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गोल वस्तुओं के साथ यह विडंबना है कि चलती हुई भी वे रुकी हुई दिखती हैं। इसीलिए ऐसा लगता है कि जानबूझकर संसद को गोलायमान बनाया गया है। संसद चल रही हो या रुकी हो, कोई खास फर्क नहीं पड़ता। गतिशीलता मापने के लिए उसे छूना पड़ता है, छूने को चीटिंग कहा जाएगा क्येंकि एक कवि कह गए हैं कि ‘छाया मत छूना मन’। सही मायनों में संसद आम पब्लिक की छाया है और अपनी छाया को स्वयं छूना मुमकिन नहीं है। जबकि जान ऐसा पड़ता है कि आम पब्लिक को इसे छूने की मनाही है। शून्यकाल संसद में क्यों होता है, इसी से साफ समझ आता है। पता चल जाता कि संसद छल रही है या चल रही है। पब्लिक शून्य की गोलाई में निरंतर चली जा रही है, तलाश में जुटी है, किंतु मिलता कुछ नहीं है और वह स्वयं को भी भूल एक प्रकार की साधनावस्था में लीन हो जाती है।
भला हो चैनल वालों का, जो बुद्धू बक्से के कब्जे में आ जाते हैं और अपनी टीआरपी बढ़ाने के फेर में सब बताते हैं। न बुद्धू बक्सा होता, न संसद का चलना रुकना मालूम पड़ता। इससे बुद्धू बक्से के संबंध में निर्मित भ्रांतियां खंड-खंड हो जाती हैं कि बक्सा सिर्फ बुद्धू ही नहीं बनाता बल्कि इस संवेदनशील मामले में बुद्धू बनने से हमें रोकता भी है। प्रिंट मीडिया का भी ऐसा ही रोल समझ में आया है कि वे पब्लिक को सचेत करते रहते हैं। वो बात दीगर है कि कभी-कभार वे खुद भी अचेत हो जाते हैं। अब इतना जोखिम तो सहना ही पड़ता है। वे संसद के भीतर इसीलिए घुसे रहते हैं कि संसद गतिमान है या नहीं, इससे पर-पल पर पब्लिक को अवगत कराते रहें। न्यू मीडिया चाहे कितना ही ताकतवर हो गया है परंतु वह अभी संसद में घुसने और उसे महसूसने की कला में निष्णात नहीं हो पाया है। गति मापना और उसे भांपना दो भिन्न कलाएं हैं। मति की गति अनेक बार जड़मति हो जाती है, जड़मति से आशय आप ब्रेकिंग से लगाएं। मन की गति संसद नहीं इंटरनेट है और इसीलिए सदा गतिशील और प्रगतिशील बनी रहती है। मन के आकार के बारे में मालूम नहीं चला है कि वह गोल होता है या बेडौल क्योंकि वह सदा सीधा नहीं रहता। कभी घूमता है, कभी कूदता है और कभी उछलता तथा फुदकता है, उसके रुकने का भी पता नहीं चलता। मन संसद के मानिंद चक्करघिन्नी बनने से बचा रहता है।
रात में संसद सदा चलती रहती है इसलिए रात में संसद के आसपास धरना अथवा प्रदर्शन आयोजित नहीं किए जाते क्योंकि ऐसा करके वे शर्तिया ही कुचले जाएंगे। रात में उनको बचाने पुलिस वाले भी नहीं आएंगे। पब्लिक के लिए यह जानना सम्मान की बात है कि संसद की ताजा स्थिति क्या है, किंतु इसकी स्पीड की जानकारी के लिए न ता जनता दीवानी है और न वहां पर स्पीडोमीटर होने की जानकारी ही है। संसद चल रही है सोचकर इसके भागीदार हल्ला-गुल्ला मचाते रहते हैं, मानो संसद एक बस है और उसे बेबस करना इनकी जिम्मेदारी। संसद गोल है और शून्य भी गोल, इसलिए गोल संसद में गोल दिमाग वाले कतिपय सांसदों का पाया जाना कतई अजीब नहीं लगता। संसद और शून्य की गोलमोलता पर यह उपयोगी जानकारी, कहो कैसी रही ?
I really loved it.
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