पीएम ने अंततः मुंह खोल ही लिया। वैसे भी इतने दिन तक मुंह बंद रखने से उनके मुख मंडल पर थकान हावी हो गई थी और वे पस्त दिखाई दे रहे थे। अपनी पस्तता को चुस्तता में बदलने के लिए मुंह खोलना अनिवार्य हो गया था। मुंह खोल तो लिया किंतु वे किसी से भी पंगा नहीं लेना चाहते थे क्योंकि वे कुर्सी पर जमे रहने की अपने मन में छिपी आकांक्षा को निराश नहीं करना चाह रहे थे क्योंकि मन और आकांक्षाएं दोनों उन्हीं की हैं।
उन्होंने बतलाया कि भ्रष्टाचार की छवि बनाने में बहुत मेहनत की गई है। मैं भी अपनी छवि बिगड़ने के डर से मुंह नहीं खोलता हूं, मुंह खोलने पर दांत दिखलाई देने का खतरा रहता है, जीभ साफ न हो तो वह लपलपाती नजर आती है, फिर मुंह खोलने से किस्म–किस्म की भीतरी दुर्गंध भी बाहर आने लगती हैं। इसलिए स्वास्थ्य सुरक्षा के लिहाज से मुंह खोलने में सदैव रिस्क रहता है। यह वह रहस्य है जो पब्लिक के स्वास्थ्य के लिए भी हितकर नहीं है, इससे मेरी अपनी इमेज की मेज भी लड़खड़ाने लगती है।
अब लाचार होकर मुझे जोखिम लेना पड़ा क्योंकि भ्रष्टाचार की छवि बिगाड़ने की कोशिश में बिगाडू किस्म के तत्व सक्रिय हो चुके हैं। जबकि हमने अपने अरमानों की बलि देकर ‘भ्रष्टाचार बाबा’ का ब्यूटीफुल मेकअप करवाया है। हम दोबारा से पब्लिक का इतना पैसा इस कार्य में झोंक नहीं सकते। मैं यह भी जानता हूं कि जो पहले से ही बिगड़ा हुआ हो, उसकी छवि कैसे बिगड़ सकती है। जबकि गांधी जी ने जब कहा था कि ‘जो सचमुच सो रहा है उसे तो जगाया जा सकता है किंतु जो सोने का स्वांग रच रहा है, उसे नहीं जगाया जा सकता।‘ अब वही स्थिति ‘भ्रष्टाचार बाबा’ के मामले में है, वे अनुभवी और बुजुर्गों में शुमार किए जाने के काबिल हो गए हैं, उनको सम्मान देना तो दीगर, उनकी खिल्ली उड़ाने में सबको खुशी मिल रही है।
मैं गांधी जी के वचनों की उपयोगिता समझकर उस पर अमल करता हूं और उन्हीं पर कायम हूं। फिर भी ऐसे मामलों में रिस्क नहीं लिया जा सकता क्योंकि यही जोखिम बाद में कुर्सी के लिए दीमक बनकर उसे चट कर सकता है, तब मैं सत्ता में न रहने के कारण खुद को असहाय पाऊंगा। कुर्सी से बेइंतहा मोहब्बत की खातिर हमें ऐसा आचरण करना पड़ता है कि पब्लिक को लगे कि हम गूंगे और बहरे हैं । विकृतियां कब श्रेष्ठतम कृतियों के मानिंद हो जाती हैं यह मुझसे अधिक कौन जानेगा ?
भ्रष्टाचार सरकार के लिए बहुत उपादेय है, वैसे गहरा चिंतन करके यह जाना जा सकता है कि सबके लिए यही सबसे मुफीद है। करने में और रोकने में सबको यही पसंद आता है इसलिए सबसे अधिक विरोध भी इसी का किया जाता है। यह दुधारी कटार है, इसमें यह सुभीता रहता है कि जिस ओर से या छोर से कटाई कर लो, फसल पौष्टिक ही होगी। कितने ही घोटाले-घपले हमने पूरी शिद्दत से किए हैं, उनमें चुप रहकर सहयोग दिया है। जिससे भ्रष्टाचार देव रोम रोम में बस गए हैं। हमें ऐसा करने में सामूहिक और निजी सफलताएं मिलीं हैं। इन उपलब्धियों से हमारा हौसला बढ़ा है। यह हमारा ही उधम मचाने का स्वभाव रहा कि हमें खूब लाभ ही लाभ हुए। भ्रष्टाचार के कारण ही सबने हमारा विरोध करना छोड़कर भ्रष्टाचार का विरोध करना शुरू कर दिया, जिसका लाभ उठाकर हम भ्रष्टाचार के उन्नयन में जुटे रहे। हमारी यह सफलता काफी उल्लेखनीय रही है। अब अगर भ्रष्टाचार पर मारक वार किए जाएंगे तो हमारा डिस्टर्ब होना स्वाभाविक है।
