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गांधी जी की चिट्ठियों की इतनी अधिक बढ़ती डिमांड और ई मेल का कोई मूल्य नहीं, सरासर नाइंसाफी है। जब तकनीक विकास कर रही है फिर चिट्ठियों के मुकाबले ई मेल के प्रति इतनी बेरुखी क्यों। ई मेल की नीलामी भी होनी चाहिए। यह क्या कि कभी गांधी जी का चरखा,कभी गांधी जी का चश्मा, कभी गांधी जी का पंखा, कलम, कागज तक की बोली लगाई जाए और ऊंची कीमत पाई जाए और इधर हम ई मेल पर ई मेल धड़ाधड़ भेजे जा रहे हैं और कोई बोलीदाता इसमें दिलचस्पी नहीं ले रहा। चिट्ठियां जो पहले बहुत दुखी थीं। कई कई दिन, महीने, बरसों तक सफर में जाया कर देती थीं, अब सुख महसूस कर रही हैं और फिल्मी गीत गुनगुना रही हैं ‘दुख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे ... मज़ा चिट्ठी पढ़ने का अब आयो रे ...’! ई मेल दुखी हैं।
पहले की चिट्ठियां अब चिट्ठे बनकर तहलका मचा रही हैं,सरकारों को हिला रही हैं, गिरा रही हैं, उनकी पेशानी पर बल ला रही हैं, सूनामी ला रही हैं। चिट्ठे आजकल मजबूत पट्ठे बनकर इंटरनेट पर अपना वर्चस्व कायम कर चुके हैं। उधर पुरानी चिठ्ठियों के दिन बहुर गए हैं। उन्हें लाखों, करोड़ों की बोली लगाकर खरीदने, सहेजने वाले मिल रहे हैं। इधर ई मेल खाता भरने के डर से से हमें निर्ममतापूर्वक डिलीट किया जा रहा हैं। जैसे कन्याओं की मां की कोख में ही भ्रूण हत्या की जा रही हो। क्या हमारे उद्धार के लिए इंटरनेट जगत में बन पाएगा कोई आमिर खा और बुंलद आवाज में कहेगा ई मेल जयते। ई मेल ही सत्य है। वैसे ई मेल से पहले फी मेल सदा सत्य हुआ करती थीं परंतु ई मेल और फेसबुक के बढ़ते वर्चस्व ने उनकी मार्केटिंग पर डाका डाल लिया है। कहीं कहीं पर तो ई मेल फ्री है और बाकी जगह फी मेल बिल्कुल फ्री हैं। जबकि दोनों के मिलन पर ही सृष्टि का वजूद कायम है, वरना तो कभी की सुपुर्दे रिसायकिलबिन हो गई होती।
चिट्ठी, चिट्ठे, ई मेल और फी मेल तथा फ्री मेल का यह विमर्श अब निहायत जरूरी है। कोई तो हो जो हमारी अहमियत को पहचाने, हमारी बहुउपयोगिता को जाने और हमारे इस मोहिनी स्वरूप को सबकी आंखों में बसा ले। ई मेल कह रही है कि कितनी तेज गति से चलती हूं। इधर चली और उधर पहुंची। पैट्रोल, डीजल, गैस या टिकट का खर्चा नहीं, किसी वाहन की दरकार नहीं। दूरी के कोई मायने नहीं रह गए हैं। पलक झपकने से पहले ही पाने वाले को मिल जाती हूं। किसी जमाने में टेलेक्स, और तार के मैसेज अब मोबाइल के मैसेज बनकर धूम मचा रहे हैं। उनके जरिए तो कमाने वाले खूब कमा रहे हैं, मेरी मिट्टी पलीद और पलीत करने में इंसान रूपी शैतान का ही हाथ है। उस हथेली की ऊंगलियों की यह करामात है। उसने ही मुझे खोजा है और फिर डिलीट स्पैम जैसे गर्त में ढकेला है। इंसान,इंसान नहीं मुझे तो लग रहा गधेला है। जिसका कोई देता नहीं धेला है, वैसे ही ई मेल का बचा बावेला है,इसका भी कोई धेला देकर राजी नहीं है। वैसे भी आजकल धेले की कोई औकात नहीं रह गई है।
हंगामा मचाने के लिए चिट्ठी बम नहीं, आजकल सी डी शक्तिमान हो गई है। पॉवरफुल पैन ड्राइव भी यहां पर फेल है। पर कह रही है कि सीडी मेरी बड़ी दीदी है, उसके होते मैं पॉवरलैस ही ठीक हूं। सीडी दीदी के राज में ठाठ तो पैन ड्राइव भैया के ही हैं। दीदी की ताकत से ही पैन ड्राइव आजकल दबंग है। कम्प्यूटर से जुड़ा अति महत्वपूर्ण अंग है। इसकी ताकत और विशाल रूप देखकर आई टी जगत दंग है। इसी के कारण अब आई टी का चढ़ता रंग है। यह जिसके संग है, उससे कोई नहीं करता जंग है। यह भाई है, क्या हुआ जो इसे मुंबइया हिंदी नहीं बोलनी आई है। पर इसमें कम्प्यूटर की हर तकनीक समाई है। एक छोटा कंप्यूटर भी अब वैज्ञानिक विकसित कर चुके हैं। जी हां, इसी पैन ड्राइव में। आप साइबर कैफे में जाकर यूएसबी पोर्ट में अपना पैनड्राइव कंप्यूटर लगाकर जोखिमरहित इंटरनेट का मजा लीजिए। आप कुछ भी कर लो परंतु इंटरनेट के दीवानों तुम यह काम न करो, ई मेल को यूं बदनाम न करो। ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के सक्रिय होने के बाद भी आपको क्या लग रहा है कि ई मेल सच कह रही है ?
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