दूध के दांत बड़े फेमस हैं, इधर जन्म लिया और उधर मां के दूध का असर शुरू हो जाता है। जबकि दांत दिखाने, खाने, डराने, काटने और इन सबसे बढ़कर चबाने जैसी क्रियाओं को भी बखूबी अंजाम देते हैं और अपना दांत धर्म बखूबी निबाहते हैं। इधर भाई लोगों ने दांत की एक नई वैरायटी खोज निकाली है और वह है दारू के दांत। यह भी माना-स्वीकारा जाता है कि दूध के दांत ही कालांतर में दारू के दांत बनते हैं तो कुछ का कहना है कि कुछ दांत सिर्फ बीयर के होकर ही रह जाते हैं। वैसे जो दांत शरीफ रहते हैं ताजिंदगी वह दूध के ही कहलाते हैं। बहुत हुआ और किसी बाबा के कथन से रूबरू नहीं हुए तो कोल्ड ड्रिंक और हॉट ड्रिंक के दांत भी बहुतायत में पाए जाए हैं। इन सबके बीच सबसे अधिक विख्यात चाय के दांत रहते हैं। उनकी प्रसिद्धि को कोई छू तक नहीं पाया है, मुकाबले की कौन कहे ?
आज माहौल में हाथी के दांत खूब लोकप्रियता पा रहे हैं। छिपाने वाले उन्हें लाखों के परदों के पीछे छिपा रहे हैं। हाथी के खाने के दांत देखने की जिसने भी कोशिश की है, उसे अपने सिर से जीवन का शैम्पू कराना पड़ा है। जिसने भी, चाहे वह महावत ही क्यों न हो, जिंदा हाथी के खाने के दांत देखने की जुर्रत की है, वह अपने सिर को साबुत मुंह से बाहर नहीं निकाल पाया है कि उनकी महिमा का बखान कर पाता। इसी का नतीजा है कि आज तक यह नहीं मालूम चला है कि हाथी के खाने के दांत होते भी हैं या सिर्फ दिखाने के दांत दिखलाकर ही वह अपनी उम्र गुजार देता है। हाथी के दिखाने के दांत बहुत अनमोल हैं। उनका कोई मुकाबला नहीं सका है। उसकी भिन्न वैरायटियां, बहुत कुछ बनाने के काम में लाई जाती हैं। कहने को तो दांत होते हैं और बना ली कंघियां जाती हैं, यह सच्चाई और इससे इतर हाथी के दिखाने और खाने के दांतों के बारे में कितनी ही अफवाहें जमाने भर के किस्से-कहानियों में भरी पड़ी हैं लेकिन उनका जिक्र करके आपको बोर करने का मेरा रत्ती भर भी इरादा नहीं है।
दारू पीने वालों के दांत के बारे में मिली जानकारी को आपके साथ साझा करने के लालच से नहीं बच पा रहा हूं। आप भी इसी को जानने में इंट्रेस्टिड नजर आ रहे हैं क्योंकि जो ताउम्र दारू पीते हैं, उन्हें कभी अपने दांतों की दैनिक सफाई, पेस्ट कर्म, दातुन कर्म, ब्रश धर्म, ऊंगली सरसों-नमक में भिगो-भिगो कर मलने के कार्य से निजात मिली रहती है। रोज दारू में नहाते-भीगते रहने वाले दांत, सदैव डायमंड की तरह चमचमाते रहते हैं और गंदगी का कोई कीटाणु वहां पल नहीं सकता। आप तो जानते ही हैं कि दारू खुद ही ऐसे जानलेवा कीटाणुओं से बनती है कि उसके भीतर डूबने-उतराने वाला पूरी उम्र के लिए सब प्रकार के कीटाणुओं के प्रभाव से मुक्त हो जाता है।
