‘गिर सकती है सरकार’ सुबह अखबार में सुर्खी देखी तो हैरानी नहीं हुई क्योंकि सरकार को तरह-तरह से धक्के दिए जा रहे थे। सरकार ने भी पब्लिक से कम पंगेबाजी नहीं की है। जब पब्लिक ही सरकार के खिलाफ हो जाए, मतलब घर का भेदी लंका ढाए तो पब्लिक सरकार को ढहा सकती है। मैं यहां पर बतला रहा हूं कि सरकार पर पब्लिक के धक्के का असर नहीं होता है, न पब्लिक के धक्के से सरकार गिरा करती है। पब्लिक के धक्के का असर सरकार बनाने वालों पर होता है, जब पब्लिक वोट दे रही होती है उस समय ‘वोट न देकर’ जोरदार धक्का दे सकती है किंतु देती नहीं है और उस समय सरकार के नुमाइंदे वोटर को ललचाने में बाजी मार लेते हैं। ‘पब्लिक के ललचाने और सरकार के बनने में चोली-दामन का साथ है’। सरकार बनने के बाद पब्लिक रूपी दामन का दमन करने लगती है, यह सरकार का होना साबित करता है।
सरकार को महंगाई का भरपूर सहयोग मिल रहा है। महंगाई पब्लिक के लिए अवांछित और सरकार के लिए वांछित हो जाती है। सरकार पैट्रोल के दाम बढ़ा रही है, बादाम खा रही है। पब्लिक को मिलने वाले सिलैंडरों की सीमा घोषित कर दी गई है कि साल में 6 सिलैंडर से अधिक लोगे तो सातवां सिलैंडर खाली मिलेगा। भरा चाहिए तो अतिरिक्त सिलैंडर सात सौ रुपये प्रति सिलैंडर से महंगा मिलेगा। पब्लिक पर दमन का ऐसा असर होता है कि बेमन से पब्लिक इसे मान लेती है। पब्लिक के पास और कोई विकल्प नहीं है।
सरकार मुगालते में है कि पब्लिक सब्सिडी न मिलने से भी खुश है और महंगाई के बढ़ने से भी। अब सरकार चीनी के रेट बढ़ा देती है। त्यौहार सिर पर हैं इसलिए पब्लिक का जायका बिगड़ जाता है, वह कड़वा-कड़वा चिल्लाती है। सरकार तुरंत अखबारों में छपवा देती है कि चीनी पब्लिक के लिए मधुमेह रोग का सबब बन रही है, इसलिए इसके रेट पब्लिकहित में बढ़ाए गए हैं। अब पब्लिक को ‘कड़वी चीनी’ भी भाने लगती है। पब्लिक संतुष्ट हो गई है। सरकार के गिरने की सभी संभावनाएं धूमिल पड़ने लगी हैं।
इस प्रकार सरकार एक-एक करके सभी वस्तुओं के दाम बढ़ाती है। सब्जियों के, दालों के, सूखे मेवों के, कपड़ों के, जूतों के, आटे के, और सरकार गिरने के घाटे से उबर जाती है, समझिए महंगाई उसे मजबूती देती है। सरकार इतनी टिकाऊ हो गई है कि धक्का मारने से भी नहीं गिरती। वह जानती है कि साजिशें रची जा रही हैं। सरकार के पैर हैं कि नहीं है, हैं भी तो कितने हैं, रहस्य गहरा रहा है इसलिए नहीं गिरती है सरकार।
सरकार वाले सरकार को गिरने से बचाने की जुगत में जुटे हैं और गिराने वाले षडयंत्रों में मशगूल हैं। पक्ष और विपक्ष वाले सब बिजी हैं। सरकार अब पब्लिक के सर पर सवार हो गई है। सर के साथ कार जुड़ा है तो चार पहिए और एक स्टैपनी भी होगी, ट्यूबलेस टायर होंगे, जरूरी नहीं है। सरकार पुतला भी नहीं है कि फूंक मारने से फुंक जाएगी। सरकार गिर सकती है, झुक सकती है। एक तरफ भी गिर सकती है, दूसरी दिशा में भी गिर सकती है, किंतु न तो झुकती है और न ही मुंह के बल गिरती है सरकार। सरकार गिरेगी तो इसके नीचे बहुत से कुर्सीदार दब-कुचल जाएंगे। सरकार का गिरना, किसी भी तरह सरकार का मरना नहीं है। जख्मी सरकार अपने घावों को लेकर चिंतित नहीं है वह तो पब्लिक के घावों में अपना सुख पा रही है।
हट जाओ सरकार के आसपास से, खुदा न खास्ता गिर गई तो पब्लिक जरूर कुचली जाएगी। सरकार दमदार है। फिर वह कमजोरों और कम लोगों से क्यों डरती है, यह यक्ष प्रश्न है। जरा-सी आहट हो या हो हड़कंप – सरकार डगमगा जाती है। सरकार को लगती है गर्मी। गर्मी में भी सर्दी लगती है, कंपन होता है और होता है सर्दी में गर्मी का उमस भरा अहसास। सरकार भीग-भीग जाती है। पसीना चू रहा है सरकार के शरीर से। जबकि निराकार है सरकार। सरकार को साकार होना भी नहीं चाहिए। सरकार अगर साकार हो गई तो सबको मालूम चल जाएगा कि सरकार को वायरल बुखार है।
सरकार बुखार का सबब बनती है, सरकार कक्षा का सबक बनती है। विपक्ष वाले जो बकबक करते हैं, उनकी भी बनती है। सरकार से करो प्यार, इसी से होना है पब्लिक का बेड़ा पार। खोल लो मन के बंद किवाड़। उन्नति के द्वार पहले ही ओपन हैं। सरकार खुश है, पब्लिक खुश है। जनता सन्न और सरकार प्रसन्न।