##deepawali
पुराने
मतलबों को छोड़ो
मतलब मायनों
को मोड़ो
नए अर्थों
की ओर अर्थ मतलब धन जिसके पास नहीं वही निर्धन
निर्धन की
नहीं है
दीपा+वाली।
धन वालों की
है दीपा भरा है जिनके घर पर विशुद्ध देसी घी का पीपा
पीपनी वही
बजाते हैं आतिशबाजी से उनकी आती है मधुर झंकार पीपनी की मनुहार।
अब अर्थ को
हड़पें
7
गज से अधिक
नहीं
किसी को
चाहिए
पर 7 हजार करोड़ गज
पाने की
मनमानी
जिसे कहते
हैं लालच
लालची मन का
किस्सा
सबके माल
में हो हिस्सा
हिस्सा पक्का
होना चाहिए
कच्चा हिस्सा
नहीं चाहिए।
अर्थ चाहे
धन हो या भूमि
सभी की चाहत
है,
जबकि
कहते हैं सब
धन धूरि समान
धूल की सबको
आस
प्यास, इसी से होए प्रकाश
उजाला, जाला में फंसता
सबका मन
मतवाला
फेसबुक का
जुकरबर्ग भी
पूछता है
सबसे हर बार
मन मे क्या
है ?
मन न हो
किसी का
भला ऐसा
होता है
मन का मैल
नहीं मैला
होता है
उधो कह गए
मन न हुए दस
बीस
अब तो सबके
पास है
सोशल मीडिया
के रूप में
तीस से पचास
और इसी
तेजी से
बढ़ते रहे
मन सोशल
मीडिया की
सीढि़यां
चढ़ते रहे
पगडंडियों
पर बढ़ते रहे
तो हजारों
होंगे मन
करोड़ों की
ओर बढ़ते हुए
ऐसे सोशल
मीडिया के मन को बारंबार नमन
नए नए स्टेटस
लगाएंगे
मन की
गुणवत्ता महकाएंगे।
जिसे देखो
मिलता है कहता है नेटवर्किंग के धंधे में अंधा होकर पिला पड़ा है पर जेब में नहीं एक दशहरी आम पिलपिला रखा है
पॉकेट खाली
है फिर भी दुनिया
नेटवर्किंग
की मतवाली है। रहस्य एक मैंने खोला है
दूसरा भी
जल्दी खोलूगा
दस का नोट न
सही मेरे पास पर हुनर है मेरे पास
हुनर से नर
बना हूं
जल्दी ही
करोड़ों में खेलूूंगा
अकेला नहीं सबको खिलाऊंगा
मुंह में
नहीं
सबके पॉकेट
भर कर
तमन्नाओं
को करूंगा
धन से
सराबोर
पर लगन और
मेहनत
ईमानदारी और
जनहित
सबसे
चाहूंगा
यही मेरी
इच्छा है
इसी के लिए
जिंदा हूं
नहीं तो मैं
अविनाश वाचस्पति
कब का मर
गया होता।
एक बार तो
बीए के तीसरे साल में
कुंए में
गिरा,
कुंअां कम
गहरा था पर उसमें मोटर लगी भारी थी
उसने भी
कोशिश की पर
एक कान ही
काट पाया
बाकी शरीर
पर लगा आघात बेहोश में हो गया
जब आया होश
में तो दर्द से शरीर भरपूर था तब से दर्द से डर नहीं लगा
इस सच्चाई
को जानकर यमराज भी अपने
भैंसे को
लेकर उल्टा भगा तब से कई बार आया है पर हर बार उल्टा भागा है
यही मेरे
जीवन का राज है।
हेपिटाइटिस
सी और मधुमेह
मेरा कुछ
नहीं बिगाड़ पाया है बस कुछ
मित्रों और स्वजनों की खुल गई है
पोल पोल में निकले अनेक होल उन पोलोें को नेक बनाने जुटा हूं।
अभी तो अनेक
(जो अच्छे न हों) अवसर आने हैं जीवन में
उन्हें नेक
बनाना है अनेक रूपी बुराईयों को अच्छाईयों के वार से मिटाना है
ईमानदारी और
संतोष का झण्डा खरे शिखर पर फहराना है।
एक बार में
सब नहीं लिखूंगा
रोज जब
पाऊंगा अपनी
मन:स्थिति
अनुकूल लिखूंगा
नहीं तो बन
जाएगा खंड काव्य जबकि मैं लिखना चाहता हूं अखंड काव्य
जो खंड खंड
में विखंडित हैं उन्हें अखंड बनाना है कहा भी गया है सरदार सबसे असरदार और सरकार सबसे असरदार पर नेता
लालचियों के मन में पैठ गई है उनके पास दूजा मन नहीं है इसलिए नेता तेरा मन मैला हो गया है भरा हुआ दुर्गंधयुक्त
थैला विषैला
हो गया भर गया है वायरस इस कड़वे रस को निकालने का सबका जिम्मा है क्या तो मुन्ना और
क्या मुन्ने
की अम्मा है ?
-
अविनाश
वाचस्पति,
साहित्यकार
सदन,195,पहली मंजिल, सन्त नगर, ईस्ट ऑफ कैलाश, नई दिल्ली
110065 मोबाइल 08750321868/09560981946 e
mail : nukkadh@gmail.com
कल दोबारा से लगाऊंगा इस स्टेटस रूपी कविता को। आप इसे अभी पढ़ना चाहें तो फेसबुक या अन्य किसी सोशल मीडिया के लिंक पर पढ़ सकते हैं। फेसबुक का लिंक है https://www.facebook.com/avinashvachaspati
जवाब देंहटाएंbahuti achcha
जवाब देंहटाएंwhat is google adsense in hindi