हम चाहें कुछ भी हैं किंतु जो हमारे ऊपर अहसान करते हैं, उनसे अहसान फरामोश करने वाले हम कतई नहीं हैं, भला यह कोई अच्छी बात है कि किसी बच्चे के विकास में मदद करना तो दूर, आप उसके खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए नीतियां बना लें। बच्चे के विकास के लिए सदैव सबको तत्पर रहना चाहिए। माना कि भ्रष्टाचार सृष्टि के आदि से इंसान के साथ है, किंतु वह अभी भी बच्चा है, बच्चा ही रहेगा क्योंकि इसमें काफी व्यापक संभावनाएं खोजी जाती रहेंगी। उम्र के लिहाज से वह भ्रष्टाचार बाबा की पुकार का हकदार बनता है और बाबा बच्चे और बुजुर्गों के लिए समान रूप से प्रयोग किया जाता है, यह टू इन वन संबोधन है। लोकपाल को कानून बनाने की हमारी नीयत ही नहीं थी, परंतु भ्रष्टाचार बाबा के समर्थन के लिए हमें कानून बनाने से कोई नहीं रोक सकता और कोई रोकेगा भी तो क्या हम रुक जाएंगे, बिल्कुल नहीं रुकेंगे, यह पब्लिक को भी जान लेना चाहिए।
हम ऐसा कानून बनाने में जुट गए हैं, जिसमें भ्रष्टाचार की छवि बिगाड़ने वालों के लिए सजा व जुर्माने के कड़े प्रावधान होंगे और उन्हें पूरी सख्ती के साथ अमल में लाया जाएगा। न कि सिगरेट पर पाबंदी लगा दी, गुटखा और पॉलीथीन पर रोक लगा दी, किंतु कोई नहीं रुका क्योंकि हमारी नीयत ही गंदी है। अब हम ‘भ्रष्टाचार बाबा’ की खिलाफत बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे क्योंकि हम जानते हैं कि इसके उपयोगकर्ता खुलकर मैदान में आ गए हैं और कानूनों का मजाक उड़ाने लगे हैं। पर मैं बतला रहा हूं कि भ्रष्टाचार की खुली खिलाफत बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी, इसे सिगरेट, गुटखा या पालीथीन मत समझ लीजिएगा।
सब जानते हैं कि हमारे देश को विदेशों में सुर्खियों में लाने में भ्रष्टाचार का एक अहम् रोल है। अब इसे मिटाने अथवा भगाने की बुरी नीयत से कोई गोल समझकर अचीव करना चाहेगा तो हम उसे क्यों करने देंगे। यह हमारी साख का सवाल है। हमारी इन कोशिशों पर टांग उठाकर ......... न .. न ... मुझे ऐसा बोलने की आदत नहीं है, मैं तो इशारा भी नहीं करता किंतु मजबूत हूं इसलिए अपनी ताकत का संकेत दे रहा हूं । सच को कहने से आखिर कब तक रोका जाएगा और मैं और मेरी सरकार रोकने वालों को अपने आखरी दम तक रोकेगी।
किसी भी देश में देशवासी अपने देश की छवि नहीं बिगाड़ते हैं अपितु उसको संवारने के समस्त उपाय करते हैं। मैं भी कर रहा हूं तो इसमें बुरा क्या है, आखिर अपनी जिम्मेदारी को मैं नहीं समझूंगा तो और कौन समझेगा या समझाएगा। आप यह मत समझने लगिएगा कि मुझे ऐसा कहने के ऊपर से आदेश मिले हैं। अब इतनी समझ तो मुझमें भी है। आखिर, मैं पीएम होने के साथ साथ एक माहिर अर्थशास्त्री भी हूं और भ्रष्टाचार की इतनी जानकारी हासिल कर ली है कि इसमें पारंगत हो गया हूं। पर आप इस रंगत की संगत में मत आइएगा, इसका संग साथ सरकार व इसके कारिंदों के लिए ही हितकर है। पब्लिक ऐसी कोशिश करेगी तो उसे मसलकर ऐसी-तैसी कर कर दी जाएगी। भला पब्लिक का क्या हक बनता है कि ताकतवर हृष्ट-पुष्ट भ्रष्टाचार का चौखटा गंदा करने का उपक्रम करते फिरें।
मेरा यह भी मानना है कि कभी किसी को किसी का चेहरा नहीं बिगाड़ना चाहिए। यह कार्य भगवान का है, भगवान के काम में दखल किसी को नहीं देना है। रावण का चेहरा आज तक किसी ने बिगाड़ने की कोशिश नहीं की है, उसे चाहे सब फूंकते हैं पर चेहरा तो ब्यूटीफुल बनाते हैं। यह फूंक ही रावण के लिए ऑक्सीजन साबित हुई है। भ्रष्टाचार को भी आप ऐसी ही ऑक्सीजनात्मक फूंकें मार सकते हैं, हमें कतई एतराज नहीं होगा। आप रावण को तो फूंक मार रहे हैं किंतु ‘भ्रष्टाचार बाबा’ के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं, इससे ही पब्लिक की दोहरी मानसिकता का पता चलता है ?