धमकाने की कानूनी मान्‍यता : दैनिक जनवाणी 23 अक्‍टूबर 2012 स्‍तंभ 'तीखी नजर' में प्रकाशित


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निहायत ही शरीफ कानून मंत्री का सड़कछाप आम आदमी को धमकाना जायज ठहरता है क्‍योंकि इस समय वे अपने पूरे रुआब और शबाब पर हैं, वैसे भी आम आदमी की मजाल कैसे हुई कि उसने अपनी सड़क की करतूतों को अखबार की खबरों और चैनल की फिल्‍मों में जारी करवाने की हिमाकत की। ऐसे में कोई भी ऐरा-गैरा अगर उनको आईना दिखाता है तो वे आईन को ताक पर रखने में तनिक भी गुरेज़ नहीं करेंगे। माननीय मंत्री ने इसी दिन के लिए कई साल पढाई की थी क्‍या, कि कोई भी आकर उन्‍हें पढ़ा जाए। दमदार हैसियत के मालिक होकर न धमकाना और अपने तर्क पेश करनातभी पॉसीबल होता है जब सामने रुतबे के बराबर योग्‍य व्‍यक्तित्‍व हो।
पोल खोल कर अपने व्‍यक्तित्‍व का निर्माण इस संसार में कोई चिरकुट किस्‍म का जासूस भी कर सकता है। अब जो उनकी पोल खोलना चाह रहा है या उन्‍हें धमका रहा हैवह सिर्फ विकलांगों का शेर बनकर सामने आया हैउससे मुकाबले के लिए उनकी फौज (पुलिस) ही काफी है। वैसे उनके पास पुलिस से इतर खतरनाक टाइप के बन्‍दे भी बहुतायत में हैं परन्‍तु वे धमकाने में नहीं,खुला फर्रुखाबादी खेल खेलने या ऐसे दुष्‍टों को निपटाने में ही यकीन रखते हैं। इस प्रकार धमकाना वे स्‍वयंहित में नहीं कर रहे हैं बल्कि ऐसा कदम उन्‍होंने देशहित में उठाया है। अब क्‍योंकि वे हर प्रकार से समर्थ हैं और कानूनों का भरपूर ज्ञान ही नहीं रखते बल्कि उन्‍हें परिस्थिति के अनुरूप ढालने की योग्‍यता भी रखते हैं। ऐसा करके उन्‍होंने धमकाने को कानूनी मान्‍यता प्रदान कर दी है।
फिर तुलसी बाबा इसी दिन के लिए कह गए हैं कि ‘समरथ को नहीं दोष गुंसाईं। वे देशहित में आपको अरुचिकर रखने वाले कतिपय कदम उठा रहे हैं तो इसके लिए दोषी आप और उन्‍हें ऐसा करने के लिए मजबूर करने वाले ही हुए। उनके साथ सभी वोटरों की शक्ति है जिन्‍होंने वोट नहीं दिया था उनकी भीक्‍योंकि ऐसे फैसलों में नेगेटिव मार्किंग का नियम लागू होता है। हारने वाला हार चुका है इसलिए सभी वोट कानून के अनुसार जीतने वाले के वोटों में ही जुड़े क्‍योंकि हारने वाले को अलग से हारत्‍व की शक्तियां नहीं मिलतीं।
जो लोग मंत्री के इस कारनामे को सीनाजोरी की संज्ञा दे रहे हैंउनसे कानून मंत्री इसलिए इत्‍तेफाक रखते हैं क्‍योंकि जिसके पास सीना होगावही तो सीनाजोरी करेगा। कितनी ही हसीन महिलाएं विशाल सीने की स्‍वामिनी होते हुए भी न तो जोर जबरदस्‍ती करती हैं और न करवाती हैं। जिसको सीना नहीं आतावह क्‍या खाक तो शब्‍दों की सिलाई-बुनाई करेगा और क्‍या किसी का पसीना निकालेगा। मैं आपका ध्‍यान उस ओर भी दिलाना चाहूंगा जिसमें मंत्री ने आरोपी को ‘गटर का कीड़ा’ कहा है। अब गटर के कीड़ों को वही तो पहचानेगाजिसने अपनी पूरी उम्र गटर में रहकर गुजारी हो और अब भी गटर पर उसका आशियाना हो, अब कोई उन्‍हें ‘गटर कीड़ा विशेषज्ञ’ नहीं मान रहा है तो इसमें भी दोष उन कीड़ों का ही है।  मिल्कियत का यह दंभ गटर में रहकर ही आता है और इसे हम संसद कहते हैं। जिसके भीतर से बाहर वाले गटरवासी ही दिखते हैं।
जीवन मूल्‍यों का इस तेजी से पतन हुआ है कि कुटिया या गरीबखाने की संज्ञा चलन में नहीं है। ताजा हालात के मुतल्लिक दोष सिर्फ एक मंत्री का ही नहीं है अपितु उन सभी मंत्रियों का सामूहिक तौर पर बनता है जो मंत्रियों के मुखिया के तौर पर फेमस हैं और सदैव एक के ही गुणगान करते मिलते हैं। वैसे मेरी समझ में यह भी नहीं आ रहा है किलौटना मुश्किल’ को धमकीस्‍वरूप क्‍यों लिया जा रहा हैआप बात पूरी होने से पहले ही चिंघाड़ने लगे हैं। लौटना इसलिए मुश्किल है क्‍योंकि फर्रुखाबाद में उस दिन इस मसले पर परिवहन की हड़ताल हो सकती है। अंत मेंकानून मंत्री का यह मानना कि सारी दुनिया में सबकी खिल्‍ली उड़ रही है तो सोचा कि हम भी थोड़ी सी खिल्‍ली उड़वा कर लोकप्रियता के नए पायदानों पर काबिज हो जाएंभी नाजायज नहीं ठहरता है।

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