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मंत्री के कहे का मंतर नहीं है। काटे का जंतर नहीं है। अनशन कैसे करे उसके लिए रामलीला मैदान नहीं है। नहीं से मतलब अवेलेबल है किंतु डरकर देते नहीं हैं, कोई अनशनकारी कब्जा न जमा ले। बीते दिनों एक मंत्री ने कैमरों को धमकाया था और इस बार मंत्री का फोटू खींचना जुर्म हो गया। फोटू खींचने वाले को खींचा और जेल में डाल दिया। जरूरी नहीं है कि फोटो किसी अभिनेत्री की हो। वे कुछ भी कहते हैं, फर्क नहीं पड़ता। जब वे कहे से मुकरते हैं, तब मानना पड़ता है। ट्विटर पर लिखते हैं और सरकाय लेते हैं। सरकना सिर्फ मंत्री ही नहीं जानते हैं, सरकना विषधर का स्थायी गुण है, वे आस्तीनों में निवास करते हैं। आजकल हालत इतनी पतली हो गई है कि कोई चलता है, कोई मचलता है और कोई मचल-मचल कर चलता है। इनमें कई क्रियाएं तो खूब गजब ढाती हैं। मचल-मचल कर चलना, उछलना-कूदना नहीं है जबकि कई अर्थों में इस्तेमाल किया जाता है।
पुरुष मचल-मटक कर चले तो शक होता है कि वह पुरुष है, गे तो नहीं। जबकि गे होना उसकी अदाएं जाहिर कर देती हैं। कन्या मचले तो देखने वालों के दिल बिखर जाते हैं। दिल के मचलने में चलने की जरूरत नहीं होती है। दिल का तेजी से धड़कना भी मचलना ही है। दिल धड़कना और मचलना बहुत जरूरी है इससे ही मालूम होता है कि दिल गतिशील है। किसी कन्या के मचलने को देखकर मचले तो प्रगतिशील है। शरीर में दिल के सिवाय कुछ और गतिमान हो जाए, तो बवंडर हो जाता है। आंखों की क्रियाएं खतरनाक कही गई हैं, कर्म पलक का और लक खराब आंखों का। दोनों पलक एक ही स्पीड में झपकें तो ठीक वरना तो पल भर का अंतर कितने ही चमत्कार दिखला देता है। तेजी से झपके तो भी गंडागोल। यह पलक झपकाना यानी एक आंख बंद, दूसरी खुली और दिमाग चाहे क्लोज हो, कोई फरक नहीं अलबत्ता। कैमरे को क्लिक करने के लिए एक पलक को बंद कर लिया जाता है। कैमरा बीच में न हो तो यही अपराध हो जाता है। दंगे हो जाते हैं ऐसा कारनामा नीयत के नए प्रतिमान स्थापित कर देता है। बीच में कैमरा भी हो और पलक झपकाई की रस्म चल रही हो, यकायक फ्लैश दमक उठे तो भी खतरा बरकरार रहता है।
न जाने कब किस भेस में मंतरी मिल जाएं, आपने क्लिक किया और उनके हिमायतियों ने क्विक एक्शन लिया और क्षण भर में आप जेल में। हिमायती बारातियों से भी खूंखार होते हैं। आपके जेल में जाने से जेल भरती नहीं है किंतु आपका जीना खाली कर देती हैं। आपकी कल्पनाओं का महल भरभराकर ढह जाता है। आपने सोचा था कि मित्रों को, नाते रिश्तेदारों को दिखलाएंगे कि वे मंत्री जो खूब बयान झाड़ते हैं, गरीबों की चादर अपने बयानों में खींच-खींच कर उघाड़ते हैं और उन्हें गरीब नहीं मानते, आपने उनकी खींच ली है। मंत्री चाहते हैं कि उनकी खूब फोटुएं खिंचे। अभिनेता चाहते हैं कि उनकी ही खिंचें और उनकी अभिनीत फिल्मों के टिकट खिड़की पर खूब बिकें। चाहत सबकी पूरी होती है किंतु एक फोटू खींचने वाले पर आफत आ गई। हिमायतियों को लगा कि उनके मंतरी की धोती पर खतरा है, धोती खींचना यूं तो अपराध नहीं है क्योंकि दुकानदार जब धोतियों को बेचता है तो खींच-खींच कर बेरहमी से शो केस से बाहर निकालकर संभावित खरीददार के सामने पटक कर उसकी नुमायश लगा देता है। फोटू खींचने वाले की हसरतों पर जेल चल गई। कहां तो सोचा था कि बीवी पर रौब गालिब करूंगा कि मैंने मंत्री को देखा, उसकी फोटू खींची किंतु वे अरमां ही क्या हुए जो आंसुओं में न बह जाएं। कैमरे का मालूम नहीं, कहां पर किस अवस्था में बिसूर रहा होगा, हो सकता है कि मिल्कियत ही बदल गई हो, न जाने किसने कैमरे की याददाश्त को खंगाल कर उसका पोस्टमार्टम कर दिया हो।
फोटू खींचने पर जेल जाने से एक नई परंपरा की शुरूआत हुई है। इससे पहले कार्टून बनाने कार्टूनकार को जेल भेजा गया था। हे हिंदी ब्लॉगरों, फेसबुक के गिरधारियों, ट्विटर उड़ाने वालों और सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी का नारा बुलंद करने वालों,अब सावधान हो जाओ। कभी भी किसी का भी नाड़ा खोला जा सकता है और पायजामा सरकने पर कितनी थू-थू होती है, इतना तो तय है कि आप पायजामा सरकने से सेलीब्रिटी बनने से रहे। अपने नाड़े को किसी मॉडल के ब्रॉ का हुक मत समझ लेना जो रैम्प पर बेवफा हो गया तो उसका जीवंत प्रसारण हो रहा होगा। नाड़ा कब फांसी का फंदा बन जाएगा, इसे जान नहीं पाओगे। पूरी उम्मीद है कि अगली बार आप फोटू खींचते या कार्टून बनाते नहीं पाए जाओगे।
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