राष्‍ट्रपति कदापि नहीं बनूंगा अब मैं : हरिभूमि 28 जून 2012 में प्रकाशित



भारत का प्रथम नागरिक यानी राष्‍ट्रपति बनने से अब मेरा मोह भंग हो गया है। अच्‍छा हुआ कि किसी ने मुझे बना नहीं दिया। पानी क्‍यों नहीं है, बिजली क्‍यों नहीं है, सड़क पर गड्ढे क्‍यों हैं, सड़कों पर पानी क्‍यों भरा है, बारिश तो हुई नहीं, जरूर पानी की पाईप लाईन फट गई होगी। राष्‍ट्रपति अगर बनते हैं तो इसकी सबकी कानूनी न सही, हैं या हैं नहीं कि नैतिक जिम्‍मेदारी तो राष्‍ट्रपति की ही बनती है। रास्‍ता रोककर वीआईपी रूट बनाया गया है तो बदनामी राष्‍ट्रपति की ही होती है कि वही आ रहे होंगे, तभी तो जाम है। यह रोजमर्रा के  ट्रैफिक के जाम से बिल्‍कुल अलग है। रुटीन जाम में इसमें वाहन रेंगते तो हैं पर सचमुच में लगाए गए जाम की तरह सामने बिल्‍कुल खाली सड़कें नजर आती हैं। अच्‍छा हुआ मैं इस बदनामी से भी बच गया। वैसे बदनाम होने से भी नाम होता है जबकि मेरी इच्‍छा नेकनामी में नाम कमाने की है, चाहे मुझे इसमें सफलता मिले अथवा असफलता।
भला यह भी कोई बात हुई कि कहीं जहाज क्‍यों गिरा, कहीं रेल क्‍यों भिड़ी, जहाज किडनैप क्‍यों हुआ, संसद में हंगामा क्‍यों हुआ, मानसून समय पर नहीं आया, मुंबई में जादा बारिस क्‍यों हुई, किसी का मोबाइल कोई लूट कर ले गया, एटीएम में लूट हो गई, एटीएम सुरक्षा गार्ड ने एटीएम ही लूट लिया, साइबर क्राइम बढ़ रहा है, बेवसाइटों की हैकिंग से राष्‍ट्र की सुरक्षा को खतरा है, बाढ़ क्‍यों आ रही है, धूप क्‍यों तेज है, बारिश हुई तो ओले क्‍यों गिरे – अब भला यह भी कोई बात हुई कि राष्‍ट्र का पति हूं तो सब जिम्‍मेदारी मेरी। मुखिया हूं तो सब मेरी तरफ ही मुंह करके हमला करने को चौकस हूं। किस किसने बचाव करूं, क्‍या हेलमेट पहनूं, बख्‍तरबंद गाड़ी में टहलूं, मुझसे यह सब नहीं होगा।
मेरे बच्‍चों, नाते रिश्‍तेदारों, मित्रों और उनके मित्रों ने न जाने कितनी उम्‍मीदें मेरे राष्‍ट्रपति बनने से बांध ली थीं जो कि अब टूट गई हैं। वे सब मिलकर अब चाहे मेरे फैसले पर मुझे गोली मार दें, परंतु मैं राष्‍ट्रपति नहीं बनूंगा। लेकिन मेरी खुली आंखें अब और अधिक खुल गई हैं। देश में कहीं भी कुछ भी होता है, मतलब पत्‍ता भी हिलता है या परिंदा पर मारता है तो इन सब हरकतों की जिम्‍मेदारी राष्‍ट्रपति की ही बनती है। कहीं भी कोई खून, आतंककारी गतिविधि में सजा पाता है तो माफी की गुहार यहीं लगाकर माफी पाता है, मानो महामहिम से पूछकर हरकत की हो। पीएम तो मौन रहकर इन सबसे बच जाते हैं लेकिन राष्‍ट्रपति रबर की मोहर होता है। उस रबर की मोहर का ठप्‍पा कोई भी उठाकर कहीं भी लगा देता है। महामहिम मौन नहीं होते हैं। उनके पूरे बत्‍तीस दांत और एक जीभ होती है। चाहे वह तोल मोल के ही बोलती है परंतु बोलती जरूर है और जीभ का दांतों से बचाव करते हुए ही बोलती है।  
यह बोलना ही ताकत है। बोलने वाले का ही नेतागिरी में स्‍वागत है। वैसे नियम कायदे टूट रहे हैं, मौन रहने वाले भी पीएम बनने का आनंद लूट रहे हैं। नेतागिरी करनी है तो बयानबाजी करो, पीएम बनना है तो मौन रहो, राष्‍ट्रपति बनना है तो पूर्वसंध्‍या पर जरूर कहो। वैसे मौन रहने वाले पीएम भी पूर्वसंध्‍याओं पर बोलने का मोह नहीं त्‍याग पाते हैं और आजादी दिवस पर तो सुबह-सुबह लालकिले की प्राचीर से देश का लाल बनकर ढींगे हांकने से बाज नहीं आते हैं। मुझे एमएलए, सांसद बनना तो मंजूर हैं, मैं सांसद बनकर बंगला भी ले लूंगा पर राष्‍ट्रपति कदापि नहीं बनूंगा। 

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