कलम की ताकत : दैनिक जनसंदेश टाइम्‍स 15 जनवरी 2013 स्‍तंभ 'उलटबांसी' में प्रकाशित



आज सुबह कड़ाके की ठंड में, मैं हजामत कराने के लिए हजारीलाल की दुकान पर पहुंचा तो उसे गुस्‍से से तमतमाते पाया। जबकि दुकानदारी प्‍यार की मीठी बोली से चलती है। देश के दो सैनिकों का सिर कलम करने के खिलाफ वह तममा तममा हो रहा था। शेव करने के लिए गाल के बालों को मुलायम करता ब्रश उसकी मानसिकता को प्रतिबिंबित कर रहा था।  
हजारीलाल ने कहा कि दुश्‍मनों की हजामत करने का मौका मिल जाए तो वह अपने उस्‍तरे से दुश्‍मन के गले रेत देगा। किंतु यह तो कोई हल नहीं हुआ मैंने कहा,  उल्‍टे इससे दुश्‍मनी बढ़ेगी, इंसान को  इंसानियत अपनाकर खून का बदला खून से लेने वाली नीति पर चलने से बचना चाहिए। इतिहास गवाह है कि इससे सदा समाज का नुकसान हुआ है।
हजारी ने सहमति प्रकट की परंतु उसकी उत्‍तेजना में कमी नहीं आई।  ऐसा लग रहा था मानो, वह देश के बॉर्डर पर दुश्‍मन की सेना के सामने अपना उस्‍तरा लेकर डटा है। उसका शरीर ठंड से नहीं, गुस्‍से से कांप रहा था। निश्चित ही उसका ब्‍लड प्रेशर महंगाई से मुकाबले पर डटा था। मैंने सोचा कि आज अपनी हजामत का त्‍यौहार मुल्‍तवी करना ठीक रहेगा।
हजारी ने कहा, मेरा उस्‍तरा कलमकारों के गले को कलम नहीं करेगा, आखिर कलम के जरिए ही तो कलमकार अपना वैचारिक युद्ध लड़ रहे हैं और देश के नागरिकों में क्रांति की ज्‍वाला दहका रहे हैं। मेरा उस्‍तरा सिर्फ एक दुश्‍मन का गला कलम कर सकता है जबकि मुन्‍नाभाई आपकी कलम के एक बार से कितने ही दिमाग कलम हो सही विचारों को आगे बढ़ाने का जिम्‍मा संभालते हैं। कलम उन्‍हीं वीरों की जय बोलती है, जो अपने विवेक का समुचित इस्‍तेमाल करते हैं और समाज और सामाजिक सरोकारों को बल मिलता है। हजारीलाल सिर्फ हज्‍जाम नहीं है अपितु मन के भावों को फेस पर पढ़ने का अभ्‍यस्‍त हो चुका है और कलम की ताकत को स्‍वीकारता है। मैं मन ही मन उसकी इस कला पर मुग्‍ध था।
मैंने उसे समझाया कि अहिंसा और प्रेमपगी नीति सब बुराईयों को दूर करने में सक्षम है। इसलिए क्रोध और बे-वजह के जोश से नहीं, विवेक और होशो-हवास से काम लेना समय की मांग है। हजारी लाल ने कहा कि मैं जानता हूं कि क्‍या कह रहा हूं और इससे समाज का कितना अहित हो सकता है। फिर देशहित मेरे लिए सर्वोच्‍च प्राथमिकता वाला क्षेत्र है। हम सबको अपने-अपने निजी हितों से उपर उठकर सार्वजनिक हितों को सम्‍मान देना चाहिए। मैं यह चाहता हूं कि देश के दुश्‍मनों को उन्‍हीं की शैली में ही जवाब दिया जाना चाहिए। लेकिन जानते-बूझते किसी गलत नीति की वकालत नहीं कर सकता। मैं भावेश में बहुत कुछ गलत कह गया हूं। जिसका मुझे बेहद पछतावा है। जबकि मैं जानता हूं कि प्रत्‍येक नेक भारतवासी के मन में बदले की ज्‍वाला दहक रही है कि पाक की नापाक हरकत का उन्‍हीं की शैली में उत्‍तर दिया जाए।  
हजारीलाल के विचारों में मुझे देश के आम नागरिकों के गुस्‍से की बानगी देखने को मिली। सच्‍चाई है  कि देश से प्रेम करने वाला आम नागरिक इस समय गुस्‍से से उबल रहा है। जबकि नेता और उच्‍चाधिकारी सिर्फ जुबानी जंग लड़कर अपने कर्तव्‍यों की इतिश्री मान रहे हैं।

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