भारत का आम नागरिक अपने देश का राष्ट्रपति क्यों नहीं बन सकता और बनने की कौन कहे, जब उम्मीदवार बनने की धूमिल सी संभावना भी नजर आती नहीं दिखती है। राष्ट्रपति बनने के लिए मेरी दीवानगी का आलम यह है कि इस गरिमामयी पद को पाने के लिए मैं अपनी धर्मपत्नी को भी बेहिचक छोड़ सकता हूं जिससे मैं किसी का भी पति न साबित किया जा सकूं। अपन नाम के अंत में से ‘वाचस्पति’ मिटाकर ‘अन्नाबाबा’ लिखने का निर्णलय लेकर उसे अमल में ला सकता हूं। फिर भी देश के लालची और मतलबी गठबंधनों के चलते मुझे अपने अरमान फलीभूत होते नहीं दीख रहे हैं। आप सोचिए, जिस देश का एक आम नागरिक अपने देश का राष्ट्रपति तक बनने की योग्यता न रखता हो, उसकी कितनी लानत-मलामत होनी चाहिए। यह वही भारत है जहां के नेता इतने डरपोक हैं कि घोटाले, घपले करते हुए बिल्कुल नहीं डरते हैं लेकिन उससे मिले काले धन को रखने के लिए विदेश में स्विटजरलैंड और अन्य विदेशी बैंकों में खातों और लॉकरों में धन के अंबार लगा लगाकर भूल जाते हैं। क्या किसी समय ‘सोने की चिडि़या’ कहलाने वाले इस देश के लिए यह बेहद शर्म की बात नहीं है कि इस देश का आम नागरिक ‘आम’ खाने का अपना सपना भी पूरा नहीं कर पाता है और आम की तनिक सी मिठास के लिए तरसता रहता है। प्रतियोगिताओं से भी प्रतिभाएं निखर और निकल कर सबके सामने आती हैं और चमत्कृत करती हैं।
मेरे शरीर में वे सभी योग्यताएं हैं जो एक राष्ट्रपति में होनी चाहिए और तो और मुझे साधारण नहीं, असाधारण‘हेपिटाइटिस सी’ की बीमारी भी है। उनकी तरह मेरे भी दो कान हैं, एक नाक, दो नशीली आंखें, फेसबुक के योग्य एक अदद चेहरा, सिर पर काले व सफेद बालों का संगम, 32 तो नहीं, लेकिन 25 दांत तो मौजूद हैं,जिनमें से सामने के ऊपर की पंक्ति के दो और नीचे की पंक्ति का एक आधा टूटा पीला दांत भी है। एक कान से कम सुनाई देता है, यह भी एक योग्यता ही है, इन बहानों से कई देशों की यात्राएं संपन्न की जा सकती हैं। ढूंढने पर ऐसी और कितनी ही शारीरिक विकृतियां मेरे शरीर में जहां-तहां मिल जाएंगी। इस प्रकार की अतिरिक्त योग्यताओं से लबालब होना राष्ट्रपति पद के लिए मेरी दावेदारी को पुष्ट करता है। मैं अपनी नाक के छिद्रों में नियमित रूप से सरसों के तेल की बूंदें टपकाता रहता हूं, जिससे जुकाम की शिकायत नहीं होती है।
इसके अतिरिक्त कितनी ही छोटी बीमारियों, जैसे आंखों से कम दिखना और कानों से कम सुनने का मैंने जिक्र नहीं किया है और वह राष्ट्रपति पद पर मेरी नियुक्ति के पूर्व मेडिकल टैस्ट में खोज ही ली जाएंगी और अतिरिक्त योग्यता के तौर पर देश को गौरवान्वित करेंगी। शरीर के अंगों के सुचारू सक्रिय संचालन के लिए सदैव सतर्क रहता हूं और यही तर्कशीलता मुझे तर्कों के साथ जीवंत रखने में समर्थ है। तर्क के साथ जीना एक पब्लिक फिगर के लिए कितना जरूरी है, इसे समूचा देश अच्छी तरह से जानता है।
मैं घोड़ों की सवारी तो नहीं कर सकता हूं लेकिन राष्ट्रपति बनते ही मेरे चारों तरफ घोड़ों और घुड़सवारों की महफिल जमाई जाती है, जिससे मुझे अपने विशिष्ट होने का खूबसूरत अपने कार्यकाल में बना रहे। राष्ट्रपति के आस-पास किसी को फटकने नहीं दिया जाता है और भटकने की कोई हिम्मत कर नहीं सकता है। राष्ट्रपति बनने के बाद मैं जहां चाहूं सो सकता हूं और जब चाहे जग सकता हूं। चाहूं तो दौड़ भी सकता हूं लेकिन दौड़ूंगा नहीं क्योंकि पहले ही मैं अपने मासूम घुटनों के हालात ब्यान कर चुका हूं। किसी भी स्थल पर मेरे पहुंचने से पहले कितने ही जवानों और कुत्तों की सुरक्षा गारद मेरे पहुंचने की जगह पर सतर्कता अभियान चला चुकी होती है। उन्हें अपनी नहीं, सिर्फ मेरी जान की चिंता होती है क्योंकि मैं देश का पहला नागरिक होता हूं और मेरे अभाव में देश के नागरिकों की गिनती नहीं की जा सकती है। इस स्थिति से बचने के लिए ऐसी कवायदें जब तब चलती ही रहती हैं। इससे देश की गतिशीलता का अहसास बना रहता है।
अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों के सरकारी आयोजनों में मुझे कई घंटे लगातार खड़े होकर पुरस्कारों का वितरण करना होगा। जो मेरे मजबूत पैरों के रुग्ण घुटनों के लिए संभव न होने के कारण कईयों की इच्छापूर्ति का सबब बनेगा। क्या अब भी आप इतने अधिक प्रतिभासंपन्न और हुनरमंद पब्लिक के एक आम नागरिक को राष्ट्रपति बनाने के बारे में संशय की स्थिति में फंसे हुए हैं तो फिर देश का भला कैसे हो सकेगा ?
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