनाकर तुम्‍हारे रचनात्‍मक दिमागों का फितूर बाहर न निकले तो कुत्‍ते, बिल्‍ली, चूहे, खटमल, मच्‍छर, हाथी, लोमड़ी, शेर, सियार, भालू, कंगारू, बंदर, लंगूर पर अपना ब्रुश घुमाओ। फिर भी पेट में अफारा बना रहे तो साईकिल, स्‍कूटर, कार, बस, ट्रक, मेटाडोर, रेल, हवाई जहाज, रॉकेट, मिसाइलों पर अपनी रेखाओं का जौहर दिखलाओ।
इस मुगालते में ही मत जीते रहो कि नेताओं के दिमाग की बत्‍ती कभी जलेगी ही नहीं, जिस दिन भी, चाहे 60 या 100 साल बाद भी उनकी ट्यूब लाइट के स्‍टार्टर ने काम करना शुरू कर दिया और उनकी समझदारी जागृत हो गई तो समझ लेना, न तो आपकी और न आपके बनाए हुए कार्टून की खैर है बल्कि उनके कारण पुस्‍तकों को भी हलाल कर दिया जाएगा। एकदम ताजा मिसाल आपके सामने है। कितना ही हल्‍ला-हंगामा मचा लो, किसी को भी मामा बना लो। लेकिन बच नहीं पाओगे।
बचना चाहते हो तो पक्षियों पर अपनी कारगुजारी दिखलाओ। उल्‍लू, गौरेया, तोते, मैना, कोयल, कौए, हंस, बत्‍तख, चमगादड़ के एक से एक धारदार कार्टून बनाओ। उल्‍लू को खुलकर लल्‍लू कह दो। तोते को पप्‍पू कहो। कौए को मुन्‍नाभाई बतलाओ। समझेंगे तो वही जो समझदार हैं, अब पक्षी भला कार्टूनकारों की कला और भाषा को क्‍या पहचानेंगे। उनका न पहचानना ही आपको फेसबुक के इस जमाने में सेफ रख सकता है। समझदार चाहे नेता हों, चाहे हो देश की आवाम, वे काले काले जामुन के कार्टून पहचानकर तो खुश हो सकते हैं और उनकी खुशी में ही आपकी खुशी है।
नाम शंकर है तो क्‍या भगवान हो गए, लेकिन भगवान के किरदारों पर भी कार्टून बनाने की भूल मत करना, किसी आध्‍यात्मिक बाबा, गुरु पर भी कार्टूनमेकिंग का ख्‍याल अपने मन में मत लाना, किसी मंदिर के भगवान पर भी अपने कार्टून के जरिए व्‍यंग्‍य के तीर मत चलाना। वरना तो उनके भक्‍त और अंधभक्‍त आपको अच्‍छे से देख लेंगे जबकि आज तक आप खुद को ही अच्‍छे से नहीं देख पाए होगे। और ऐसे ही बदतमीजी तथा वेबकूफियां दिखलाते हुए कार्टून बनाने में जुटे रहे तो कभी देख भी नहीं पाओगे। इतना अच्‍छी तरह से जान लो। बाकी तो आप खुद समझदार हो। पर इतने समझदार के नाना भी मत बनो कि अपनी समझदारी खुद पर ही भारी पड़ जाए।
अब भला आप एक बात तो मानोगे ही कि कार्टूनों का कार्टून बनाना कौन सा सीमा पर जंग लड़ने जैसा बहादुरी का काम है, इंसान हो या कलाकार, काम तो उसे जीवन में बहादुरी के ही करने चाहिए। यह क्‍या कि एक पैंसिल, ब्रश उठा लिया और दिमाग का फितूर आड़ी तिरछी रेखाओं और ब्रश से कागज पर उतार दिया। पैंसिल और ब्रश तो मासूम बच्‍चों के खेलने के खिलौने हैं यह क्‍या कि आप उनके जरिए ही तीरंदाजी में निपुण होना चाह रहे हैं। ऐसा ही करते रहे तो आपका नाम शहीदों में शुमार होने में अब देर नहीं है। गिनती आपकी शेखचिल्लियों में ही की जाएगी और दिल्‍ली शेखचिल्लियों के काम का संज्ञान न ले, ऐसे भ्रम में रहना भी मत। फिर चाहे फेसबुक, ब्‍लॉग, ट्विटर और न्‍यू मीडिया पर कितनी ही दस्‍तक देते रहना पर बात उन तक नहीं पहुंचेगी, पहुंचेगी भी तो वे सुनेंगे नहीं और एक्‍शन नहीं लेंगे, फिर आप क्‍या कर लोगे, मजबूरी का नाम महात्‍मा गांधी यूं ही तो नहीं कहा जाता है।
कार्टून बनाने का इतना ही शौक है, मजदूरी करने का मन है तो भिंडी, बैंगन, तोरई, टिंडे, परमल, आलू, लौकी, परमल, प्‍याज, सीताफल, कद्दू, पेठे के ठेले भर भर कर कार्टून बनाओ और सब्जियों की तरह महंगे दामों पर बेचो, किसने रोका है। लाल लाल टमाटर का रस कार्टूनों पर निचोड़ कर अपने ज्ञान की लालिमा को चमकाओ। घास, पेड़, नदी, सागर, तालाब प्रकृति पर बनाओ कार्टून, देखें तो कितनी कलाकारी छिपी है तुम्‍हारे भीतर। उसे बाहर निकालकर लाओ। नलों पर, सड़को पर, पुलों पर, फ्लाई ओवरों पर बनाओ कार्टून, कौन रोक रहा है। अब सब मैं ही बतला दूंगा तो आप क्‍या करोगे, टॉपिक मिलेगा और कार्टून बना लोगे, कुछ कठिनाई वाले काम भी किया करो। किसी का चेहरा कार्टून में बिगाड़ने जैसा आसान काम ही कर सकते हो, किसी का सचमुच में बिगाड़ने चले तो पता चला कि अपना चेहरा ही तुड़वा-बिगड़वा बैठे।
कार्टून भी बनाना चाहते हो और जीना भी चाहते हो तो जीवन के इस आधारभूत नियम का पालन करो कि ‘खुद तो जिओ ही दूसरों को भी जीने दो’ यह क्‍या कि जीने के बहाने कार्टून बना बना कर नेताओं का खून पीने पर ही उतर आए हो।
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