किरपा करना किरपाण चलाने से जनहितकारी, सुंदर और नेक कार्य है। सब चाहते हैं कि उस पर किरपा हो, किरपा करना कोई नहीं चाहता। अब ऐसे में एक बाबा आए और खूब किरपा बरसाई, किरपाण भी नहीं चलाई, फिर लोग दुखी क्यों हैं, टी वी चैनल वालों पर भी खूब किरपा बरसी। वे मालामाल हैं और मालामाल हो गए। फिर जब इतना सा डिस्क्लेमर लगाकर छुटकारा मिल जाता है कि ‘इन चमत्कारों के लिए चैनल वाले उत्तरदायी नहीं हैं’, फिर भला चैनल वाले क्यों नहीं चलाएंगे। जबकि बाबा चैनल के जरिए किरपा ही कर रहे हैं, सब पर किरपा बरस रही है। आप यह क्यों नहीं समझ रहे हैं कि बाबा तो सिर्फ 2000 रुपये में किरपा कर रहे हैं। जबकि चैनल वाले लाखों लेकर किरपा करवा रहे हैं। अब अगर बाबा लालची होते तो सब धन समेट लेते। न चैनल वालों को देते, न सरकार को टैक्स चुकाते। फिर देश की बैंकों में ही क्यों जमा करवाते, विदेशी बैंकों में नहीं जमा करवाते। एक प्रकार से समझा जाए तो पब्लिक से किरपा करने के लिए इकट्ठे हुए माल असबाब में हिस्सेधारी बंटाने के लिए चैनल वाले सक्रिय हैं और एक दो नहीं बीसियों चैनल। अब एक दो तो बाबा पर आफत आते देख पल्ला झाड़कर निकल लिए हैं। बाबा ने कभी चैनल वालों का उधार नहीं रखा और न जिन पर किरपा की, उनको उधारी का लाभ दिया। नकद का इतना शानदार और चोखा धंधा बल्कि इसे व्यवसाय कहना चाहिए, भला इस कलयुग में और कौन सा हो सकता है। कोई चोरी चकारी नहीं, लूट खसोट नहीं, किरपा के लिए थोड़ा सा धन, लेकिन बदले में ‘बाबे दी फुल किरपा’।
किरपा मतलब कर पा, जितना बाबा कर पा रहे हैं, खूब कर रहे हैं। कोई भेद भाव नहीं, दो साल का बच्चा हो या 30 साल का युवा अथवा 50 साल का अधेड़ या फिर 80 साल का बुजुर्ग, कन्या हो, महिला हो, किन्नर हो – किरपा करने में कोई भेद भाव नहीं। सबकी फीस सिर्फ 2000 नकद। अब यह शोर मचाना कितना जायज है कि बाबा पहले दुकान चलाते थे या ठेकेदारी करते थे और सफलता नहीं मिली। अब यह किसने कहा है कि एक धंधा सफल न हो तो दूसरा काम नहीं किया जा सकता। सबको आजादी है कि वह किसी भी धंधे में किस्मत आजमा सकता है। अब अगर बाबा की किस्मत चमक गई है और वह देशवासियों की किस्मत चमकाने में जुट गए हैं तो इसमें दुखी होने की क्या बात है।
किस्मत की चमक निराली होती है। जब जिसकी चमक जाती है तो वो दूसरे की चमकाना नहीं चाहता बल्कि सारी चमक खुद ही बटोरना चाहता है। बाबा इस मामले में सिर्फ नाम के ही नहीं, मन के भी निर्मल हैं और वे चमक को बांट रहे हैं, क्या हुआ जो इसके बदले में ‘सब धन धूरि समान’ के अंश को भरपूर सम्मान दे रहे हैं, आप इसमें इतना अपमान क्यों महसूस कर रहे हैं, जलते हैं न बाबा पर हुई किरपा से और बाबा जो कर रहे हैं उस किरपा को पाना चाहते हैं। चिंता कीजिए और बुद्धिमान बनिए, एक हालिया शोध तो यही कह रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
ऐसी कोई मंशा नहीं है कि आपकी क्रियाए-प्रतिक्रियाएं न मिलें परंतु न मालूम कैसे शब्द पुष्टिकरण word verification सक्रिय रह गया। दोष मेरा है लेकिन अब शब्द पुष्टिकरण को निष्क्रिय कर दिया है। टिप्पणी में सच और बेबाक कहने के लिए सबका सदैव स्वागत है।