पेट्रोल की प्रेम पाती : दैनिक हरिभूमि 26 मई 2012 में प्रकाशित


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पेट्रोल की प्रगति देखकर सब दुखी हैं। यह नहीं देखते कि कितना उपयोगी हैउपयोगी है इसीलिए तो रेट बढ़ रहे हैं। पानी के क्‍या कम बढ़े हैंपहले प्‍याऊ वगैरह में फ्री में इफरात में मिलता रहा है। अब बोतलों में हाजिर है। कितना जोखिम लेकर जी रहा हूंतनिक सी चिंगारी स्‍वाह कर देती है मुझे। कोई आह भी नहीं कर पाता और स्‍वाहा हो जाता है। गर्मियों में तनिक सी गर्मी में ये दिमाग पर चढ़ गई तो क्‍या हो गया। पेट्रोल से जब इतना प्‍यार करते हो तो उसकी कीमतें बढ़ने को भी सहो। जिसे प्‍यार किया जाता है उसकी जायज मांगों के साथनाजायज मांगों को भी तो खुशी खुशी स्‍वीकारा जाता है। अभी तो साढ़े सात ही बढ़ाया है, एक सौ रुपये तो नहीं पहुंचाया है। पेट्रोल की प्‍यार कथा जारी है। खूब तन्‍मय होकर सुना रहा है।
क्‍या यह सही लगता कि रेट तो वही रहता और लीटर में मिलीलीटर घटाकर 300 कर दिए जाते। उसमें तो तुम्‍हारा ही नुकसान होता। देश की प्रगति का बढ़ता आंकड़ा ही नहीं दिखाई देता। फिर चिल्‍लाते कि नाप तोल कम कर दी है। हल्‍ला मचाते कि मिलीलीटर उतने ही रहने देते। महंगा चाहे बीस रुपये कर लेते। अब साढ़े सात रुपये बढ़ाये हैंतो नानी याद आ रही है। नानी जब कहानियां सुनाती थीं तो कितना खुश होते थे। पेट्रोल के बहाने नानी और नानी के बहाने कहानी की याद। कितना दिल खुश होता है। जब याद आता है कि एक था राजाएक थी रानीदोनों मर गएखत्‍म कहानी।
लो सुनोनई कहानी - एक था पेट्रोलएक था मिट्टी का तेलएक डीजल भी है जिसमें जल नहीं है – तीनों के बढ़ गए हैं रेटजाओ खोल दो खुशी के गेट। इसमें रोने की क्‍या बात है। नानी की याद आने वाली है। नानी जो कहानी सुनाती थी। जगते थे तो सुनते सुनते सो जाते थे। रोते थे तो सुनते सुनते सो जाते थे। हंसते थे तो सुनते सुनते हंसते ही रहते थे। नानी की याद कराना कोई हंसी खेल है। इतनी मुश्किलों से तो याद दिला रहे हैं। अभी एक पेट्रोल पम्‍प का ठेका मिल जाए,या मिट्टी के तेल का डिपो – फिर तो चाहोगे कि सरकार रोज ही रेट बढ़ाए या तुम्‍हें बढ़ाने दे। फिर नहीं चिल्‍लाओगेपूरे मोहल्‍ले भर को मिठाई खिलाओगे। नुक्‍कड़ पर नाचोगे। पल पल पर पेट्रोल,घासलेट के बढ़ते रेटों को बांचोगे। समझ लो पेट्रोल पंप के मालिक हो गए हो। फिर क्‍या गम है,सबमें तुमसे और तुम्‍हारे में सबका दम है। जिस देश में रहते हो उसका ही विकास नहीं देख सकते। डीडीए के फ्लैटों के लिए आवेदन मांगे गए तो कितने सारे भर दिए,तब तो कोई नहीं चिल्‍लाया कि इतने पैसे क्‍यों मांग रहे होइतने रेट क्‍यों बढ़ा रहे हो और यहां पर 5 रुपये बढ़ने पर पैंट ढीली और गीली दोनों हो गई हैं। 

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