'भारत बंद', चलो चल कर खुलवाएं : दैनिक मिलाप 8 जून 2012 अंक में प्रकाशित



‘आज मोहब्‍बत बंद है’ गीत फिजा में गूंज रहा है जबकि ‘भारत बंद है’ जब भारत बंद होगा तो मोहब्‍बत पर तो अपने आप ही लॉक लग जाएगा। पहले चार अक्षर उस लोकप्रिय फिल्‍मी गीत के नाम, जिसने मोहब्‍बत को बंद बतला कर एक जमाने में मोहब्‍बत करने वालों के कलेजे में तूफान मचा दिया था, वैसे ही जैसे अंधड़ आता है। उसी गीत का सकारात्‍मक संदेश यह है कि मोहब्‍बत तो बंद हो सकती है लेकिन हिंसा, रक्‍तपात, खून खराबा, मारपीटी नहीं शुरू होनी चाहिए। इसके विपरीत भारत बंद और उधर हिंसा का नंगा नाच ओपन हो चुका है, जिसमें नाचने वाले नेताओं के शागिर्द होते हैं, वे ऊधम, हो हल्‍ले, हंगामे को नाच बतलाते नहीं शर्माते हैं। इन्‍हें आप भाईजी, गुंडे, बाउंसर, सक्रिय कार्यकर्ता इत्‍यादि नामों से पहचानते हैं। वैसे सच्‍चाई यह है कि धरती का आधार प्रेम है। प्रेम से ताकतवर कुछ नहीं है। प्रेम के बिना झगड़े भी नहीं है। किसी से प्रेम होगा तो किसी से उसी प्रेम के लिए झगड़ा भी होगा। यही इस सृष्टि का सनातन सत्‍य है। इसमें कोई बुराई नहीं है। यह बुराई न हो तो आप अच्‍छाई को न तो पहचान ही पाएं और न उसका उचित मोल ही लगा पाएं। बाजारवाद के इस युग में कीमत लगाना बहुत जरूरी है क्‍योंकि जब तक कीमत नहीं लगती, तब तक जनता मत नहीं देती है। लोकतंत्र में मत शक्तिस्‍वरूपा है।
भारत बंद बुराईयों को हटाने के लिए प्रेम का शक्ति प्रदर्शन है। बुराईयां जिन्‍हें सत्‍ता वाले अच्‍छाईयां मानते हैं और बे-सत्‍ता वाले ? विरोध करने का एक तरीका भारत बंद करने का चला आ रहा है। महात्‍मा गांधी जी ने अनशन का रास्‍ता अपनाया। बे-सत्‍ता वालों ने भारत बंद का। लेकिन मेरी समझ में अब तक यह समझ नहीं आया कि ‘भारत बंद’ कहां पर किया जाता है। इसके लिए किसी भारत घर की व्‍यवस्‍था नहीं है। काले धन की तरह इसे किसी विदेशी भूमि पर बंधक नहीं बनाया जा सकता है। चिडि़याघर काफी लंबे चौड़े होते हैं लेकिन उसमें से चिडि़यों को बाहर निकालें, तब भारत को बंद करने की सोचें। परंतु चिडि़याएं कौओं के लिए अपना घर खाली करने से रहीं और अपने साथ तो वे उन्‍हें रखेंगी नहीं। और उस छोटे से चिडि़याघर में भारत को कैसे बंद कर पाएंगे। लेकिन फिर भी जब बे-सत्‍ता वाले कह रहे हैं तो कुछ जानते होंगे तभी तो कह रहे हैं। फिर भी मेरा कवि मन कह रहा है कि हो सकता है कि वे प्रतीक तौर पर भारत बंद का शोर मचाते हों। करते तो हों दुकानें बंद, मार्केट बंद, आफिस बंद, यातायात बंद, सिनेमा हाल बंद और चिल्‍लाते हैं कि कर दिया भारत बंद। माना कि भारत दुकानों में बसता है, बसों में टहलता है, ऑटो और टैक्सियों में सफर करता है, रिक्‍शे पर सवारी करता है, किसी को पैदल भी नहीं निकलने देंगे और खुद भाईगिरी करते छुट्टे घूमेंगे। गाय की तरह तो घूमने से रहे, सांड की तरह ही घूमेंगे। सोचते हैं कि उनकी इस बहादुरी से सत्‍ता उनके सामने घुटने टेक देगी जबकि सत्‍ता यानी सरकार के घुटने कभी अपने नहीं हुए, वह तो सदा इसके उसके तेरे या मेरे घुटनों का इस्‍तेमाल करती है। रही बात टी वी और अखबार वालों की उनको इसलिए बंद नहीं करते कयोंकि उनके सहयोग के बिना इनके कारनामे जग जाहिर कैसे होंगे और इन्‍हें यह भारत बंद से अलग रखना चाहते हैं। नेता बंद कैसे होंगे, वे तो चौबीस घंटे में 96 घंटे खुले रहते हैं। न्‍यू मीडिया पर अभी सरकार का ही बस नहीं चल रहा है तो इन बे-सत्‍तावासियों का कैसे चलेगा। वे भी इनके प्रचार में सगे भाई का रोल कर रहे हैं।

भारत, भारत न हुआ कोई गुनहगार हो गया। इसे तुरंत बंद कर दो। पेट्रोल के रेट कैसे बढ़ाए, सीएनजी के रेट क्‍यों बढ़ाए, कीमतों को बंद नहीं करके रखा इसलिए भारत को तो बंद होना ही होगा। भारत बंद होगा तो रेट खुल जाएंगे, यह नहीं समझ रहे कि खुलते ही रेट और ऊपर चढ़ जाएंगे। फिर किसे किसे बंद करवाएंगे। भारत क्‍या है, अगर संसद भारत है, नेता भारत है तो क्‍या उन्‍हें बंद करना इतना आसान है। बंद करना है तो पुलिस के अत्‍याचारों को करो, ब्‍यूरोक्रेसी में भ्रष्‍टाचार फैलाने वालों को काबू करो, अच्‍छाईयों के दुश्‍मनों को करो। पर उन पर आपका बस कहां चलता है। वहां पर तो आप सिरे से पैदल चलना शुरू कर देते हैं। भारत बंद का शोर मचाते हैं और एक मकान तक बंद नहीं कर पाते हैं, बुरे विचारों पर लगाम नहीं लगा पाते हैं। नेताओं की बकवास को बंद कर नहीं पा रहे हो और भारत बंद करने के ठेके उठा रहे हो।
सचमुच में बंद करने का इतना ही मन है तो कन्‍या भ्रूण हत्‍या को करो, प्रसव पूर्व लिंग जांच को करो, मिलावटी दवाईयों को रोको, अपनी बंद करने की ताकत को इनके खिलाफ झोंको। क्‍या आप नहीं जानते कि एक चूहे को चूहेदानी में बंद करने के लिए भी कितनी मशक्‍कत करनी होती है, बिना यह जाने चल दिए हैं कि पूरा भारत बंद करेंगे। पहले एक चूहा तो चूहेदानी में बंद करने का जौहर दिखलाओ। भारत बंद करने का आशय देश की सक्रियता को किडनैप करके देश को नुकसान पहुंचाने से है जबकि देश का अपहरण तो पहले से ही नेताओं ने निजी लाभ के लिए कर रखा है और उसके लिए घोटाले, घपलों में पूरी मुस्‍तैदी से बेखौफ होकर जुटे रहते हैं। मैं तो नहीं चाहता कि बंद रूपी ग्रहण का वायरस  मोहब्‍बत या भारत को लगे, आप क्‍या महसूस कर रहे हैं ?

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