दारु को बनाओ राष्‍ट्रीय पेय : डेली न्‍यूज एक्टिविस्‍ट 12 मई 2012 अंक में चकल्‍लस स्‍तंभ में प्रकाशित


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चाय को राष्‍ट्रीय पेय बनवाने की मांग करने वालों, अब तो शर्म करो। अमूल मैदान में आ गया है और दूध को राष्‍ट्रीय पेय बनवाने के लिए सीना तान के चाय की मुखालफत कर रहा है। क्‍या अमूल नहीं जानता है कि 90 प्रतिशत चाय दूध की मिलावट करने की बनाई जाती है। आप रेहडि़यों, पटरियों, दुकानों पर बिकने वाली चाय के बारे में जान सकते हैं। कितने ही चाय पीने के शौकीन सिर्फ दूध में पत्‍ती चीनी डलवा कर खौलवाते हैं और उसे पीकर तसल्‍ली पाते हैं।  इससे उनके मन में यह धारणा भी बनी रहती है कि खालिस दूध की चाय पीने से, चाय से होने वाले नुकसान से भी बचे रहेंगे।  इधर यह मामला अभी चाय की तरह गर्मागर्म ही है जबकि मौसम में गर्मियां अभी अपने पूरे उफान पर नहीं हैं। गर्मियों के पूरी तरह गर्म होने के बाद पक्‍की संभावना है कि लस्‍सी, छाछ, ठंडाई, कोल्‍ड ड्रिंक, नींबू पानी भी खुद को राष्‍ट्रीय पेय में शुमार करने के अपने दावे पेश कर दें। मौके की नजाकत भांप कर दिल्‍ली की सी एम ने देशी शराब की बिक्री पर रोक लगाने की घोषणा कर दी है। ‘टैक्‍स भी ज्‍यादा मिले, माल भी महंगा बिके’ की तर्ज पर देसी ब्रांडों से बेहतर लेकिन विदेसी ब्रांडों से कमतर दिल्‍ली मीडियम नामक शराब अपने देसी ठेकों के जरिए ग्राहकों के लिए बाजार में लाई जा रही है।
देसी शराब जहरीली भी होती है जबकि मुझे तो सरकार शराब से भी अधिक जहरीली महसूस हो रही है। जितनी जनता देसी जहरीली शराब पीने से मरती है, उससे अधिक तो राजनीतिज्ञों की दोषपूर्ण नीतियों के कारण मारी जाती है। ऐसा संभवत: इसलिए होता है क्‍योंकि जितनी जनता मरेगी, उतनी समस्‍याएं भी कम होंगी। लेकिन हम नहीं सुधरेंगे और इससे बचाव के नाम पर सरकार ने दिल्‍ली मीडियम शराब बाजार में परोसने का मन बना लिया गया है, जिससे जनता मरे भी न और जिंदा भी न रहे। जो देसी शराब को देस के बाजार से धक्‍का देकर बाहर कर देगी। दिल्‍ली सरकार का तर्क है कि इससे खूब सारे राजस्‍व की प्राप्ति होगी और जनता की भलाई के और अधिक कार्य किए जा सकेंगे।  कभी तो सरकार तंबाखू, गुटका, पान मसाला, सिगरेट, बीड़ी  पर प्रतिबंध लगाने की बात करती है तो दूसरी तरफ जनता को शराब की बेहतर क्‍वालिटी पिलाने का दंभ भरती है। वैसे एक बात तो तय है कि चाय या दूध पीने से शरीर को वह ताकत नहीं मिलती है जो शराब पीने से तुरंत मिल जाती है। शराब से होने वाले फायदों की तुलना में चाय और दूध के तनिक भी फायदे नहीं हैं, न तो जनता को और न सरकार को। जबकि दूध एक लीटर चालीस रुपये का मिल रहा है और चाय भी इससे कम में तो नहीं मिल रही है। दूध में मिलावटियों की पौ छत्‍तीस हमेशा रही है जबकि शराब में मिलावट करना इतना आसान नहीं होता। पीने वाले खुद ही उसमें सोडा, कोल्‍ड ड्रिंक, बिस्‍लेरी इत्‍यादि मिला मिलाकर पीते हैं। जनता को तो प्‍योर ही मिलना चाहिए, फिर वह चाहे उसमें कुछ भी मिलाकर पिए, यह उसकी मर्जी, अब चाहे वह दूध हो या शराब हो।
जो अथाह जोश शराब के नाम से ही मन और तन में उछालें मारने लगता है और पीने के बाद पूरे शरीर को भरपूर ऊर्जा से खदबदा देता है। शरीर अकूत बल का मालिक बन जाता है, मन में हौसले का संचार हो जाता है। पियक्‍कड़ किसी से भी मानसिक और शारीरिक तौर पर मुकाबला करने के लिए सदा तैयार मिलता है। भला ऐसे गुण चाय और दूध अथवा दही की लस्‍सी में मिल सकते हैं। लस्‍सी पीने के बाद तो पूरे शरीर में आलस भर जाता है। चाय मात्र कुछ पलों के लिए शरीर में उत्‍तेजना लगाती है और दूध ... बिना मिलावट वाला प्‍योर हो तब भी शराब और चाय के बराबर किसी का प्‍यारा बनने का गुण नहीं रखता है। दूध तो सिर्फ बच्‍चों और महिलाओं के लिए ही उपयुक्‍त रहता है। शराब का असर काफी देर तक शरीर पर रहता है। वह कितने ही कष्‍टों और गमों को भुलाने में सहायक बनता है। आदमी अपनी सभी परेशानियों से निजात पा जाता है। उसके प्रति सबके मन में सहज आकर्षण पाया जाता है। कड़वा होने पर भी पीने वाले कतार में तैयार मिलते हैं। प्‍यार में धोखा खाए लोगों के लिए तो यह रामबाण के माफिक काम करती है।
शराब की युवाओं और नशेडि़यों में जो सहज स्‍वीकार्यता है, वह किसी और चीज में नहीं है। गुटखा, तंबाखू, जर्दा का सेवन करने वालों को आप इलायची और सौंफ के चबाने के लिए सहज ही राजी कर सकते हैं क्‍या, शराब और उसके साथ बीड़ी, सिगरेट के सेवन के लिए आपको अधिकतर लोग यकायक तत्‍पर मिलेंगे। मेरा तो मानना है कि सरकार को चाय अथवा दूध को राष्‍ट्रीय पेय घोषित करने के चक्‍कर में उलझने के बजाय तुरंत‘दिल्‍ली मीडियम’ न देसी और न विदेशी, को कठोर फैसला करके राष्‍ट्रीय पेय घोषित कर, सिरमौर बन जाना चाहिए और इस दिन को एक ‘राष्‍ट्रीय पर्व’ की मान्‍यता भी लगे हाथ दे देनी चाहिए, आप क्‍या कहते हैं?

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