चूहे फुल फ्लेज्ड खुंदक में हैं। खुदंक चुहियों को भी आ रही है। वैसे खुश भी हैं चुहियाएं कि चूहे अनाज खाकर, चाहे बित्ता भर ही पेट है उनका, डकार लेने के हकदार साबित हुए हैं। डकार लेना और डकारना कोई इत्ता आसान नहीं है। पर चूहे सीख गए हैं नौकरशाहों से और नेताओं से।
जब से साक्षरता अभियान का लाभ चूहों को मिलना शुरू हुआ है। चूहे जान गए हैं कि उनको बकरा बनाकर, शातिर इंसान जब चाहे उनकी बलि दे देता है। जबकि कहां चूहा और कहां बकरा, किसमें अधिक गोश्त है सब जानते हैं।
अनाज बेच गया इंसान, फंस गया चूहा नन्ही सी जान। मढ़ दिया आरोप कि चूहे डकार गए जबकि डकारने के लिए तोंद की अनिवार्यता से इंकार नहीं किया जा सकता है। इतने महाशक्तिशाली हैं, सुपरचूहे हैं हम। जबकि चूहे का बित्ता भर पेट थोड़ा कुतरने भर से ही, अनाज की खुशबू से ही अफारा मारने लगता है और तुरंत किसी मेडिकल स्टोर में जाकर पुदीन हरा सूंघकर अपना इलाज खुद करने को मजबूर हो जाता है।
चूहों ने जब से चैनलों पर खबर को देखा-सुना और अखबारों को कुतरते हुए जानकारी ली है कि वे इंसान का करोड़ों का अनाज खा गए हैं। उन्हें पेड न्यूज में सच्चाई नजर आने लगी है। अब उन्हें कुछ भी कुतरना रुचिकर नहीं लग रहा है। कुतरने से उनका मोह भंग हो रहा है। चूहे खुद को इंसान की कुतरने की शक्ति के आगे शर्मिन्दा महसूस कर रहे हैं। पर चूहे हैं न, नेता तो हैं नहीं, जो प्रेस कांफ्रेंस कर डालें। कोशिश भी करेंगे तो बेहद चालाक इंसान बिल्लियों और कुत्तों के रूप में रिपोर्टर बनकर उनकी प्रेस कांफ्रेंस को शुरू होने से पहले ही तितर-बितर कर देगा।
चूहे उदास जरूर हैं पर मायूस नहीं हैं। चूहे शेर नहीं हैं पर चूहे हैं। वे लड़-भिड़ नहीं सकते परंतु दौड़-फुदक सकते हैं। उन्हें कुछ न सुनाई दे पर वे ‘नीरो की बांसुरी का स्वर सुनकर’ मग्न हो सकते हैं। वे डिफरेंट कलर में पृथ्वी पर मौजूद हैं। इंसान बतलाए कि कौन से रंगों के चूहों ने उनके करोड़ों के अनाज पर अपने दांतों की खुजली मिटाई है। मालूम चलेगा तो वे अपने वीर चूहों के लिए ‘ऑस्कर’ की सिफारिश जरूर करेंगे। नहीं तो गिन्नीज बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम तो दर्ज करवा ही लेंगे।
र्इश्वर ने जब सबको भरने के लिए पेट दिया है और भकोसने के लिए अन्न। फिर भी तथाकथित सभ्य लोग पेट में अन्न नहीं, विदेशी बैंकों में काले धन को सहेजने में बिजी हैं। इंसान सारे अनाज पर अपना जबरदस्ती का अधिकार जतलाकर, उन्हें कुतरने से महरूम करने की साजिश रच चुका है। चूहे छोटे जरूर हैं परंतु उनकी यह दलील जोरदार है कि देश की समृद्धि के सबसे बड़े दुश्मन नेता और नौकरशाह देश को लगातार कुतर रहे हैं।
बाबाओं को भी इस धंधे में स्वाद आने लगा है पर किसकी नीयत सच्ची है और किसकी बिल्कुल कच्ची, नाम के निर्मल मन के मैले के तौर पर ख्याति अर्जित कर चुके हैं। चूहे चाचा और मामा भी नहीं हैं फिर क्यों बिल्लियां उनकी मौसियां बनकर इतरा रही हैं। बादाम वे खा रही हैं और हमें सूखे अनाज पर टरका रही हैं। अब यह मामला ‘भूखों की अदालत’ में है, निर्णय की प्रतीक्षा चूहों को भी है और आम आदमी को भी, तब तक हम भी फैसले का इंतजार करते हैं ?
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