कबाड़ से प्‍यार : दैनिक हरिभूमि दिनांक 20 जनवरी 2013 के रविवार भारती में प्रकाशित



अच्छी -भली चीज कबाड़ हो जाती है और कबाड़ से जीवन संपन्न हो जाता है। अच्छी चीज को बेकार साबित कर दिया जाता है और उसी से बेशुमार धन उपजाया जाता है। कई बार ई-कबाड़ से प्राण खतरे में घिर जाते है। कबाड़ से की गई छेड़ा-छाड़ी जीवन को लील जाती है। जीवन कबाड़ होता है या कबाड़ से शुरू होता है। कबाड़ से वारे न्यारे होते देखे गए हैं। सस्तk खरीद कर महंगा बेचना - कबाड़ को लेकर उसकी चीरा-फाड़ी या जोड़ा-तोड़ी से जान के लाले पड़ जाते हैं।  जो बाद में कोबाल्टो हो जाते हैं और ऐसा रेडिएशन फैलाते हैं कि वातावरण से चाहे खत्म  हो भी जाए पर मन पर पड़ा उसका प्रभाव कभी मिट नहीं पाता।  देश और समाज में चहुं ओर अनेक प्रकार के कबाड़ियों का बोलबाला है।

एक स्वामी जी तो ब्रह्म मुहूर्त में देर तक सोने वालों को कबाड़ कह गये हैं। इस तरह के कबाड़ में किसी कबाड़ी की दिलचस्पी अभी तक नहीं देखी गई है क्योंकि कबाड़ियों के धंधे के कुछ उसूल होते हैं। जब से तकनीकी विकास शुरू हुआ है कई तरह के कबाड़ हो गए हैं। इनमें फेमस ई-कबाड़ है जिसको हमारे देशवासी न जाने क्या सोचकर विदेशों से खर्च करके इम्पोर्ट कर लेते हैं। थोक में मंगवा कर यहां पर सेल लगा देते हैं और कबाड़ से भी करोड़ों कमा लेते हैं। इम्पोयर्टिड वस्तुओं के प्रति हमारी दीवानगी इनकी सक्सेस स्टोरी होती है।

कबाड़ से इंसानी मोह जगजाहिर है। घर चाहे कितना ही छोटा हो] किराए का हो पर हम कबाड़ से मुक्ति नहीं पा सकते। अगर आप किराएदार हैं]  तो जरा इस निगाह से अपने घर के सामान पर एक नजर डाल लें और अगर खुद का अपना घर है तो फिर आपके घर में और कबाड़खाने में कोई फर्क हो ही नहीं सकता। इससे स्वीरकारना पड़ता है कि इंसान एक परंपरागत कबाड़ी है जो यह सोचकर ऐरी- गैरी चीजें संजोये रखता है कि इतनी लंबी जिंदगी में पता नहीं] कब यह काम आ जाए।  जबकि इसी जिंदगी को कई मौकों पर सिर्फ दो या चार दिन तक सीमित कर देता है।

आप एक अच्छी चीज तो किसी को दे पाते हैं। वो कबाड़ ही क्या जिससे बेपनाह लाड़ न हो। काम की चीज में आग लग जाए तो कबाड़ हो जाती है और कबाड़ में लग जाए तो राख हो जाती है और राख ही सृष्टि का परम सत्य है।

कबाड़क्रोध सिर्फ गृहिणियों में ही उपजता देखा गया है।  उसकी बिक्री से आने वाला धन अच्छा लगता है। कबाड़ से जुड़ी बाड़ भी काम की चीज को कबाड़ बनने से नहीं रोक पाती है। कबाड़ कब उसी की आड़ बन जाती है पता भी नहीं चलता। इसलिए बंधुओं कबाड़ को सिर्फ कबाड़ ही मत समझो और रोजमर्रा के जीवन में उसके महत्‍व को जानो, मानो और सबको मनवाओ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया आलेख....

    ''बंधुओं कबाड़ को सिर्फ कबाड़ ही मत समझो और रोजमर्रा के जीवन में उसके महत्‍व को जानो, मानो और सबको मनवाओ।''

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  2. कबाड़ कब उसी की आड़ बन जाती है पता भी नहीं चलता। इसलिए बंधुओं कबाड़ को सिर्फ कबाड़ ही मत समझो और रोजमर्रा के जीवन में उसके महत्‍व को जानो, मानो और सबको मनवाओ।
    धन्यवाद महोदय!

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