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पी एम ने कहा कि ‘पेड़ पर नहीं उगते पैसे’, उनके बयान में से इस एक हिस्से पर सबने ध्यान केन्द्रित किया गया और बवंडर मचाया गया जबकि वे वाक्य के अंत में ‘क्या’ जोड़ना भूल गए थे। और सब पीएम की फजीहत करने में बुरी तरह सफल हो गए। जब तक पीएम को अपनी चूक समझ में आती, तब तक तीर उनकी जुबान से छूट चुका था। उन्होंने सोचा कि मैं पीएम हूं एक तीर चल गया तो कोई बात नहीं, दूसरा तीर प्रयोग कर लूंगा, यही गफलत हो गई और अर्थ का अनर्थ हो गया।
अब वे ‘क्या‘ जोड़ना भूल गए, फिर उनसे एक और चूक हो गई क्योंकि एक बार गलती हो जाए तो फिर गलतियों का क्रम शुरू हो जाता है। वे इतना किंकर्तव्यूविमूढ़ हो गए कि अगली कई बातें कहना औा तथ्यों का उल्लेख करना भूल गए। जबकि उन्हें भाषण की पूरी तैयारी कराई गई थी, उन्होंने इसे रट भी लिया था, कई बार अपने विशेषज्ञों को सुनाया भी। अनेक बार अभ्यास भी किया था किंतु चैनलों को सामने देखकर वे ‘सुजान’ न बन सके और ‘जड़मति’ ही रह गए।
चैनलों की मजबूरी तो समझ में आती है कि उन्हें 24 घंटे चैनल चलाने होते हैं इसलिए बात का बतंगड़ बनाना जरूरी है किंतु सरकार पब्लिक के हित के लिए सदा ही पैट्रोल, डीजल, गैस और अन्य जीवन चलाने के लिए आवश्यक वस्तुओं पर सब्सिडी देती रहती है। बतलाने वाले तो इसे वोट पाने का लालच करार देते हैं और संभवत: इसी वजह से महंगाई भी आजकल सरकार से नाराज है।
पैसे पेड़ पर नहीं उगते क्या, पैसे पेड़ पर भी उगा करते हैं। जिस फल का पेड़ होता है उसी के अनुसार पेड़ पर फल लगते हैं। कहा भी गया है कि ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से पाए’। कोई भी पेड़ अपने फलों को खुद नहीं खाते हैं, इस सच्चाई को सभी जानते हैं और यहीं से पेड़ पर पैसे उगने शुरू हो जाते हैं मतलब आप उनके फलों को बेचें और पैसे बनाएं। बाढ़ खेत को खा सकती है, इसके बारे में हम सब जानते हैं। पुलिस को बलात्कार में संलिप्त पाया जाता है, जिस पुलिस पर पब्लिक की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, वही पुलिस समय पड़ने पर पब्लिक को डंडों और गालियों से धुन-धुन कर अधमरा कर देती है। मंत्रियों ने भी इसी मार्ग पर चलते हुए खूब घोटाले किए हैं।
आपके स्वामित्व में जिस फल का पेड़ होगा, आपकी कमाई भी उसी के हिसाब से ज्यादा या और भी ज्यादा होगी, कम होने का तो सवाल ही नहीं उठता है। बादाम, अखरोट, सेब, आम, पपीते, अमरूद इत्यादि मतलब जितने भी किस्म के पेड़ होते हैं और उनके फलों को बेचकर सबसे खूब कमाई की जाती है। कुछ पेड़ बहुत लंबे होते हैं जबकि उनके ऊपर लगे फल संख्या में भी कम होते हैं और सस्ते भी बिकते हैं। लंबाई से किसी की उपयोगिता का अंदाजा नहीं लगाया जाना चाहिए। नारियल के पेड़ पर लगा नारियल सस्ता बिक रहा है जबकि उस लंबे पेड़ पर चढ़कर उसे तोड़कर लाने में काफी सफर तय करना पड़ता है। पेड़ पर चढ़ना फिर एक-एक नारियल को तोड़ पर संभाल कर नीचे लाया जाता है कि कहीं हाथ से छूट न जाए और नारियल टूट न जाए।
पेड़ के बाद उन्हें पौधों का जिक्र करना था। जिसमें वे बतलाते कि जिन पेड़ों पर फल नहीं उगा करते, उनकी लकडि़यां बेच कर खूब पैसे कमाए जाते हैं, जिन लकडि़यों से फर्नीचर नहीं बनाया जा सकता। उन्हें दाह-संस्कार में काम में ले लिया जाता है और वहां पर भी लकड़ी आजकल महंगी बिकती है। इसके बाद उन पौधों का नंबर आता है जिन पर फल नहीं उगते, उनके फूलों को बेचकर धन कमाया जाता है। आजकल फूल और फलों की खेती धन कमाने के लिए ही की जाती है। कोई भी पेड़-पौधों पर उगाए गए फलों और फूलों का फ्री वितरण नहीं करता है।
उस पर तुर्रा यह है कि बाबा रामदेव ने उनके ‘अर्थशास्त्री’ होने पर इस तनिक सी चूक के लिए उन्हें ‘अनर्थशास्त्री’ तक कह दिया जबकि पीएम ने उनके काले धन को लेकर किए गए ऊधम और शरारतों को भी सहजता से ही लिया और कभी अपना आपा नहीं खोया। न ही ‘रामदेव’ को ‘कामदेव’ की संज्ञा दी। जबकि वे चाहते तो ‘कालाधन’ के ‘का’ को वे उनके ‘रामदेव’ के ‘रा’ से रिप्लेस कर सकते थे परंतु उन्होंने ऐसा करके अपने बड़प्पन का परिचय दिया और बाबा ने उन्हें ‘अनर्थशास्त्री’ कहकर अपने ‘छिछोरेपन’ को ही दर्शाया है। सोशल मीडिया यानी न्यू मीडिया ने भी इस बात पर बेवजह बहुत ही धमाल मचाया है, उनकी ऐसी गैर-जिम्मेदाराना हरकतों की वजह से सरकार इस पर रोक लगाना चाहती है तो इसमें क्या गलत बात है।
अब आप किस मुंह से कहेंगे कि पैसे पेड़ों पर नहीं उगा करते हैं ?
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