मैया मेरी मैं भी ओलंपिक जाऊंगा : जनवाणी 24 जुलाई 2012 तीखी नजर स्‍तंभ में प्रकाशित


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भारत मेरी माता है, आज मालूम हुआ है कि ओलंपिक इवेंट में लंदन जाने के लिए क्‍या-क्‍या योग्‍यताएं होनी चाहिएं। लंदन ओलंपिक पदकों का पिंक सिटी है। पदकों का गुलाबी शहर, स्‍वर्ण से  बनाए जाते हैं पदक, स्‍वर्ण है प्रति पदक चार सौ ग्राम। आप दनदनाते हुए लंदन पहुंचिए। जैसे फूलों के बगीचे में कांटे घुसने को हरदम तैयार। कांटों की झाड़ी कलमाडी, टिकट बनवा लीकटवाने वाले तैयार। कांटे चुभो रहे हैं। वे चिल्‍ला तो रहे हैं लेकिन कदम पीछे नहीं हटा रहे हैं। माकन सुनकर ऐसा लगता है जैसे जिक्र हो रहा हो मकान का। मकान है तो कमरे भी होंगे। किचन और टॉयलेट भी होंगे। भुतहा रास्‍ते भी हैं। पर यह तो तय है कि अगर टॉयलेट के लिए पदक मिले तो भारत को ही मिेलेंगे। इसलिए कलमाडी की कुल्‍हाड़ी सक्रिय है, धार पैनी है। माकन समझ नहीं पा रहे हैं तेज धार से किसे काटेंगे। लंदन, लंदन है भारत मैया नहीं है कि कपूत को सपूत समझ घपले-घोटालों में माफी मिल जाए।
ध्‍यान से बढ़ना कलमाडीयही बाजू वाली है झाड़ी। जहां चल रही है ओलंपिक की मुनादी। बहुत अधिक आगे बढ़ जाओगे तो जब तक वापिस आओगेतब न पदक और न पदक देने और लेने वालों को ढूंढ पाओगे। वहां राज तुम्‍हारा नहीं है। वैसे भी तुम खतरों के खिलाड़ी नहींन खेलों के खिलाड़ी होतुम निरे घपलों से उपले बनाते हो। गोबर ही सानते होउसे ही घोटाला मानते हो। सनसनी बन जाते होफिर सनसनाते हो। ओलंपिक खेलों की तरफ भी जीभ लपलपा रहे होलार टपका रहे हो। यह जान लो कि लपलपाने से लार अधिक बहती है। इससे सब जान जाते हैं कि हजूर खेलने के नहींखाने के शौकीन है। पदक पाने के लिए लार नहीं टपकानी पड़ती। यूं तो लार में पचाने के गुण मौजूद रहते हैं। गुण कण होते हैं और कण में भगवान वास करते हैं। लार को पौष्टिक बनाने के लिए पौष्टिक लार को पेट में बतौर पाचन रस फेंका जाता है। कभी परिणाम सकारात्‍मक आते हैं और कभी डकारें आना बंद नहीं होतीं, इन्‍हें खट्टारात्‍मक परिणाम माना जा सकता है।
पदकों की पोल जान लोउन्‍हें अच्‍छे से पहचान लो। पदक मिलें तो ठीकन मिलें तो भी ठीक। यही पदकों की पोल का खुलासा है। खिलाडि़यों के ओलंपिक में जाने की भारी अभिलाषा है। जीते तो पदक हमारेहारे तो फूलों के हार हमारे। किंतु हार पब्लिक के पैसे की। जिसके बल पर गएओलंपिक की भूमि पर धमाल मचायाखूब माल गंवाया। फिर भी मज़ा खूब आया। इसी मजे को पाने के लिए हसरत है कि एक बार फिर लंदन हो आएं।

सबके अपने-अपने तर्क हैं, इधर व्‍यंग्‍यकार भी सतर्क है। वह भी जाना चाहता हैआप पदक पाने या हारने जा रहे हैं। कोई झंडा फहराने जा रहा है। अब झंडा फहराने को देखने के लिए भी तो कोई चाहिएवह कोई व्‍यंग्‍यकार क्‍यों नहीं हो सकता है। बाकी सब तो अपने-अपने जरूरी कामोंजुगाड़बाजी में रत् रहेंगे। एक मैं ही होऊंगा जो सिर्फ झंडा फरफराहट समारोह को देखकर ही सब्र कर लूंगा।
बिना पलक झपकाए लपके जाओ फिर भी लपकने की चाहत कम न हो। लपकन ग्रंथि फ्री हो जाएकोई रुकावट नहींकोई थकावट नहीं और बनावट का तो नामोनिशां ही नहीं। लपकने की चाहत लार का अनवरत सोता ओपन करती है। सब रोते रहते हैं परंतु लार टपकती ही रहती है। ओलंपिक में कोई ध्‍वजावाहक बन कर शामिल हो जाता है। मैंने ऊपर बिल्‍कुल सच बतलाया है मेरी तमन्‍ना है कि और कुछ न सहीएक बार ध्‍वजाविलोकक’ बनने का मौका मिल जाए और ओलंपिक खेलों में घूम आऊं मैं।
सुन रहे हो न कलमाडीसुन रहे हो माकन। कर दो दोनों जन मिल मेरे जाने का सत्‍यापन। इसे ही साबित कर दूंगा मैं सच्‍चापन। एक बार जरूर जीवंत ध्‍वजा अपनी आंखों से विलोक कर भारत का नाम ऊंचा करूंगा। अपनी आंखों की मिसाल कायम करूंगा। किसी-न-किसी वर्ल्‍ड रिकार्ड में दर्ज हो जाऊंगा। ओलंपिक के मर्ज से बाहर आऊंगा। जो वहीं जमे रहने का फर्ज निभाते हैंवे खेल के मुरीद नहींमरीज हो जाते हैं। ओलंपिक जैसे समारोहों में शामिल होने से देश पर कर्ज चढ़ता है। इसी कर्ज के कारण रुपया डॉलर का मुकाबला करते हुए धड़-धड़-धड़ाम गिरता है और हर बार पब्लिक का सिर फूटता है। किसी का विरोध मत करोओलंपिक में जाने का जिसको मौका मिले बढ़े चलोबढ़े चलो। मुझे दिखलाओ और चाहो तो अपने भाईयोंबहनोंफेसबुक मित्रो को भी ओलपिंक का झंडा फहरते हुए देखने का आलौकिक अवसर प्रदान करो। प्रदान का दान भी मंजूर है मुझको। पासपोर्ट है तो चलो मेरे साथ लंदन खिसको, वहां मिल करेंगे सब डिस्‍को।

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