निर्मल बाबा, निर्मल है, मैल बाबा नहीं है, घोटाला नहीं है। मैल मिटाने वाला, दुख दर्द हटाने वाला बाबा है। बाबा वही जो बेटे पोतों के मन भाए। अपने साथ सबके मन को हर्षाए। इसमें भी कोई दुख पाए तो पाए, सुख से सूख जाए तो बूंद भर में ही डूब जाए। जनता को सब कुछ सरकार ही दिखता है। जबकि सरकार नाम की है, बेअसर है। बाबा हमारा तो सरकार है। सरकार है लेकिन उनकी नितांत अपनी सरकार है। वहां वोटिंग नहीं होती, इसलिए वोटिंग संबंधी बुराईयां उसमें नहीं हैं। बाबा की सरकार बे-असर सरकार नहीं है, असरदार सरकार है। बाबा सरदार भी है। असरदार भी है। सरदार का असरदार होना, इतना आसान नहीं है। सरकार में नहीं होता है ऐसा, लेकिन बाबा की सल्तनत में हो रहा है। भक्तगण खुश हैं। सुखी हैं लेकिन भक्तों और बाबा की सुख समृद्धि देख सूखने वाले चाहे कितने बढ़ जाएं परंतु वे दुख से सूखने वालों की तुलना में बहुत अधिक हैं। धन का सही उपयोग हो रहा है। धन से कैसी माया, अगर उससे सुख ही नहीं पाया, मोदक खाकर मोद नहीं मनाया। बाबा के मनोबल का ही प्रताप उनका धनोबल है।
एडंवास जमा करके, एडवांस बुकिंग का नियम है। नियम पक्का है उसमें कोई कोताही नहीं। कोताही सरकार में होती है। सरकार में भी घोटालों में कोताही का नियम नहीं है। एक बड़े घोटाले के बाद, दूसरा उससे बड़ा घोटाला सरकार के नुमाइंदों द्वारा खूब आसानी से घोल दिया जाता है। यह घुलना तेल में पानी के घुलने को भी संभव बना देता है। इन घोटालों के चलते कितने ही चमत्कार हुए हैं। परंतु निर्मल बाबा वाला चमत्कार इन ऑरीजनल है। ऐसा बेसिक घोटाला मतलब अद्भुत मनभावन चमत्कार जनता के साथ पहले होता रहा है परंतु इतनी धुरंधरता में नहीं हुआ है। अब इससे चमत्कृत सिर्फ श्रद्धालु ही नहीं हैं, उनमें आस्था रखने वाले और भक्तगण ही नहीं हैं। अंदर की बात बतलाऊं इससे चमत्कृत बाबा खुद भी हैं। वे घंटों अपनी इस सफलता पर बिना नहाए आत्ममुग्ध रहते हैं। उन्हें अपनी यह सफलता नागमणि प्रतीत होती है। जिससे वह कुछ भी कर और पा सकते हैं और कर पा रहे हैं, यही कृपा (कर पा) बनकर बाबा पर सबसे अधिक और कुछ कम भक्तगणों पर बरस रही है। परंतु भक्तगण अथाह हैं इसलिए एक एक बूंद कृपा से भी कृपा का सागर बन हिलोरें मार रहा है। उमड़ घुमड़ कर आई कृपा। बाबा के मन को भायी कृपा। नोटों की बरसात है कृपा। कृपालुओं पर चमत्कार है कृपा।
बाबा सबका अतीत, वर्तमान और भविष्य संवार रहे हैं और खंगालने वाले उनका अतीत खंगालने में समय जाया कर रहे हैं। मानो, बाबा को नीचा दिखलाकर, अपनी नीचवृत्ति को जाहिर करना ही उनका ध्येय हो। इस संसार में सब दूसरों के सुख से सुखी हैं। बाबा के सुख से भी बहुत सारे लोग सूख रहे हैं कि, हाय, बाबा हम ही क्यों न हुए ? मैं भी अपनी कोशिशों में सक्रिय हूं। मैं भी उनका अपना ही हूं, बस अभी तक बुकिंग नहीं कराई है और दो हजार की राशि अग्रिम जमा नहीं कराई है। इसलिए मेरे सपने अधूरे हैं। अब अगर बाबा बनकर भी धन का अंबार नहीं लगा पाए तो, कितनी शर्मनाक स्थिति हो जाएगी। जब मंदिरों में और सत्य साईं बाबा के खजाने में धन के अंबार लगे हैं, फिर बाबा के पास क्यों न लगें, और हम भी बाबा ही क्यों न बनें, क्या हम भारत देश के सच्चे पक्के नागरिक नहीं हैं, आप हमारी नागरिकता की जांच कर सकते हैं। जहां डाल डाल पर सोने की चिडि़या करती है बसेरा। बस, क्योंकि अब चिडि़याएं खतरे में हैं, प्रदूषण और मोबाइल के सिग्नल उनका सफाया कर रहे हैं। फिर बाबा अगर ऐसे में पर्यावरण प्रेमी बन कर सामने आए हैं .... जहां डाल डाल पर बाबा करते हैं बसेरा, वह भारत देश है मेरा। अब अगर डाल खूब सारी हैं तो बाबा भी खूब सारे ही होंगे न, जैसे चिडि़यां खूब सारी हुआ करती हैं या हुआ करती थीं। अब अगर मैंने बाबा की तुलना चिडि़या से कर दी है तो आप उन्हें चिडि़याघर में क्यों रखना चाह रहे हैं, चिडि़या भी चाहती हैं कि उनका अपना बनाया बसेरा हो। जिसे तिनका-तिनका जोड़कर बनाया हो। फिर बाबा अगर दो-दो हजार रुपये का तिनका जोड़ कर बसेरा मजबूत करने में जुटे हैं और अपना वर्तमान और भविष्य संवार रहे हैं। फिर इसमें आपके दुखी होने की कोई वजह मुझे तो दिखाई नहीं देती है।
धन जो हजारों लाखों की जेबों में बिखरा पड़ा है। वहां से कुछ कम होगा तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन वही जब बाबा की झोली में आकर गिरेगा और अंबार लगेगा तो धन की असली ताकत का मालूम चलेगा। धन की शक्ति बिखरने में नहीं, इकट्ठे होने में है, इसे सब मानते हैं। अब वह नेताओं के विदेशी खातों में तो इकट्ठा नहीं हो रहा है, यह भी एक संतोष की बात है। बाबाओं के खातों में भक्तगणों की कृपा लगातार बरस रही है और उतनी बरस रही है जितनी पूरे देश में कुल मिलाकर बारिश भी नहीं होती है तो इससे तो देश का विकास ही सामने आ रहा है न, इसमें भी आपकी आपत्ति की वजह नहीं समझ पा रहा हूं मैं, कोई समझाएगा मुझे ?
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