लोटा चोरी की एफआईआर : जनसंदेश टाइम्‍स में 14 जुलाई 2012 में उलटबांसी में प्रकाशित



दिल्‍ली के आनंद विहार में एक लोटा चोरी की एफआईदर्ज हो गई। इससे कितने ही बरतन भांडे दुखी  हैं। लगता है इस एफआईआर के दर्ज होने से उनका आनंद लूट लिया गया है। दिल, दुपट्टा तो खूब चोरी होते रहे हैं, उनकी एफआईआर न सही, लेकिन फिल्‍मी गीतों ने उनकी चोरी को बार बार गा बजाकर सुर्खियों में ला दिया। ताजा सुर्खियां इसलिए हैं क्‍योंकि चोरी गया लोटा इंकम टैक्‍स डिपार्टमेंट के रिटायर्ड अधिकारी का था। जहां पुलिस वाले मोबाइल, पर्स चोरी के एफआईआर तक लिखने में आनाकानी करते हैं। बल्कि साफ कहूं कि लिखते ही नहीं है, ऐसे में लोटा चोरी की एफआईआर दर्ज होना सुकून से भर देता है।
एफआईआर के बाद से तश्‍तरी, चम्‍मच, कटोरी, गिलास का तो दुख से बहुत बुरा हाल है। इनमें चम्‍मच इतना रो रही है कि लगता है जब तक उसकी चोरी की एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी, वह चुप ही नहीं होएगी। यह भी हो सकता है कि वह जंतर-मंतर पर अनशन और प्रदर्शन कर डाले। सबसे ज्‍यादा मुझे ही चुराया जाता है और जिसके यहां से चुराया जाता है, उसके आने पर छिपाया जाता है। कितनी आसानी से मेरी चोरी कर ली जाती है। जरा सा ऊंगलियों में दबाया और जेब में सरका लिया और मैं पीएम की तरह मौन न इशारा कर पाती हूं, न बोल पाती हूं। कभी मौका पाकर जेब में पहुंचने से पहले सरक कर फर्श पर जोर से खनखनाती हूं तो मेरा कथित चोर यह कहकर ‘सॉरी, चम्‍मच गिर गई, कहकर अपनी चोरी पर तम्‍बू तान लेता है और बच निकलता है। कोई भी चम्‍मच चोर साधारण नहीं होता, हमेशा बहुत बड़ी हैसियत का मालिक होता है।
क्‍या होटल, क्‍या घर, क्‍या पार्टी मुझे कहीं से भी किसी के द्वारा चुरा लिया जाता है और यहां तो सिर्फ एक लोटा ही चोरी हुआ है जबकि यह भी नहीं मालूम कि वह पेंदी वाला था या बेपेंदी वाला। फिर भी एफआईआर लिखवाने में सफल। सचमुच में देश में कानून और व्‍यवस्‍था का पुरसा हाल है, अपनी पीड़ा बतला रही है चम्‍मच। आज तक चम्‍मच चोरी की एफआईआर कभी किसी पुलिस थाने में दर्ज नहीं हुई है। जैसे ही हम चार बरतन इकट्ठे होंगे, मैं खनखनाहट मचाकर बवाला मचा दूंगी, चुप नहीं रहूंगी। मुझ निरीह चम्‍मच पर इतना घनघोर अत्‍याचार। इतिहास में जिक्र होना चाहिए था चम्‍मच चोरी की एफआईआर का और उसे भी लुटेरा लोटा लूटकर ले गया। आज ज्ञान हुआ है कि जहां चार बरतन होते हैं, वे खड़कते क्‍यों हैं, वे खड़कें न तो क्‍या करें, क्‍या पीएम की तरह मौन रह कर अपनी इज्‍जत रूपी दौलत को गंवा दें। बरतन तो दो ही खड़कने पर सुनामी ला सकते हैं। पर चार हों तो खड़कने का सच्‍चा सुर सध जाता है।
इधर गिलास का भी रो रोकर बुरा हाल है। आंसुओं से गिलास खुद ही भर चुका है। कटोरी लबालब भरने के बाद पहले से बही जा रही है जिससे आसपास का फर्श पूरी तरह गीला हो चुका है। उसमें डूबी हुई तश्‍तरी तो कुछ कह ही नहीं पा रही है, जिसका सांस लेना भी दूभर हो रहा है, सोच रही है कि गिलास, कटोरी रोना बंद करें तो वह बाहर निकलकर अपनी दुख-तकलीफों का बयान कर सके। जिन बरतनों का यहां जिक्र नहीं है, वे सोच रहे हैं कि इस मसले पर अपनी प्रतिक्रिया किन शब्‍दों में जाहिर करें ?

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