कोई मुझे राष्‍ट्रपति बना दे : डीएलए 4 जुलाई 2012 में प्रकाशित




भारत का आम नागरिक अपने देश का राष्‍ट्रपति क्‍यों नहीं बन सकता और बनने की कौन कहे, जब उम्‍मीदवार बनने की धूमिल सी संभावना भी नजर आती नहीं दिखती है। मेरी हसरत रही है कि किसी और नहीं, परंतु अपने देश का राष्‍ट्रपति बन सकूं। राष्‍ट्रपति बनने के लिए मेरी दीवानगी का आलम यह है कि इस गरिमामयी पद को पाने के लिए मैं अपनी धर्मपत्‍नी को भी बेहिचक छोड़ सकता हूं जिससे मैं किसी का भी पति न साबित किया जा सकूं। लेकिन देश के लालची और मतलबी नेताओं और गठबंधनों के चलते मुझे अपने अरमान फलीभूत होते नहीं दीख रहे हैं। आप सोचिए, जिस देश का एक आम नागरिक अपने देश का राष्‍ट्रपति तक बनने की योग्‍यता न रखता हो, उसकी कितनी लानत-मलामत होनी चाहिए। क्‍या किसी समय ‘सोने की चिडि़या’ कहलाने वाले इस देश के लिए यह बेहद शर्म की बात नहीं है।  प्रतियोगिताओं से भी प्रतिभाएं निखर और निकल कर सबके सामने आती हैं और चमत्‍कृत करती हैं। मेरे शरीर में वे सभी योग्‍यताएं हैं जो एक राष्‍ट्रपति में होनी चाहिए और तो और मुझे साधारण नहीं, असाधारण ‘हेपिटाइटिस सी’ की बीमारी भी है ताकि मेरी विदेश यात्राओं के लिए किसी प्रकार के बहानों का इंतजाम न करना पड़े। उनकी तरह मेरे भी दो कान हैं, एक नाक, दो नशीली आंखें, फेसबुक के योग्‍य एक अदद चेहरा, सिर पर काले व सफेद बालों का संगम, 32 तो नहीं, लेकिन 25 दांत तो मौजूद हैं, जिनमें से सामने के ऊपर की पंक्ति के दो और नीचे की पंक्ति का एक आधा टूटा पीला दांत भी है। एक कान से कम सुनाई देता है, यह भी एक योग्‍यता ही है, इस बहाने से भी कई देशों की यात्राएं संपन्‍न की जा सकती हैं। ढूंढने पर ऐसी और कितनी ही शारीरिक विकृतियां मेरे शरीर में जहां-तहां मिल जाएंगी। इस प्रकार की अतिरिक्‍त योग्‍यताओं से लबालब होना राष्‍ट्रपति पद के लिए मेरी दावेदारी को पुष्‍ट करता है। मैं अपनी नाक के छिद्रों में नियमित रूप से सरसों के तेल की बूंदें टपकाता रहता हूं, जिससे जुकाम इत्‍यादि की शिकायत नहीं होती है।
मेरे पैर के घुटने मुड़ने में अटकते और चरमराने की आवाज करते हैं ताकि इनके इलाज के लिए भी मैं दो चार बार विदेश यात्रा कर सकता हूं। इसके अतिरिक्‍त कितनी ही छोटी बीमारियों, जैसे आंखों से कम दिखना और कानों से कम सुनने का मैंने जिक्र नहीं किया है और वह राष्‍ट्रपति पद पर मेरी नियुक्ति के पूर्व मेडिकल टैस्‍ट में खोज ही ली जाएंगी और अतिरिक्‍त योग्‍यता के तौर पर देश को गौरवान्वित करेंगी। मैं अपने शरीर के अंगों के सुचारू सक्रिय संचालन के लिए सदैव सतर्क रहता हूं और यही तर्कशीलता मुझे तर्कों के साथ जीवंत रखने में समर्थ है। तर्क के साथ जीना एक पब्लिक फिगर के लिए कितना जरूरी है, इसे समूचा देश अच्‍छी तरह से जानता है।
अनेक राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों के सरकारी आयोजनों में मुझे कई घंटे लगातार खड़े होकर पुरस्‍कारों का वितरण करना होगा। जो मेरे मजबूत पैरों के रुग्‍ण घुटनों के लिए संभव न होने के कारण कईयों की इच्‍छापूर्ति का सबब बनेगा और वे मेरे नाम से पुरस्‍कारों के वितरण का अवसर पाकर खुशी हासिल कर सकेंगे। क्‍या अब भी आप इतने अधिक प्रतिभासंपन्‍न और हुनरमंद पब्लिक के एक आम नागरिक को राष्‍ट्रपति बनाने के बारे में संशय की स्थिति में फंसे हुए हैं तो फिर देश का भला कैसे हो सकेगा ?

2 टिप्‍पणियां:

  1. पत्नी ने पढा़ कि नहीं ये लेख? लगता है उनको खबर नहीं है ।

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  2. आम आदमी खाकपति, पाले पतित विचार |
    प्रस्तावक कैसे मिलें, अरबों का व्यापार |
    अरबों का व्यापार, करो सेवा मैया की |
    धरो धकेल पहाड़, कृपा भी हो भैया की |
    वाचस्पति पति-राष्ट्र, तभी तो हो पाओगे |
    बट टाइम इज लास्ड, ग्रेप्स खट्टे खाओगे ??

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