पब्लिक खुश है क्‍योंकि ... : जनसंदेश टाइम्‍स 28 जुलाई 2012 'उलटबांसी' स्‍तंभ में प्रकाशित



पीएम मौन हैं। बाकी सब चिल्‍ला रहे हैं। जब सब चिल्‍ला रहे हों तो एक का तो मौन रहना बनता है। जब कोई किसी की नहीं सुन रहा है और जो चिल्‍ल-पों मच रही है, उसकी चमक निहारने वाला भी कोई महत्‍वूर्ण शख्‍स होना चाहिए। वह पीएम के सिवाय और कौन हो सकता है। महामहिम शपथ लेने वाले हैं। पर अभी से यह कहना कि वे बहुत बातूनी है, उनकी प्रवृत्ति के साथ अन्‍याय होगा। हो सकता है कि वे पहले बातूनी रहे हों परंतु राष्‍ट्रपति पद संभालने के साथ ही उनकी बोलती बंद हो जाए। वे भी सबकी चिल्‍ल-पों सिर्फ सुनें ही, खुद चिल्‍लाने का जोखिम न लें। जोखिम मोल लेना इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्‍योंकि वे महामहिम हैं इसलिए उन्‍हें मोल लेने की कोनो जरूरत नाही।
जैसे एक लंबे जमाने से चुप्‍पी साधे पीएम ने अपना मौन तोड़ दिया है और उन्‍होंने महंगाई के लिए मानसून को जिम्‍मेदार ठहरा दिया है। इस बात में आश्‍चर्य की बात यह है कि इस देश में जांच होती है और जांच ही होती रहती है। उसके परिणाम नहीं आते। फिर बिना जांच के मानसून को जिम्‍मेदार ठहराना चल रही नीतियों के अनुसार न्‍यायसंगत नहीं लगता। यह भी हो सकता है कि पब्लिक की चीख-पुकार सुनने के बाद पीएम की बोलती खुल गई हो और वे मानसून को इस कदर डांट बैठे हैं। जबकि आम जिंदगी में पब्लिक को जिससे काम हो उससे पंगा लेना उचित नहीं है। न जाने वह कितना बिफर जाए कि समेटने में न आए और न मनाने से माने ही। वह पीएम की डांट को भी अमान्‍य कर सकता है।
मानसून यह भी सोच सकता है कि जिस पीएम को कभी बोलते न सुना, वह कैसे उसे डांट सकते हैं और उनकी डांट पर इस गलतफहमी के कारण तवज्‍जो ही न दी जाए। बादलों के पास पानी से भरे हुए मटके तैयार हों किंतु इन्‍द्रदेव ‘एक्‍शन’ न कहें और उन मटकों का जल सूर्य के भीषण ताप के कारण भाप बनकर ऐसा उड़े कि पृथ्‍वी पर न आए और पूरा ऊपर के ऊपर ही जल जाए। अब यह जल अगर पानी वाला होता तो खूब बरसता। बरसता नहीं तो रिसता। पर जमीन पर तो एक बूंद तक नहीं टपकी। अगर टपक जाती तो पीएम सोचते कि उनकी डांट के कारण वह टसुए बहा रहा है।
इन्‍द्रदेव अब न मान रहा है और न सुन रहा है। ऐसा लगता है कि वह अब खुद को पीएम समझने लग गया है। पब्लिक सूखे से सूखती रहे लेकिन उसकी आंखों में तनिक सा पानी न दिखाई दे। कहना ही होगा कि जो न माने और न सुने, वही है मानसून। कितनी ही गुहार लगाई जा रही है पर इन्‍द्रदेव न मान रहा है और न सुन रहा है। यह भी हो सकता है कि वह यह सोच रहा हो कि अगर मैं बरसूंगा तब भी पब्लिक सड़कों पर पानी भरने, गड्ढों के गायब होने, नाले और नालियों में पानी ठहरने से वाहनों के नीचे के आधे हिस्‍से के न दिखाई देने के कारण दुखी होगी, इसलिए उसे तरस आ गया हो। अब इस तरस का रस पब्लिक को तो पसंद नहीं है। पीएम ने मानसून की डांट लगाकर बतला दिया है कि उन्‍हें भी यह रस पसंद नहीं है। जब सबको मिलावट ही पसंद है इसलिए मानसून पीएम की डांट रूपी सलाह पर विचार कर रहा है और अब बरसने ही वाला है।
इस बरसात में जो मतवाला होना चाहता है, वह मतवाला हो ले। महंगी सब्‍जी बेचने का मौका पाने वाले भी मना रहे हैं कि बारिश दो चार दिन और न हो तो वे भी अपनी पॉकेटों को माल से फुल कर लें, यह माल चाहे लूट का ही है पर इसे कोई लूट का इसलिए नहीं मानता क्‍योंकि बरसात के न होने वाले बदअसर को हर कोई है स्‍वीकारता। वैसे पब्लिक खुश है कि पीएम ने न बोलने के रिकार्ड को तोड़ा है तो अवश्‍य ही अब वे और कुछ भी बोलेंगे और अब लग रहा है कि पब्लिक ‘उम्‍मीद’ से है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. टिप्‍पणी बक्‍सा आज खुश है क्‍योंकि दो कमेंट इसे तुरंत मिले हैं।

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  2. दो नंबर का गेम आजकल चर्चा में है
    इसलिए रचना जी का कमेंट दूसरा है
    अगली बार वे जरूर बनेंगी नंबर एक
    अन्‍नाबाबा का यह कथन सटीक नेक

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