नेताजी के बयान ! : दैनिक हिंदी ट्रिब्‍यून 21 जुलाई 2012 के 'हास-परिहास' पेज पर प्रकाशित



असली नेता वह जो विवादास्‍पद बयान देकर सुर्खियों में बना रहे, मेरे इस कथन की पुष्टि नेताओं के हालिया बयान कर रहे हैं। बयान आजकल बयान कम, मनोरंजन का साधन अधिक हो गए हैं। इससे चैनलों और प्रिंट मीडिया का पेट भरा रहता है। वरना तो खूब खाने मतलब प्रसारित और प्रकाशित होने के बाद भी सब कुछ खाली-खाली सा लगता है, मानो डायबि‍टीज हो गई हो, जितना भी जितनी भी बार भकोस लो, एक खालीपन का अहसास सदा बना रहेगा।
आजकल बयानों का मानसून आ गया लगता है, मानसून का एक अर्थ बाढ़ भी है । मानसून आए और सूखा टिका रहे, इसे दुर्भाग्‍य कह सकते हैं। एक नेतानी के बयान ने हड़कंप मचा दिया कि नेताओं के रीढ़ नहीं होती है। जबकि मेरा मानना है कि वे सांप भी नहीं होते। सांप उनसे बेहतर माने गए हैं। आज रीढ़विहीन नेता का मतलब बेपेंदी के लोटे से लगाया जा सकता है और उसे थाली का बैंगन कहे जाने पर भी आम पब्लिक को कतई एतराज नहीं होगा क्‍योंकि बैंगन और लोटे में तला नहीं, रीढ़विहीन नेता की उपमा केंचुए, सांप इत्‍यादि से ही दी जाएगी, चाहे उन्‍हें यानी नेताओं को नागवार गुजरे। केंचुए और सांपों तो इस बारे में कुछ कहने से रहे। कोई नेता ही अपने बयान में इसकी तस्‍दीक करेगा, । नेता प्रण नहीं करता और बैंगन में प्राण नहीं होते हैं। बैंगन की सब्‍जी बनाने के लिए काटने, भरता बनाने पर तलने, भूनने से किसी शाकाहारी को भी कभी एतराज नहीं रहा है। किसी व्‍यंग्‍यकार ने कोशिश की तो उसके अभिव्‍यक्ति  के अधिकारों पर ही तुरंत रोक लगाई जाने की संभावना बनती है।  तो दूसरे ही पल दूसरे नेताजी ने पुष्टि कर दी कि पार्टी का चाल चलन ठीक नहीं है, मैं जिस पार्टी में शामिल हूं, वह भली नहीं है। इसका मतलब भले आप भी नहीं हैं। जबकि इसी पार्टी में वह बरसों से डेरा जमाए हुए हैं। तीसरे नेता मंत्री क्‍यों पीछे रहते, कह बैठे कि मध्‍यवर्ग 20 रुपये की आइसक्रीम और 15 रुपये के पानी की बोतल तो खरीद कर पीने के लिए तैयार है और जब एक रुपये की बढ़ोतरी गेहूं या चावल के रेट में की जाती है तो इस मध्‍यवर्ग के पेट में जोरों का दर्द उठने लगता है। गरीबी की सीमा 28 और मनवाने में जुटे हैं कि वह हर रोज 20 रुपये की आइसक्रीम और 15 रुपये का बोतल का पानी पीता है। वे सिर्फ शहरियों की ही गिनती करते हैं, गांवों में कोई गिनती नहीं की जाती। मॉल्‍स ही दिखाई देते हैं इनको, माला भी उन्‍हें ही पहनाते हैं।
नेताओं की एक दल से दूसरे दल में आने-जाने की ‘आया राम गया राम’ प्रवृति भी रीढ़ विहीनता को ही जाहिर करती है। रीढ़ होगी तो उसकी सुरक्षा करनी होगी, इसलिए रीढ़ का न होना ही नेतागिरी के धंधे के लिए उपयोगी है। नेताकर्म को अगर एक धर्म माना जाए, तो रीढ़ उसका मर्मस्‍थल है, इसे तो छिपाकर ही रखना हितकर होगा। नेताओं को संवेदनशील नहीं, चतुर और हाजिरजवाब होना चाहिए। संवेदना के बिना ही नेतागिरी धर्म माना जा सकता है। इसमें अंधविश्‍वास चाहिए और जितना अंधविश्‍वास धर्म के मसले में होता है, उतना अन्‍य किसी मुआमले में आज तक सिद्ध नहीं किया जा सका है।  
इधर एक नेता ने गेहूं, चावलों के दाम बढ़ाने के लिए आइसक्रीम खाने के मौसम को मुफीद बतलाया है। उनका कहने का आशय मुझे तो यही समझ में आया है कि मध्‍यमवर्गीय या गरीब आदमी जब भी 20 रुपये की आइसक्रीम खाता है तो वह सरकार को दैनिक जरूरत की चीजों पर भी एक रुपया बढ़ोतरी का हक सौंप रहा होता है। अब पब्लिक को या तो आइसक्रीम छिपकर खानी होगी या 15 रुपये से कम कीमत की खानी होगी, वह 14 रुपये की हो सकती है। 14 रुपये की आइसक्रीम पर यह शर्त लागू नहीं होगी। वैसे इससे आइसक्रीम निर्माता अब आइसक्रीम की कीमत 14 रुपये तक सीमित करने पर विचार कर रहे हैं, तो क्‍या गलत है ?
14 रुपये की आइसक्रीम खाओ और गेहूं, चावल को महंगा होने से बचाओ। ऐसे मनोरंजनपूर्ण वक्‍तव्‍यों के लिए कथित नेता कई बार व्‍यंग्‍यकारों की सुर्खियों में रह चुके हैं। आइसक्रीम 12 महीने खाई जाती है, ठंडी होने पर भी उसकी तासीर गर्म होती है। यह मंत्री जी के बयान ने साबित कर दिया है।
बारहमासी यह व्‍यंजन अब जन की निंदा का सेतु बनेगा, ऐसा अहसास होने लगा है। उम्‍मीद है कि अब एक और मंत्री कुल्‍फी का जिक्र करेंगे कि 25 रुपये की कुल्‍फी खाओगे तो बिजली पानी के रेट बढ़ने से कैसे रोक पाओगे। इन बदलावों का क्‍या अर्थ लगाया जाए। आइसक्रीम विलासिता की सूची में शामिल कर दी गई है। जबकि मोबाइल आवश्‍यकताओं की लिस्‍ट में। अभी तो समाज में कितने ही प्रतिमान रोजाना बदलने हैं। इसका श्रेय काबिल मंत्री और नेता लेने से कैसे चूक सकते हैं।
मैंने मध्‍यवर्ग का मजाक नहीं उड़ाया, कहकर मंत्री जी ने फिर एक बयान दिया कि उनके बयान को मीडिया ने धो-निचोड़कर पेश किया गया है। हम लोग तो चाहते हैं कि मध्‍यमवर्ग को समूचा ही उड़ा दिया जाए। महसूस होने लगा कि नेता और मंत्री को कुछ भी बोलने और किसी पर भी तोहमत लगाने का संविधानसम्‍मत संपूर्ण अधिकार मिल चुका है, क्‍या आपको भी ऐसा ही  दुखद अहसास हो रहा है ?

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