प्रतिबिम्ब में प्रकाशित विवेक श्रीवास्तव को विवेक रस्तोगी पढ़ें। स्मृति के कारण गलत नाम छपने के लिए खेद है।
बुराई है, अच्छाई है। सुख है, दुख है। जीवन है,मृत्यु है। सभी एक दूसरे पर अवलंबित हैं। पत्रिकाएं हैं, लिखा जा रहा है। लिखा जा रहा है, छप रहा है। जो छप नहीं रहा, उस छिपे हुए को सामने लाने के लिए बतौर न्यू मीडिया एक महाशक्ति का आविर्भाव हुआ है। जो कहा जा रहा है, वह अब अधिक लोगों तक पहुंच रहा है। विचार जो उत्तम हैं अथवा निकृष्ट हैं, अधिक से अधिक देश, प्रदेश और विदेश की सीमाओं तक सीधे पहुंच रहे हैं। जिन पर सार्थक विमर्श हो रहा है और बेमतलब की बहस और विवाद भी हो रहे हैं। सबके अपने अपने तर्क हैं, अपने अपने फायदे और नुकसान हैं, यही नियति है, जीवन की गति है।
9 मई 2012 के दिन प्रत्येक उस नेक संवेदी दिल को धक्का लगा जो सिर्फ अपने लिए नहीं जीते। समाज में निराश्रितों और वंचितों के लिए जीवन जीने में यकीन रखते हैं। भड़ासफेम हिंदी ब्लॉगर डॉ. रुपेश श्रीवास्तव (http://bharhaas.blogspot.in/) के दिल को आघात लगा। वह घात उन्हें समेट कर ले गया और हमें एकाएक स्तब्ध कर गया। जीवन की कडि़यों में बहुत कुछ टूट बिखर जाता है। लेकिन वही टूटना-बिखरना जीवन को जीवंतता प्रदान करता है। डॉ. रुपेश को यूं ही हरफनमौला नहीं कहा गया है। ऐसे व्यक्तित्व विरले ही होते हैं जो सामने वाले के दुख में एकाकार हो जाते हैं। इंसान में कितनी ही बुराईयां हों लेकिन सामने वाले के दुख में एकाकार होना, बुराईयों को मिटा कर जीवन को गति प्रदान करता है। डॉ. रुपेश श्रीवास्तव से पहली मुलाकात गोवा से दिल्ली वापसी पर मुंबई में हिंदी ब्लॉगर साथियों से मिलने-जानने के दौरान 6 दिसम्बर 2009 को एक सप्ताह के मुंबई प्रवास में हुई।
सभी साथी पहली बार रूबरू हुए। कवि गोष्ठियों में मुलाकात हुई। रचनाओं से रूबरू हुए। विचारों और एक दूसरे को जानने-समझने के लिए ही तो मुंबई ब्लॉगर मीट संजय गांधी नेशनल पार्क में त्रिमूर्ति जैन मंदिर में आयोजित की गई, जिसमें उल्लेखनीय भूमिका विवेक रस्तोगी और महावीर बी सेमलानी की रही। मुंबई की व्यस्त जिंदगी में सूरत और पनवेल से आकर फुर्सत के पल निकालना मुझे अभिभूत कर गया। मैं कोई सेलीब्रिटी नहीं था लेकिन सबने मिलने पर मुझे ऐसा अहसास करा दिया और उनमें डॉ. रुपेश की आत्मीयता स्मृतियों में जिंदा है। अल्पायु में डॉ. रुपेश का जाना मर्माहत कर गया है। सामूहिक ब्लॉग नुक्कड़ के मॉडरेटर की ओर से एक जीवट व्यक्तित्व के धनी डॉ. रुपेश श्रीवास्तव को भावभीने श्रद्धासुमन। उनके दिखाए रास्ते पर दौड़कर हम सबको मानवता का भला करना चाहिए। यह जज्बा चित्रकार एडम के प्रति उनके पितृतुल्य लगाव को महसूस कर जाना जा सकता है। भड़ास के कुशल मॉडरेटर के रूप में उन्होंने अभिव्यक्ति को काफी उच्च स्वर दिए हैं और उनके जाने से भी यह सच्ची सोच और कहन कभी न रुककर, मानवीयता के धरातल को और पुख्ता करेगी।
रुपेश श्रीवास्तव जी को भावभीनी श्रद्धांजलि।
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