नए तेवर के व्‍यंग्‍य : दैनिक जागरण के राष्‍ट्रीय संस्‍करण दिनांक 6 मई 2012 पेज 6 पर रचनाकर्म स्‍तंभ में प्रकाशित समीक्षा

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पीयूष पांडे का मीडिया और वेबजगत से जुड़े मुद्दों पर सार्थक लेखन करते हुए तकनीक और व्यंग्य रचना की ओर मुड़ना सायास ही है। मीडिया की यह पीयूषी निगाहें व्यंग्यक पर निर्मल बाबा की थर्ड आई की किरपा करती चलती हैं। वेब पर लिखना मजदूरी का लेखन हो सकता है, लेकिन व्यंग्य कभी मजबूरी में लिखा ही नहीं जा सकता, सभी व्यंग्यकारों की तरह पीयूष भी इसे मानते हैं। भूमिका लेखक चर्चित व्यंग्यकार आलोक पुराणिक इसकी तस्दीक करते हुए कहते हैं कि यह किताब नए बनते व्यंग्य का आईना है। मीडिया की मदारीगिरी का ढोल बार-बार चैनलों में पीटा गया है। जब पीयूष व्यंग्य लिखने को टेढ़ा काम बताते हैं तो यह लगता है कि वह खुद को इतना सीधा मान रहे हैं कि वे व्यंग्य लिखने का सीधा काम ही कर सकते हैं। जबकि दूसरा सीधा काम लेखक ने पुस्तक का सीधा शीर्षक नामकरण करके किया है। किशोरावस्था में जासूसी उपन्यास पढ़ने वाले परिचित होंगे कि एक बार शुरू करके उसे बीच में छोड़ा नहीं जा सकता है। बिल्कुल उसी प्रकार की पकड़ बनाती है छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन। एक बार शुरू करने पर आप इसे पूरा पढ़े बिना चैन नहीं पाएंगे और इसके शहद भरे तीखे तेवर से चिपक-चिपक जाएंगे। विसंगतियों के प्रति उकेरे गए तेवर पाठक के मन-मानस को झिंझोड़ देते हैं। किताब की पहली व्यंग्य रचना पब्लिसिटी और पैसे के गणित पर जूते से हीरो बनाने की कारगर प्रक्रिया का गुणगान करती हुई चौंकाती है कि छिछोरेबाजी करेंगे तो मौका बिग बॉस में मिल सकता है। कइयों ने इसी गुण के बूते बिग बॉस के घर में एंट्री मारी है, लेकिन अगले ही पल इस धारणा को ध्वस्त करती हुई जूते की अंतिम जादुई शक्ति को स्वीकार लेती है कि पब्लिसिटी को पैरों में लोटाने और हीरो बनने के लिए किसी देशी बुश की कनपटी पर सीधे दे मारेंगे। फेसबुकिया मोहब्बत मजनूं की मौजूदगी शीर्षक व्यंग्य में एक नया नजरिया विकसित हो उठा है। पीयूष पांडे के व्यंग्य प्रत्येक विषय की ऐसी कुशलता से चीरा-फाड़ी करते हैं कि पाठक तिलमिला जाता है। यह तिलमिलाना कोई सुर मिलाना या सजाना नहीं है। विषय के भीतर तक जाकर उसकी पूरी टोह लेकर आना है। लेखक को मैं दोनों ही मोचरें पर सच्चा सैनिक पाता हूं जिनमें कर्नल बनने की संभावनाएं तेजी से विकास पर हैं। उनमें शब्दों के सहज सरल प्रस्तुति की जो भावगम्यता है, संघर्ष का जज्बा है, वह एक देशभक्त सैनिक वाला है। व्यंग्य एक ऐसी लड़ाई है जिसे बहुत दूर तक लड़ा जाना है।

2 टिप्‍पणियां:

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