अब मैं राष्‍ट्रपति नहीं बनूंगा : दैनिक हिंदी मिलाप 1 जुलाई 2012 में प्रकाशित



भारत का प्रथम नागरिक यानी राष्‍ट्रपति बनने से अब मेरा मोह भंग हो गया है। अच्‍छा हुआ कि किसी ने मुझे बना नहीं दिया। पानी क्‍यों नहीं है, बिजली क्‍यों नहीं है, सड़क पर गड्ढे क्‍यों हैं, सड़कों पर पानी क्‍यों भरा है, बारिश तो हुई नहीं, जरूर पानी की पाईप लाईन फट गई होगी। राष्‍ट्रपति अगर बनते हैं तो इसकी सबकी कानूनी न सही, हैं या हैं नहीं कि नैतिक जिम्‍मेदारी तो राष्‍ट्रपति की ही बनती है। रास्‍ता रोककर वीआईपी रूट बनाया गया है तो बदनामी राष्‍ट्रपति की ही होती है कि वही आ रहे होंगे, तभी तो जाम है। यह रोजमर्रा के  ट्रैफिक के जाम से बिल्‍कुल अलग है। रुटीन जाम में इसमें वाहन रेंगते तो हैं पर सचमुच में लगाए गए जाम की तरह सामने बिल्‍कुल खाली सड़कें नजर आती हैं। अच्‍छा हुआ मैं इस बदनामी से भी बच गया। वैसे बदनाम होने से भी नाम होता है जबकि मेरी इच्‍छा नेकनामी में नाम कमाने की है, चाहे मुझे इसमें सफलता मिले अथवा असफलता।
भला यह भी कोई बात हुई कि कहीं जहाज क्‍यों गिरा, कहीं रेल क्‍यों भिड़ी, जहाज किडनैप क्‍यों हुआ, संसद में हंगामा क्‍यों हुआ, मानसून समय पर नहीं आया, मुंबई में जादा बारिस क्‍यों हुई, किसी का मोबाइल कोई लूट कर ले गया, एटीएम में लूट हो गई, एटीएम सुरक्षा गार्ड ने एटीएम ही लूट लिया, साइबर क्राइम बढ़ रहा है, बेवसाइटों की हैकिंग से राष्‍ट्र की सुरक्षा को खतरा है, बाढ़ क्‍यों आ रही है, धूप क्‍यों तेज है, बारिश हुई तो ओले क्‍यों गिरे – अब भला यह भी कोई बात हुई कि राष्‍ट्र का पति हूं तो सब जिम्‍मेदारी मेरी। मुखिया हूं तो सब मेरी तरफ ही मुंह करके हमला करने को चौकस हूं। किस किसने बचाव करूं, क्‍या हेलमेट पहनूं, बख्‍तरबंद गाड़ी में टहलूं, मुझसे यह सब नहीं होगा।
मेरे बच्‍चों, नाते रिश्‍तेदारों, मित्रों और उनके मित्रों ने न जाने कितनी उम्‍मीदें मेरे राष्‍ट्रपति बनने से बांध ली थीं जो कि अब टूट गई हैं। वे सब मिलकर अब चाहे मेरे फैसले पर मुझे गोली मार दें, परंतु मैं राष्‍ट्रपति नहीं बनूंगा। लेकिन मेरी खुली आंखें अब और अधिक खुल गई हैं। देश में कहीं भी कुछ भी होता है, मतलब पत्‍ता भी हिलता है या परिंदा पर मारता है तो इन सब हरकतों की जिम्‍मेदारी राष्‍ट्रपति की ही बनती है। कहीं भी कोई खून, आतंककारी गतिविधि में सजा पाता है तो माफी की गुहार यहीं लगाकर माफी पाता है, मानो महामहिम से पूछकर हरकत की हो। पीएम तो मौन रहकर इन सबसे बच जाते हैं लेकिन राष्‍ट्रपति रबर की मोहर होता है। उस रबर की मोहर का ठप्‍पा कोई भी उठाकर कहीं भी लगा देता है। महामहिम मौन नहीं होते हैं। उनके पूरे बत्‍तीस दांत और एक जीभ होती है। चाहे वह तोल मोल के ही बोलती है परंतु बोलती जरूर है और जीभ का दांतों से बचाव करते हुए ही बोलती है।  
