डेंगू के डंक से तीखा, कॉमनवेल्थ गेम्स की महंगाई का डंक, पब्लिक को मच्छर के डंक के बारे में जानकारी है, वे डेंगू से डरे-सिमटे हैं। जब एम्स के डॉक्टर-पुत्र इससे बच नहीं पा रहे और दम तोड़ रहे हैं तो हम और आप यानि पाठक, संपादक और लेखक, मच्छरों का क्या बिगाड़ लेंगे और क्या बिगाड़ लेंगे महंगाई का, जिसने सदा की तरह अपनी नंगाई से सबको त्रस्त कर रखा है। जिस तरह स्वाइन फ्लू, गेम्स फ्लू पर हावी होता जा रहा है। महसूस कीजिए कि खेलों के कारण किस-किसको, कहां-कहां पर, कैसे कैसे तीखे-मीठे डंक लग रहे हैं, कौन कहां पर फ्लू का पपलू बन गया है। डेंगू का डंक मारने के लिए सिर्फ मच्छर ऑथराइज हैं, फ्लू फैलाने के लिए जानवर। जबकि खेलों के डंक-फ्लू के लिए, न जाने कितने मच्छर-जानवर रूप अदल-बदल कर चारों तरफ मौजूद हैं, पर पब्लिक की क्या मजाल की उनसे बचने में सफल हो सके। टैक्स और देश के विकास के नाम पर जो डंक रोजाना मारे जा रहे हैं, उन्हें पहचानना सरल नहीं है, गेम्स फ्लू को सूंघ-पहचान कर भी इससे बचना संभव नहीं रहा।
कॉमनमैन टैक्स से बचने के लिए महंगाई से जोरा-जोरी कर रहा है, सदा से चोरी कर रहा है। टैक्स रूपी डंक को डंका बजाने से कोई नहीं रोक सकता। इस डंक की लंका को भला कौन जलाएगा ? डंक की यह लंका सोने की नहीं है, पर पब्लिक को सोने नहीं दे रही है। जरा नींद आने को होती है और मालूम होता है कि पेट्रोल के रेट फिर से बढ़ने वाले हैं। सब्जियों के रेट चढ़ने वाले हैं और तो ओर महंगाई तक पहुंचने के सारे गेट खोल दिए गए हैं। यहां वेट भी नहीं की जा रही हे कि गेम्स शुरू होने तक तो इंतजार किया जाता, महंगाई भर रही है सर्राटा और बैंक खाते फर्राटे से भरते जा रहे हैं। जिनके खाते भर रहे हैं, वे रिरिया रहे हैं, मानो कुछ जानते नहीं हैं। डंक का राजा-रंक पर बराबर का असर होता है, यह अब मिथक बन चुका है। राजा बचे रहते हैं, मस्त रहते हैं और प्रजा त्रस्त। डंक गरीब को आहत करता है, अमीर को नहीं। डंक का डंका डंके की चोट पर बज रहा है। अब डंके की चोट पर गेम्स कराए जा रहे हैं। बाद में घपलों-घोटालों की जांच कराकर सब टालमटोल कर दिया जाएगा। डंक आज ड्रंकन किए दे रहा है। गेम्स का नशा इस कदर छाया हुआ है कि सरकार का प्रत्येक कारिंदा और खुद सरकार झूमती नजर आ रही है। जंक फूड आमाशय में जंग लगा रहा है। युवा यही खा-भोग रहे हैं, कितनी ही तरह के डंक रोज दर्द देकर समाज की भयानक दुर्गति कर रहे हैं। पब्लिक बेबस होकर चौकस बीमारियों की जकड़ में आकर कसमसा भी नहीं पा रही है और सब देखने-भोगने के लिए अभिशप्त है।