ओलंपिक पदकों का पिंक सिटी। एक गुलाबी शहर। जहां पदक मिलने की आशा हो, उसकी रंगत गुलाबी आभा ही बिखेरती है। फिर भी फूलों के बगीचे में कांटे घुसने को हरदम तैयार। कांटे भी गुलाबी हैं। कांटों की झाड़ी, कलमाड़ी, टिकट बनवा ली, कटवाने वाले तैयार। कांटे चुभो रहे हैं। पर वे चिल्ला तो रहे हैं लेकिन कदम पीछे नहीं हटा रहे हैं। माकन सुनकर ऐसा लगता है जैसे जिक्र हो रहा हो मकान का। मकान है तो कमरे भी होंगे। किचन और टॉयलेट भी होंगे। भुतहा रास्ते भी हैं। पर यह तो तय है कि अगर टॉयलेट के लिए पदक मिले तो भारत को ही मिेलेंगे। इसलिए कलमाडी जा रहे हैं परंतु माकन समझ नहीं पा रहे हैं। आगे और आगे और भी आगे बढ़ते चले जा रहे हैं।
ध्यान से बढ़ना कलमाडी, यही बाजू वाली है झाड़ी। जहां चल रही है ओलंपिक की मुनादी। बहुत अधिक आगे बढ़ जाओगे तो जब तक वापिस आओगे, तब न पदक और न पदक देने और लेने वालों को ढूंढ पाओगे। वहां राज तुम्हारा नहीं है। वैसे भी तुम खतरों के खिलाड़ी नहीं, न खेलों के खिलाड़ी हो, तुम निरे घपलों से उपले बनाते हो। घोटालों को पालते हो। गोबर सानते हो, उसे घोटाला मानते हो। सनसनी बन जाते हो, फिर सनसनाते हो। ओलंपिक खेलों की तरफ भी जीभ लपलपा रहे हो, लार टपका रहे हो। यह जान लो कि लपलपाने से लार अधिक बहती है। इससे सब जान जाते हैं कि हजूर खेलने के नहीं, खाने के शौकीन है।
पदक पाने के लिए लार नहीं टपकानी जरूरी नहीं है। यूं तो लार में पचाने के गुण मौजूद रहते हैं। । लार को पौष्टिक बनाने के लिए गुण कण होते हैं और कण में भगवान वास करते हैं जिससे वह पचाने में कारगर रहे। गोलियों के तौर पर पाचन रस चूस चूस कर फेंका जाता है। कभी परिणाम सकारात्मक आते हैं और कभी डकारें आना बंद नहीं होतीं। जिन्हें खट्टारात्मक परिणाम माना जा सकता है।
बिना पलक झपकाए लपके जाओ फिर भी लपकने की चाहत कम न हो। लपकन ग्रंथि फ्री हो जाए, कोई रुकावट नहीं, कोई थकावट नहीं और बनावट का तो नामोनिशां ही नहीं। लपकने की चाहत लार का अनवरत सोता ओपन करती है। सब रोते रहते हैं परंतु लार टपकती ही रहती है। मानो सब कुछ लार में चिपटा लेगी। ओलंपिक में कोई ध्वजावाहक बन कर शामिल हो जाता है। सच बतलाऊं, तमन्ना मेरी भी है कि और कुछ न सही, एक बार ध्वजाविलोकक बनने का मौका मिल जाए और ओलंपिक खेलों में घूम आऊं मैं। सुन रहे हो न कलमाडी, सुन रहे हो माकन। कर दो दोनों मिलकर मेरे ओलंपिक जाने का सत्यापन। इसे ही साबित कर दूंगा मैं सच्चापन। नहीं तो सस्तापन साबित करने में भी देर नहीं करूंगा। एक बार जरूर ध्वजा अपनी आंखों से विलोक कर भारत का नाम करूंगा। ओलंपिक में जाने से किसी का विरोध मत करो, जिसको मौका मिले – बढ़े चलो, बढ़े चलो।
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