जहां तक चीटियों के दांतों का संबंध है,कोशिश करने पर भी दांत की हड्डीनुमा किसी सफेद दांताकृति को ढूंढने में सफलता नहीं मिली है। जबकि चींटी जब काटती है तो वह अपने जिन डैनों का प्रयोग काटने में करती है, इससे पहले तो वह लचीली मूंछों का सा आभास देते रहते हैं और चींटी के द्वारा काटे जाने वाला सोच भी नहीं पाता कि उसे चींटी काट रही होगी। तब भी जब वह उसे अपनी खाल से खींचकर अलग करता है, तब भी उसे विश्वास नहीं होता कि जरा सी चींटी बिना दांतों के ही काटने पर इतनी दर्दकारिणी हो सकती है।
वैसे नेताओं के दांत न दिखाने के होते हैं और न काटने के बल्कि नेता उन्हें निपोरे घूमते रहते हैं। कुछ कवियों को तो खिली-बत्तीसी के नाम पर बत्तीस सौ कविताएं छपवाते रहने का ऐसा लालच मन में पैठ गया है कि उससे इस जन्म में तो मुक्ति मिलती नहीं दिख रही है। फिर भी नेता के दांतों से काटे का इलाज न तो किसी झाड़ फूंक करने, न सर्पदंश से मुक्ति दिलाने, अथवा अन्य किसी नीम हकीम, डॉक्टर या वैद्य या किसी कवि के के पास बरामद हुआ है। फिर भी नेता का काटा न कभी चाय मांगता है और न पानी क्योंकि उसे पहले खूब दारू पिलाई जाती है, फिर देशी अथवा विदेशी दारू में स्नान कराया जाता है, और जब वह पूरे होशो हवास खोकर नशे में फंस जाता है, तब उसे नेता बिना मौका गंवाए इतनी तेजी से काट लेता है कि अन्य किसी वोटर को इसकी भनक तक नहीं पड़ती।
एक किस्सा बहुत मशहूर हुआ है कि बिना दांतों वाले कुत्ते ने एक आदमी के काट लिया तो डॉक्टर ने प्रस्ताव पेश किया कि टीका तो तुम्हें लगवाना ही होगा, चाहे बिना सुई का लगवाओ। इस पर भी तुर्रा यह कि डॉक्टर ने फीस में तनिक भी रियायत बरतना मंजूर नहीं किया। इसे तब से बिना दांतों के काटना कहा जाता है।
दांत की तुक आंत से मिलती है और किससे मिल रही है, तलाश रहा हूं। लेकिन दांत पीसने और दांतों में चबा चबाकर महीन पीसने के कार्य अलग-अलग पहचान रखते हैं, वह दांतधारक भी इससे भ्रमित पाए गए हैं। फिर भी दांत की जगह शरीर के शिखर पर स्थापित मुंह में मिक्सर ग्रांइडर की स्थापना नहीं की जा सकी है। हां, वैज्ञानिक इस प्रयत्न में जुटे हुए हैं कि दांत की जगह सैल फोन स्थापित कर दिया जाए तो एक वर्ल्ड रिकार्ड तो कायम हो ही जाएगा। मिक्सर-ग्राइंडर का स्थापना कार्य मुंह में संपन्न हो गया होता तो निश्चित ही आंतों को कठिनाई नहीं होती और जब आंतों को कोई कठिनाई न हो तो पाचन क्रिया भी दुरुस्त बनी रहती है। इससे निश्चित ही अग्नाश्य, पित्ताशय, किडनी, लीवर और पेंक्रियाज के कार्यों को जो राहत मिलती, उसका कोई सानी न होता। वैसे शरीर का हाजमा दुरुस्त रहे तो जमा पानी भी फिजूल खर्च नहीं होता है। धन जिसके पास पानी की तरह लबालब बचा रहे उसे दांतों की चाह भी नहीं रहती है,सोचता है लिक्विड ही पी लूंगा और अब यह जानकर वह कल्पना के घोड़ों पर सवार हो गया होगा कि अब कुछ ही दिनों की ही तो बात है, मिक्सर ग्राइंडर में पीस कर पी लूंगा। सब पौष्टिक भी मिलेगा। स्वाद पाने के लिए उसमें इसके विकल्प के तौर पर कैप्सूल व टेबलेट मिलाने की खोज का कार्य अब अंतिम चरण में है।
waaaah!!!!
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