हर तरफ बज रही पानी की धुन : दैनिक जनवाणी 26 जून 2012 अंक में 'तीखी नजर' स्‍तंभ में प्रकाशित



पानी को सब चाहते हैं। चाहते हैं कि उसी के घर पर छत की टंकी में या जमीन के टैंक में पवित्र पानी का स्‍थाई बसेरा रहे। यह जानकर अगर पानी, पानी पानी हो रहा है तो इसमें उसका कतई दोष नहीं है और न यह सूरज के ताप का असर है। सूरज के ताप से वह गरम हो सकता हैउबल सकता हैभाप बन सकता है लेकिन किसी की आंखों का पानी बनकर नीचे नहीं उतर सकता है। आंख का पानी कभी भाप बनकर नहीं उड़ा करता, चाहे कोई गर्मागर्म दिल का धारक ही क्‍यों न हो।
कतिपय नेताओं की आंख से पानी, पानी बनकर उतरने में भी शर्म महसूस करता है जबकि उसे शतरंज के प्‍यादे की तरह बहुधा इस्‍तेमाल किया जाता है। पानी का खेल हर जगह खुलेआम दिखाई दे रहा है। पानी पहले कुंओंबावडि़योंपोखरोंतालाबों में बेहिसाब रहता था और सबके मटकोंसुराहियों और शरीर में अपने मीठेपन के साथ उतर जाता था। अब स्थिति बदल गई हैं और उसका दुरुपयोग कर उसका सौदा कर मालामाल हुआ जा रहा है। पानी की वैसे तो कोई माला नहीं होती और न ही बरफ के टुकड़ों को किसी धागे में पिरोकर बनाना ही पॉसीबल है। आप एक बरफ के टुकड़े में पिरोओगे और पांचवे टुकड़े तक पहुंचोगे तो पहले वाला टुकड़ा पानी पानी हो चुका होगा। इस माला से माल नहीं बन सकेगा। मालामाल होने से आशय पानी की माला पहनना नहीं है पर पानी की सौदेबाजी करके तिजोरी भरना साबित हो चुका है।
कुछ बरस पहले जिनके पास कोई काम नहीं था, उन्‍होंने अपनी आंखों का पानी मारकर पानी से माल बनाना शुरू कर दिया है जिसमें सरकारी नीतियां भी सहयोगी बनीं। पानी जान भी बचाता है और उसमें कोई डूब जाए तो अपनी जान दे जाता है। बीमार पानी को पीने वाला अपने लीवर समेत अनेक उपयोगी अंगों को बीमार कर लेता है लेकिन बेचने वाला इससे खूब माल कमाता है। पानी से सब प्‍यार करते हैं और इसी घनघोर प्‍यार के चलते बीते दिनों पानी से प्‍यार का बिजनेसीकरण हो गया है। पानी भी सबसे प्‍यार करना चाहता हैसबके गलों को तर रखना चाहता है किंतु वह बेबस है और अपने सच्‍चे चाहने वालों तक पहुंचने से पहले तोड़ी गई पाईप लाईनों से बीच में जबर्दस्‍ती किडनैप कर लिया जाता है। पानी पब्लिक का पहला प्‍यार है जबकि उसी पब्लिक में से कुछ दलाल बन कर छिपकर सक्रिय हैं और पानी के प्‍यारजज्‍बात का नाजायज धंधा कर रहे हैं। पानी के प्‍यार के जलवे को धंधेबाजों ने अपनी जेब का हलवा बना लिया है और उस हलवे को बादाम का बना बतलाकर खूब दाम कमा रहे हैं। क्‍या हुआ जो इंसानियत को रुला, तड़पा रहे हैं।
पानी से सच्‍चा प्‍यार तो वे करते हैं जो रात-रात भर जागकर उसके बाल्‍टी भर दीदार को तड़पते हैं और मीलों दूर से उसे ढोकर लाते हैं। वे क्‍या जानें पानी के प्‍यार को जो अपने घर की छत की टंकियों में मोटरों चलाकर भर लेते हैं फिर उसे अंधाधुंध बहाते हैं। यह बहाना पानी के न आने का बहाना नहीं है, एक भीषण सच्‍चाई है। इसी से पब्लिक रात दिन पानी को, पानी की चाहत में सड़कों पर प्रदर्शन करजलबोर्ड के कार्यालय और अफसरों के सामने  मटके तोड़ती नजर आती है। महिलाओं को भी मटकों से कोई सहानुभूति नहीं होती है। जैसे पानी के न आने की दोषी पब्लिक नहीं है परंतु भुगतना पब्लिक को पड़ता है उसी प्रकार मटकों और सुराहियों की शामत आ जाती है, बेकसूर मटकों के पेट फोड़ दिए जाते हैं और सुराहियों की गर्दन मरोड़ दी जाती है। पानी के दुश्‍मन, जिन्‍हें अपनी कारों, स्‍कूटरों से बेइंतहा प्‍यार होता है, वे अपने घर के बरामदों को धोने के लिए लगातार पानी बहाते हैं, कारों और स्‍कूटरों को खूब नहलाते हैं। मानो अपने घर में ही नदिया बना लेंगे और कहेंगे कि ‘धीरे चलो नदिया, धीरे रे चलो , नदिया धीरे रे चलो... ।‘
यह धीमापन पानी के मिस्‍यूज में दिखाई देना चाहिए बल्कि इस बरबादी पर पूरी तरह रोक लग जानी चाहिए। कड़े कानून के तहत इसका उल्‍लंघन करने पर सख्‍त सजा दी जानी चाहिए, न कि जो इसको रोकने आए, वह अपनी जेब ऊपर तक लबालब भरकर लौट जाए। सजा देने वाले कानून बनाकर सजा तो देते हैं परंतु उसे रोकने वाले सरकारी कारिंदे उससे जेब भरने का मजा लूट लेते हैं। अब पानी को निजी हाथों में सौंपकर पब्लिक को पूरी तरह प्रताडि़त करने की साजिश रच ली गई है, जैसे अनेक बरस पहले बिजली के साथ किया गया था। जब उससे नहीं बचा जा सका तो इससे कैसे बचा जा सकेगा।  पानी भी कम मिलेगा और दाम बादाम के महंगे वाले वाले चुकाने होंगे। क्‍या आप बादाम की कीमत पर पानी खरीदने के लिए तैयार हैंन भी तैयार हों तो क्‍या फरक पड़ता हैआखिर यही तो शीला की जवानी है।  चारों तरफ टूंग टूंग का स्‍वर लाउड आवाज में गूंज रहा है। टूंग टूंग बजे टूंग टूंग। सबको लुभा रहा है, इस गीत के संगीत में मस्‍त होकर पब्लिक का ध्‍यान पानी से हटाकर मिनरल वॉटर की खरीद पर लग रहा है। नेता चाहते यही हैं  कि पानी का पब्लिक में वितरण हो, न हो लेकिन पानी की सौदेबाजी नहीं रुकनी चाहिए और न वोटों की फसल में कोई रुकावट आनी चाहिए। पानी की खेती नहीं होती है लेकिन वोटों की खेती में पानी की भूमिका काफी अहम् है।

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