कण कण में भगवान : दैनिक ट्रिब्‍यून 7 जुलाई 2012 'हास परिहास' स्‍तंभ में प्रकाशित




सृष्टि पर कण कण में भगवान की मौजूदगी है। फिर भी इंसान सिर्फ एक कण खोज कर ही बावला हुआ जा रहा है। कण जिसके गुण संभावित हैं, अभी साबित नहीं हुए हैं। साबित तो तब होंगे, जब परख लिए जाएंगे। पर इंसान की खुशी का पारावार नहीं है। हतप्रभ है, विस्मित है, उसे अपनी इस एक कण की खोज पर भरोसा नहीं हो रहा है। इसे वह नायाब मान चुका है। उसका कहना है कि उसने भगवान को पहचान लिया है बल्कि यूं कह सकते हैं कि वह भगवान से गले मिलने का सुख लूट चुका है। यह वही सुख है जो ‘मुन्‍नाभाई एमबीबीएस’ में संजय दत्‍त जफ्फी पाकर और देकर बेरहमी से लूटता रहा है। इसे देखकर ही उस समय दीवानों की खुशी की सीमा नहीं रही थी। तब रेखा भी संसद में नहीं पहुंची थी न सचिन ने संसद में कब्‍जा जमाया था।
उलझन में हैं आम आदमी। उसे सब मिलकर उलझाते ही रहते हैं। नेता क्‍या कम पड़ रहे थे जो अब वैज्ञानिकों ने भी उलझाना शुरू कर दिया है। सोच रहा है कि यह कैसी कविता है जो सृष्टि के जन्‍म की कथा बतला रही है। चिंतित है कि आम आदमी पर सब अपने-अपने डोरे डालने को आतुर हैं। आम आदमी सब जान जाए, चाहे जान से ही चला जाए। पर आम आदमी को पूरी जानकारी से लबालब होना चाहिए। चाहे पीने को बूंद भर पानी न मिले।
अब गॉड पार्टिकल की खोज कर ली है वैज्ञानिकों ने। मतलब कण कण में है भगवान। अब अगर भगवान हर कण में मौजूद है तो आम आदमी क्‍या करे, क्‍या अब आम आदमी को सस्‍ती बिजली, स्‍वच्‍छ पानी, साफ हवा के लिए चिंतित नहीं होना होगा। आम आदमी को सब चिता पर लिटाने को आतुर हैं और वह सोच रहा है कि क्‍या भगवान के एक कण की खोज करने से उसकी बिजली, पानी और हवा की समस्‍या जड़ से खत्‍म हो जाएगी।
गॉड पार्टिकल का रहस्‍य जानने के बाद नेता ईमानदार हो जाएंगे, घोटाले-घपलेबाज सुधर जाएंगे और क्‍या सचमुच में ऐसा सतयुग आएगा जिससे सबके अंतर्मन में राम राज्‍य की स्‍थापना हो जाएगी। अगर ऐसा नहीं होना है तो कण मिले या मिले पूरा भगवान – आम पब्लिक को क्‍या लेना-देना है। शैतान भी मिलेगा तो वह भी चलेगा। आम आदमी को गॉड पार्टिकल मिलने से कोई असर नहीं पड़ता है। गरीब आदमी क्‍या इस दिव्‍य पार्टिकल के मिलने से 28 रुपये में संतोषी जीवन जी सकेगा।
क्‍या सब्जियां सस्‍तीं, दालें पौष्टिक, फल बिना डायरेक्‍ट पेड़ से, मसाले बिना मिलावट के, अराजकता की समाप्ति बेईमानी दुर्लभ हो जाएगी। फिर तो गॉड पार्टिकल रूपी नायाब आर्टिकल मिलने की खुशी, मुझे सबसे पहले है। परंतु आम आदमी जानता है कि गॉड पार्टिकल खोजना कितना आसान – किंतु समस्‍याओं से निजात पाना दीगर बात है। भला आम आदमी क्‍या वैज्ञानिक भी नहीं सकते ऐसी करामात। फिर काहे की उपलब्धि और किसलिए निकालें खुशियों की बारात। सफलता पाने पर उल्‍लास मचा रहे हैं, मानो कण नहीं पूरा भगवान का पहाड़ पा लिया हो। जहां पर तैंतीस करोड़ देवी देवता मौजूद हैं। जहां आम आदमी समस्‍याओं के हलाहल रूपी कोलाहल में धंसा-फंसा हुआ हो और इनसे बचने का कोई रास्‍ता, कोई वैज्ञानिक नहीं खोज पा रहे हैं।
आम आदमी का सफर चिंतन से शुरू होकर चिंता तक पहुंचने के लिए अभिशप्‍त है और खास आदमी की यात्रा, बिना किसी रुकावट की मात्रा के चिंतन से चिंतन पर स्‍थाई तौर पर जमा रहता है, उनके चिंतन से उपजे स्‍वर आम आदमी की चिता तक पहुंचने का रास्‍ता सरल बनाते हैं बल्कि चिता तक पहंचाने में खासा असरकारी रोल निबाहते हैं।
ब्रह्मांड की उत्‍पत्ति का रहस्‍य खोजने पर इंसान के लालच की गुत्‍थी कभी खोल पाओगे कि खूब धन और सुविधाधारक के पास इन्‍हें और ... और पाने की लालसा क्‍यों  बलवती बनी रहती है। इंसान पर लालच का जहर क्‍यों पल पल चढ़ता जाता है, महंगाई के मानिंद क्‍यों बढ़ता जाता है। फिर भी संतोष होता है यह जानकर कि विज्ञान के इस ज्ञान से लाईलाज असाध्‍य बीमारियों की चिकित्‍सा भी संभव हो पाएगी। तब तो मुझे लगता है यह बहुत सलोना है। दुख गायब होगा, सुख का साम्राज्‍य फैलेगा – ऐसा होना भी मुझे रोमांचित करता है। जब सिर्फ ईश्‍वर का सिर्फ एक कण खोजकर ही मानव इतना प्रफुल्लित है तो पूरे ईश्‍वर को जिस दिन अपने सामने खड़ा कर पाने में सफल होगा, तब तो खुशी से बौरा ही जाएगा, कुछ तो इतनी खुशी झेल नहीं पाएंगे और मर जाएंगे। लेकिन क्‍या मानव मरने में सहायक खुशी पाने का रोमांच अनुभव कर पाएगा।
एक कण ही तो मिला है और वह भी मिला है कि नहीं। क्‍या मिलने पर उसने बतलाया है कि ‘मैं वही गॉड पार्टिकल हूं पृथ्‍वीवासियों, जिसे तुम पूरी शिद्दत से खोज रहे हो।‘ विज्ञान की खोज में तो ऐसी तस्‍दीक जरूरी है जबकि दुनिया खुशी से बावली हुई जा रही है। इससे अधिक खुशी तो पानी की बूंद की एक झलक पाने भर से हो जाती है। वह भी तो आम पब्लिक के लिए गॉड पार्टिकल ही है। फिर क्‍यों दीवाने मानव, दीवानों की तरह मस्‍ती में चहक रहे हैं। इंसान अब भगवान बनने की ओर बढ़ रहा है। आपको क्‍या लगता है कि यह एक एक सीढ़ी चढ़ रहा है या रॉकेट की तरह तीव्र गति से विकास की लिफ्ट में यात्रा कर रहा है।

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