नोट चिंतन : दैनिक हरिभूमि 12 जुलाई 2012 में प्रकाशित


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नहर में लाल पीले नोट। नोटों के आसपास मंडराते लोग। जहां नोट हैं, वहां लोग हैं। जहां लोग हैं, वहां लुगाई हैं। लोग लुगाई और लाल पीले नोट। नहर में पानी। पानी में नहाते नोट। गर्मी मिटाते नोट। नोटों के पीछे कूदते नोट। नोटों के पीछे कूदते लोग, तैरते लोग, नोट बटोरते लोग। गीले नोटों को सुखाते नोट। कई लोग गीले नोट ही घर ले जाते हैं। न मालूम कब सुर्खियां बन जाएं और पुलिस आ जाए। फिर सूखों की कौन कहे, गीले नोटों के सुख से भी महरूम हो जाएं। जीवन यापन में मलहम बनते नोट, कोई नहीं चाहता इनसे महरूम रहे। बस मेरे रूम में ही रहें नोट। नोटों को न ले कोई विलोक। नहर में नोट। नोटों के साथ तैरते लोग। यह दौर इंदौर में आया था। लोगों को खूब भाया था परंतु ऐसा दौर दोबारा से आने की कोई उम्‍मीद नहीं है। नोट पहले सड़कों पर उड़ते रहे हैं। पानी में भीगते पहली बार मिले हैं। नोट जलते हुए भी मिले हैं। बुझे हुए नोट पहली बार मिले हैं। ऐसा लगता है कि आत्‍महत्‍या की है नोटों ने। फिर जांच एजेंसियों का यह शक पुख्‍ता हो चला है कि नोटों को मारने की कोशिश की गई है लेकिन वे मरने से पहले बचाने वालों, उनके चाहने वालों द्वारा बचा लिए गए हैं। क्‍या हुआ जो गीले हैं, नोट तो हर हाल में लगते रसीले हैं। दूसरों के पास हों तो आदमी ढीला महसूस करता है और अपने पास हों तो मजबूती का दमदार अहसास। ऐसे होते हैं नोट खास। बंधी रहती है सबकी आस।
नोट के न होने की चोट से कोई नहीं बच सका है। नोट प्रत्‍येक प्रकार की चोट से बचाव करती है। नोट नेताओं के लिए वोट पाने का सबब बनते हैं। जिसके पास न हों नोट वे नोट पाने के लिए जीवन भर सिर धुनते हैं। धुन सिर्फ वही कि कैसे पाएं नोट। कैसे रिझाएं नोट। नोट नकली हों तब भी चल जाते हैं। बार बार न सही, काठ की हांडी के मानिंद एक बार तो चल ही जाते हैं। नोट एक नाम अनेक। कहीं डॉलर, कहीं पौंड, कहीं दीनार, कहीं यूरो – पर सब चाहते हैं कि उससे न दूर हों। काले भी हों परंतु अपने नाम के स्विस खाते में भरे हों। चाहे रिश्‍वत में चरे हों, चाहे घोटाले घपले में भरे पड़े हों। नोट की महिमा अपरंपार। सारे कारज इसी से होते पूरे। बिना नोट के सब कुछ लगता है घूरा। और नोट मिलें तो घूरा भी लगता है बूरा।
नोटों की ताल। नोटों की तलैया। सब लेते हैं नोटों की ही बलैयां। नोट हो तो सब लगते हैं सैयां। बिना नोट के सैयां भी लगें ज्‍यूं ततैया। न काटे फिर भी डंक का अहसास दें। नोट हों पास तो उड़ जाती है भूख प्‍यास। नोटों का करें इलाज तो नहीं आती कोई महामारी पास। महामारी मतलब गरीबी। हमारा देश भी धन्‍य हो गया है। योजना आयोग टॉयलेट में 35 लाख लगाकर चिंतन कर रहा है। जरूर 35 लाख वाले में मोबाइल चार्जर भी लगे होंगे। आने वाले के लिए बतौर गिफ्ट मोबाइल फोन ले जाने के लिए धरे होंगे। जिससे आगामी बार आने की बुकिंग पहले से ही की जा सके।  सब नोटों का ही कमाल है। नोट ही सब जगह मचाते फिर रहे धमाल हैं। इसे मत समझो रूमाल। यह चादर है जिससे पैर कभी बाहर नहीं जाते, इसमें सब समाते हैं।

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