कैमरे फुलटॉस खुंदक में हैं। सवाल पत्रकारों ने पूछा और वे हमारे से चिढ़ गए, क्विटलों गालियां फेंकीं और धमकाते हुए भिड़ गए। हमें तोड़ कर वे अपना नुकसान करेंगे। कायर अभद्र न होते तो मुकाबला करते। सवाल सम कोई और नहीं। देखा नहीं पब्लिसिटी की प्यासी अभिनेत्री, केजरीवाल से सवाल करने के मूड में मौके को समझ रही त्यौहार है। चारों ओर सवालों का मौसम तारी है इसलिए बाजी मारने की फिराक में, फ्राक उतार लघु वस्त्र धारण किए है। सवाल क्या कर लिए, वे तो सिरे से ही उखड़ गए, भूल गए कि उनके बुलाने पर पहुंचे थे। जिसकी जड़ें होती हैं, वह अच्छी तरह जानता है कि किसी भी जड़वान को उखाड़ने की धमकी देना व्यर्थ है। क्योंकि असली मट्ठे के अभाव में चाणक्य की शपथ की मानिंद जड़ें उखाड़कर उसमें मट्ठा डालने की ख्वाहिश पूरी करना भी पॉसीबल नहीं है।
ताव खाकर बेजुबान कैमरों को ही धमकाने में जुट गए। देश के कानून मंत्री ने पिछले दिनों धमकाने को कानूनी मान्यता क्या दे डाली है, इतराने लगे। माना कि उनके कहे पर आंख, नाक, कान मूंद कर अमल करना है। पर हम भयभीत नहीं है, समझ लो। हमारे भीतर प्राण नहीं हैं किंतु सबके पल-पल को जीवंत करते हैं। सिरफिरे मंत्रियों के मंतर से बचने के लिए इंश्योर्ड हैं। तोड़ लो, जितना मन करे। टूटने के बाद हमारे से बेहतर क्वालिटी के कैमरे आ जाएंगे। जो फोटो खींचेंगे, आवाज रिकार्ड करेंगे और बदतमीजी की तो गाली भी देंगे। गालियां बकने के ठेके के हकदार सिर्फ वे ही नहीं है। एफएम चैनलों पर ही देख लो, इसकी उसकी सबकी बजाई जा रही है। किसी को टोपी पहनाई और किसी की सरेआम आरती उतारी जा रही है।
वाह रे, हिमाचल के तथाकथित वीर। पुरातनता के एंटीक पीस। चोर कहने पर ही इतना बिफर गए, डकैत कह दिया होता, तब तो अवश्य ही एक बयानवीर की तरह गोली मार देते। पब्लिक के वोटों पर खुलकर डकैती डालने वाले दस्यु। आरोप साबित हो जाएंगे, तब तिहाड़ की दीवारों में कैद कर दिए जाओगे। धमकी देकर कौन सा गिन्नीज बुक में नाम दर्ज हो जाएगा। गुजरे जमाने के सुल्तान। सोच रहे हो कि मीडिया के सवालों से डरने वाले को सरकार मैडल देगी। सेब के फलों का भी कर रहे हो धंधा। एक सेब का सेवन डॉक्टरों को दूर रखता है लेकिन उनका धंधा करने से पौष्टिकता नहीं मिला करती। धन मिलता है और धनवेदना में इजाफा होता है। फल को कुफल बनाने की चेष्टा करने वाले पब्लिक तेरा और तेरे हिमायतियों का भरपूर गुणगान करेगी। कैमरों से पंगा ले रहो हो, मालूम नहीं है कि नई टैक्नीक वाले कैमरे आपके वस्त्रसहित चित्रों को वस्त्रविहीन कर देंगे और नहला देंगे गंगा। कैमरों को बेजुबान समझने के मुगालते में मत रहना। पहनकर हिमालय की खाल, मत बघारो शान, पब्लिक गर्म हो गई तो उसकी गर्मी से बर्फ की मानिंद पिघल जाओगे, कितनी भी कोशिश कर लो पब्लिक के लिए मीठी बर्फी नहीं बन पाओगे ?
काश कि कैमरेबाजों को कैमरे की यारी महँगी पड़े!
जवाब देंहटाएं