राजनीति में दामादगिरी जोरों की कयामत ढा रही है जिसकी वजह से केला और आम चर्चित हो गए हैं। वैसे आम उत्सव के मौके पर आम की कई किस्मों के दाम बादाम को भी मात कर देते हैं आंधियों के कारण आम का असमय गिरना भी उसके दामों में इजाफे के लिए दोषी होता है। केले कभी आंधियों से नहीं गिरते, केलों को तहस-नहस करने का श्रेय सदा से हाथियों और बंदरों के नाम रहा है। हाथी और बंदर का स्वभाव नेताओं में नहीं पाया जाता, वे सदा आम चूसना ही पसंद करते हैं और कॉमनमैन को आम की तरह चटकारे लेकर चूसते ही पाए जाते हैं।
पब्लिक को केला बनाना जितना आसान है उतना ही आम को चूसना। पब्लिक को केला बनाकर छिलका छीलकर कहीं भी फेंक दो और केले की लचीली गिरी उदरस्थ कर लो,पब्लिक फिसल जाएगी, फिर खूब हंस लो, ठहाके लगा लो और लाफ्टर चैलेंज के शो में बढ़त बना लो। केले के छिलके पर पब्लिक फिसले, तुरत जुर्माना लगा दो। पब्लिक वह आम है जो सदा चूसी जाती है, पब्लिक केले के छिलके पर फिसलती है और नेता पब्लिक पर। फिसलता भी है और पब्लिक को घसीटता भी है। यही युगीन सत्य है। आम का पापड़, पापड़ होते हुए भी उसके अवगुणों से मुक्त रहता है। आम का पापड़ खाते हुए कड़ तड़ पड़ की आवाज नहीं करता, यह चबाए जाने पर भी मौन रहता है। इस पापड़ को युगों युगों से चटकारे लेकर चाटा जाता रहा है और चाटा ही जाता रहेगा। यह आम की खासियत है, ऐसा समझ रहे हैं तो आप मुगालते में हैं क्योंकि आम का मुरब्बा भी बनता है, जैसे नेता पब्लिक का स्वादिष्ट मुरब्बा बनाती है। पब्लिक को जानवर (गधा) या पक्षी (उल्लू) भी बनाया जाता है।
वो मुरब्बा ही क्या जिसके खाने पर अब्बा की याद नहीं आई और अब्बा की याद के पीछे अम्मा न दौड़ी चली आई। देश की पब्लिक केले के छिलके पर रोजाना फिसल रही है। उस पर तुर्रा यह कि नियम बना दिया गया है कि केले के छिलके पर फिसलने पर चालान जरूर होगा। आम चूसने पर दामादगिरी का मसला होने पर भी चर्चा नहीं होती। आम फल पर सामान्यत:, न बंदर और न हाथी की नीयत डोलती है। हाथी और बंदर गन्ना और केला देखकर डोलते हैं और मन के रंजन के लिए केले के बागों को उजाड़ते भी रहते हैं। जबकि लोकतंत्र में हाथी आम पर ललचायी नजरें गड़ाए रखते हैं।
हाथी का मोह गन्ने से भंग हो चुका है। बंदर गन्ना नहीं खाता है। बंदर गन्ना हाथ में लेकर डांस कर सकता है, हाथी के बस का यह नहीं है। हाथी को सांकल डालकर बंदर के माफिक डांस नहीं कराया जा सकता। जरूरत भी नहीं है क्योंकि पब्लिक भिन्न-भिन्न प्रकार के डांस करने में मशगूल रहती है।
हाथी को नचाना पब्लिक और नेता के बस का नहीं है इसलिए वे खतरा सामने देखकर हाथी को ढककर काम चलाते हैं। हाथी को अक्ल से बड़ा मान लिया गया है, भैंस इस मामले में पिछड़ गई है। इसी से देश के चहुंमुखी विकास की जानकारी मिलती है। जिनके हाथ नहीं होते, उनके हाथी होते हैं और जिनके हाथ होते हैं, उनके ही हाथों में हथियार होते हैं, वे महावत को भी बांधकर रखते हैं, अब समझ रहे हैं आप कि देश का महावत क्यों मौन है ?
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