राम बना राम का दुश्मन। उसने राम के पतीत्व में ही खोट निकाल दिया। वह भी राम, मैं भी राम सब में राम समाया, फिर भी राम का पतीत्व उसके हमनाम भाई राम की समझ में नहीं समाया और उसने पंगा ले लिया। राम सहनशील हैं, पंगे को भी सहज भाव से सह जाते हैं, दंगा करना सिर्फ उनके भक्तों की फितरत है। वे ऐसे जेठ हैं जो मनाली के गीत गाते-गाते सीता की फेवर में उतर आए हैं। अब अगर दंगा न भड़के तो जरूर हैरानी होगी। जाहिर है कि आजकल भाई अपने सगे भाई का दुश्मन है। प्यार भी उसी मित्र से होता है जिससे लाभ की उम्मीद होती है। मतलब घूम-टहल कर यही निकलता है कि सब नाते-रिश्ते स्वार्थ के हैं, स्वार्थ जरूर सधना चाहिए। आराम शब्द में राम बसा है और कवि गोपाल प्रसाद व्यास जी कह गए हैं कि छिपा है। सचमुच का राम आज लुकाछिपी खेल रहा है और रावण ढीठ के माफिक सरेआम दंड पेल रहा है, जिम में अपनी बाजुओं की मछलियों को मछली का तेल पिला रहा है, बाहुबलियों और बाउंसर्स के रूप में सर्वत्र नजर आ रहा है।
राम में भी रावण देखना चाहने के इच्छुक इस मौके को कैश करने में जुट गए हैं। चैनल और मीडिया का सक्रिय होना आज खबर नहीं है। मौका दीपावली का है, घी, सरसों का तेल और मोमबत्ती सब महंगाई की लपेट में हैं और राम को चपेट मार दी गई है। आजकल धर्म का अहम् रोल भी गरमागरम बहस का विषय बना लिया गया है और फिल्मों में भुना लिया गया है। राम का पुतला बनाकर फूंकने की नौबत आने वाली है। चाहत है कि राम का पुतला आग से ऑक्सीजन सोख ले और आग बुझ जाए। आग के बुझने से पुतला जिंदा रह जाएगा। इसे चमत्कार बतला कर ढिंढोरा पीट धन कमाने का मौका नहीं गंवाया जाएगा। दंगा हुआ तो आम आदमी पिट जाएगा। रावण से राम नहीं डरते, लेकिन राम से डरने लगे हैं। भाई भाई से डरता नहीं, उलझता है। बाजारी और धार्मिक शक्तियां न राम को और न रावण को चैन लेने देती हैं, वे अपने हितसाधन में बिजी हैं।
राम अच्छे पति नहीं थे, धोबी के कहने को आधार बनाकर राम की गर्दन पर नश्तर से वार किया है। अच्छे पति की परिभाषाएं तलाशी जाने लगी हैं। सच भी यही है कि बहुत कम पत्नियां अपने पति को अच्छा मानती हैं जबकि पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को अच्छा मानने का औसत इतना भी नहीं है। किसी पत्नी को बहादुर पति अच्छा लगता है तो किसी पत्नी को पत्नी से डरने वाला। पिता की मानने वाले और प्रजा से डरने वाले पति आजकल की पत्नियों के भी पसंदीदा नहीं हैं, ऐसे में राम ने किसी धोबी के कहने को ही दिल से लगा लिया है तो इसकी तो निंदा ही की जाएगी।
आप अपना पक्ष जाहिर कीजिए कि राम अच्छा लगता है या रावण अथवा आप भय के कारण धोबी के पक्ष में हैं कि उसे कपड़े धुलने को दिए और उसने आपके चरित्र को ही धो पोंछकर जनता में बिखेर दिया तो ... ओह माई गॉड।
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