यह बोलना ही ताकत है। बोलने वाले का ही नेतागिरी में स्‍वागत है। वैसे नियम कायदे टूट रहे हैं, मौन रहने वाले भी पीएम बनने का आनंद लूट रहे हैं। नेतागिरी करनी है तो बयानबाजी करो, पीएम बनना है तो मौन रहो, राष्‍ट्रपति बनना है तो पूर्वसंध्‍या पर जरूर कहो। वैसे मौन रहने वाले पीएम भी पूर्वसंध्‍याओं पर बोलने का मोह नहीं त्‍याग पाते हैं और आजादी दिवस पर तो सुबह-सुबह लालकिले की प्राचीर से देश का लाल बनकर ढींगे हांकने से बाज नहीं आते हैं। मुझे एमएलए, सांसद बनना तो मंजूर हैं, मैं सांसद बनकर बंगला भी ले लूंगा पर राष्‍ट्रपति कदापि नहीं बनूंगा। कोई मुझसे जबर्दस्‍ती करना चाहेगा तो उस पर भारतीय कानून के तहत कुकर्म का मुकदमा भी दर्ज करवा दूंगा। थाने में जाने पर किसी ने रिपोर्ट नहीं लिखी तो ई मेल भेजकर एफआईआर लिखवा दूंगा।  फिर आईटीआई दाखिल कर सब जांच के जवाब मांगूंगा।
मुझे मालूम है जहां मुझे अपने व्‍यंग्‍य प्रकाशित करवाने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं और उनमें से अधिकतर टूट जाते हैं। वे सब मेरे राष्‍ट्रपति बनने पर अखबारों द्वारा लपक-लपक और ढूंढ-ढूंढ कर प्रकाशित किए जाएंगे। पुराने प्रकाशित भी सब ढूंढ निकाले जाएंगे।  प्रकाशन संस्‍थान उन्‍हें एकत्रित करके पुस्‍तकें प्रकाशित करने की होड़ लगायेंगे, वे उनके अनुवादित संस्‍करण भी अवश्‍य प्रकाशित करके मुनाफा बटोरेंगे। मेरे जीवन में यूं तो ऐसी कोई विशिष्‍टता नहीं है, फिर भी साधारणता को विशिष्टिता बनाकर साहित्‍य के ठेकेदार मेरी जीवनियां लिखकर प्रकाशक के साथ मिलकर दोनों हाथों में लड्डू हड़पने में पीछे न रहते। न्‍यू मीडिया के हिंदी और अन्‍य भाषाओं के ब्‍लॉगर अपनी-अपनी ब्‍लॉग पोस्‍टों में मेरा ही जिक्र करेंगे। लगे हाथ मेरी साहित्यिक अनुपलब्धियों को उपलब्धियां बनाकर कितने ही सम्‍मान और पुरस्‍कार दे दिए जाएंगे। फिर भी मैं इस किंचित लालच के वशीभूत होकर राष्‍ट्रपति न बनने के अपने फैसले पर अंगद के पांव की तरह डटा रहूंगा।



3 टिप्‍पणियां:

  1. आप राष्ट्रपति नहीं बनेंगे,वही अच्छा रहेगा.समाचार-वाचक को राष्ट्रपति अविनाश वाचस्पति कहने में कन्फ्यूजन हो सकता था.वह जल्दी में वाचस्पति अविनाश राष्ट्रपति भी बोल सकता था!

    ...आपने यह निर्णय लेकर देश के ऊपर बड़ा उपकार किया है !

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें

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  3. जी शोभा तो लेखकों की आप बढ़ा रही हैं, आभार।

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